वक्रोक्ति अलंकार की परिभाषा
vakrokti alankar in hindi जहाँ किसी उक्ति में वक्ता के अभिप्राय से दूसरे अर्थ की कल्पना की जाए वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
सीताजी का यह कथन-“मैं सुकुमारि ! नाथ बन जोगू”-‘मै सुकुमारि’ पर काकु की व्यंजना करता है-अतः यहाँ काकु वक्रोक्ति है।
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वक्रोक्ति अलंकार के प्रकार
वक्रोक्ति अलंकार दो प्रकार होते हैं।
काकु अक्रोक्ति अलंकार
श्लेष वक्रोक्ति अलंकार
उदाहरण
मैं सुकुमारि नाथ बन जोगू
कह कपि धर्मसीलता तोरी। हमहुँ सुनी कृत परतिय चोरी।
को तुम हौ इत आये कहाँ घनस्याम हौ तौ कितहूँ बरसो।
चितचोर कहावत है हम तौ तहां जाहुं जहाँ धन सरसों।।
को तुम हो इत आये कहा,
घनश्याम हो तू कितू बरसों
एक कबूतर देख हाथ में पूछा, कहाँ अपर है?
उसने कहा, ‘अपर’ कैसा ? वह उड़ गया ,सपर है।
कौन द्वार पर ,राधै मैं हरि
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