अलंकार किसे कहते हैं परिभाषा और उदाहरण सहित | Alankar kise Kahate Hain in Hindi

Alankar kise Kahate Hain

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Alankar kise Kahate Hain आप इस पोस्ट में अलंकार किसे कहते हैं,अलंकार की परिभाषा, अलंकार के कितने भेद होते हैं, तथा प्रमुख अलंकारों के बारे में जानेंगे हिंदी व्याकरण में अलंकार परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण अध्याय होता है।

अलंकार किसे कहते हैं ( Alankar kise Kahate Hain )

Alankar in hindi काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्म को अलंकार कहते है। काव्यशोभा करान् धर्मानलकार प्रचक्षते (काव्यादर्श) अर्थात् काव्य की शोभा करने वाले धर्मों , को अलंकार कहा जाता है। अलंकार का शब्दार्थ होता है-आभूषण या गहना। आभूषण द्वारा शरीर को सजाया जाता है जिससे वह अधिक आकर्षक प्रतीत हो। अलंकारों द्वारा भाषा में लालित्य एवं चमत्कार का समावेश होता है। गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि “बिधुवदनी सब भाँति सेवारी, सोह न जथा बसन बिन नारी।” ।
अलंकारगत शोभा कभी शब्द में होती है और कभी अर्थ में।

अलंकार की परिभाषा (Alankar Ki Paribhasha)

काव्य की शोभा बढ़ाने वाले धर्म को अलंकार कहते है। काव्यशोभा करान् धर्मानलकार प्रचक्षते (काव्यादर्श) अर्थात् काव्य की शोभा करने वाले धर्मों , को अलंकार कहा जाता है।

अलंकार कितने प्रकार के होते हैं (Alankar Kitne Prakar Ke Hote Hain)

इस प्रकार अलंकारों को दो वर्गों में विभक्त करते हैं- शब्दालंकार, और (ii) अर्थालंकार

शब्दालंकार अलंकार किसे कहते हैं (Sabda Alankar kise Kahate Hain)

जब शब्दो द्वारा भाषा में सुन्दरता आती है, तब शब्दालंकार होता है। शब्दालंकारों के मुख्य भेद इस प्रकार माने गए हैं-अनुप्रास, यमक, पुनरुक्तिप्रकाश, वीप्सा, श्लेष और वक्रोक्ति।

अनुप्रास अलंकार किसे कहते हैं (Anuprash Alankar kise Kahate Hain)

जब एक ही अक्षर या कई व्यंजन वर्ण एक वाक्य में एक से अधिक बार आए तब अनुप्रास अलंकार होता है। उदाहरण
भूरि-भूरि भेदभाव भूमि से भगा दिया ।
यहाँ ‘भ’ व्यंजन की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।

यमक अलंकार किसे कहते हैं (Yamak Alankar kise Kahate Hain)

जहाँ शब्दों को आवृत्ति एक से अधिक बार होतो है। लेकिन उनके अर्थ सर्वत्र भिन्न होते हैं, वहाँ यमक अलंकार होता है। उदाहरण
कनक कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय। या खाए बोराय जग,बा पाए बौराय ॥

यहाँ पहले कनक का अर्थ ‘धतूरा’ और दूसरे कनक का अर्थ स्वर्ण’ (सोना) है। अत: यमक अलंकार है।

पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार किसे कहते हैं

जहाँ एक ही शब्द दो या इससे अधिक बार होता है और ऐसा होने से ही अर्थ में रुचिरता बढ़ जाती है। वहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार होता है। जैसे-थी ठौर-ठौर विहार करती सुन्दर सुरनारियाँ।

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वीप्सा अलंकार किसे कहते हैं

पुनरुक्ति प्रकाश की भाँति वीप्सा में भी शब्द बार-बार आते हैं, किन्तु वे आदर, उत्साह, आश्चर्य, शोक, पूणा आदि मन के विकारों को सूचित करने के लिए आते है-छि:-छि!, राम-राम! आदि के प्रयोग के समय वीप्सा अलंकार होता है। जैसे-राम राम यह दुर्घटना बहुत बुरी हुई।

श्लेष अलंकार किसे कहते हैं (Slesh Alankar kise Kahate Hain)

अब एक शब्द के दो या अधिक अर्थ निकलते है, सब श्लेष अलंकार होता है। उदाहरण
रावण सिर-सरोज-वनचारी । चलि रघुवीर सिलीभख धारी।

सिलीमुख के अर्थ- बाण, (2) भौरा
जब शब्द की आवृत्ति हो और प्रत्येक बार भिन्न अर्थ हो, तब यमक, किन्तु जब एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ हों, तब श्लेष अलंकार होता है।

वक्रोक्ति अलंकार किसे कहते हैं

जहाँ किसी उक्ति में वक्ता के अभिप्राय से दूसरे अर्थ की कल्पना की जाए, वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।
सीताजी का यह कथन-“मैं सुकुमारि ! नाथ बन जोगू”-‘मै सुकुमारि’ पर काकु की व्यंजना करता है-अतः यहाँ काकु वक्रोक्ति है।
अर्थालंकार उक्ति के भेद अनेक होते हैं, इसी प्रकार अर्थालंकारों के अनेक भेद होते हैं। प्रमुख अर्थालंकार का विवरण निम्न प्रकार है।

उपमा अलंकार किसे कहते हैंं ( Upma ankar kise Kahate Hain)

जब हम किसी वस्तु का वर्णन करते समय उस अधिक प्रसिद्ध किसी वस्तु से उसकी समानता करते हैं
तब उपमा अलंकार होता है। अर्थात् जहाँ उपमेय तुलना उपमेय से गुण, धर्म, क्रिया के आधार पर जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है, जैसे
मुख मयंक सम मंजु मनोहर ।

अनन्वय अलंकार किसे कहते हैं

जब उपमेय को समता देने के लिए कोई उपम होता ही नहीं और कहा जाता है कि उसके समान व है तब अनन्वय अलंकार होता है।

उदाहरण-राम से राम, सिया सी सिया।

प्रतीप अलंकार किसे कहते हैं

जब उपमेय और उपमान में विपर्यय किया ज तब प्रतीप अलंकार होता है। प्रतीप का अर्थ ‘उल्टा’ है। प्रतीप अलंकार में उपमान की निकृष्टता या उ की श्रेष्ठता दिखाई जाती है।

उदाहरण-नेत्र के समान कमल है।
गर्व कर रघुनन्दन जिन मन माह ।
देखउ आपनि मूरति सिय के छाँह ॥

व्यतिरेक अलंकार किसे कहते हैं

जब उपमेय को उपमान से बढ़ाकर  उपमान को उपमेय से घटाकर वर्णन किया जाता है  और कारण भी दिया होता है, तब व्यतिरेक अलकार होता है।
सिपमुख समता किमि करे  चंदवापुरो रक ।
उदाहरण-सीता का मुख चन्द्रमा के समान कहा जाता है, परन्तु चन्द्रमा तो दिन में फीका हो जाता है और यह दिन-रात खिला रहता है।

रूपक अलंकार किसे कहते हैं (Roopak Alankar kise Kahate Hain)

जहाँ एक वस्तु (उपमेय) को उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया जाए. वहाँ रूपक अलंकार होता है।

उदाहरण
ऊषो, मेरा हदय तल था एक उद्यान न्यारा ।
शोभा देती अमित उसमें कल्पना-क्यारियाँ थीं।

उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते हैं

जब उपमेय को उपमान से भिन्न जानते हुए भी उसमें उपमान की सम्भावना या कल्पना की जाती है, तब उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। मनु, मनहुँ, मामी, जनु, जानहु, जानो, निश्चय, मेरे जान, इव, थे अथवा इनके पर्यायवाची शब्द उप्रेक्षा के वाचक शब्द है, जैसे
सौहत औहे पीत पट, स्याम सलौने गात । मनहुँ नीलमनि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात ।।
अर्थात् श्रीकृष्ण के श्याम शरीर पर पीताम्बर ऐसा मालूम देता है. मानो नीलम के पर्वत पर प्रात:कालीन सूर्य की किरणें पड़ रही हो।

स्मरण अलंकार किसे कहते हैं

जब एक बार देखी, सुनी या समझी हुई वस्तु से मिलती-जुलती या सम्बन्ध रखने वाली कोई वस्तु फिर कभी देखने, सुनने या चिन्तन करने पर याद आ जाती है, तब स्मरण अलंकार होता है, जैसे
उत्तर दिशा से उत्तरा की याद उनको आ गई।

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अपहति अलंकार

जब किसी सच्ची वस्तु या बात को छिपाकर उसके स्थान पर किसी झूठी वस्तु या बात की स्थापना की जाती है तब अपहति अलंकार होता है। दूसरे शब्दों में उपमेय का निषेध करके उसके स्थान पर उपमान का। आरोप करने से अपहति अलंकार होता है।
मैं जो कहा रघुबीर कृपाला ।
बन्धुन होइ, मोर यह काला ॥
अर्थात् सुग्रीव राम से कहने लगा-हे. कपालु रघुवीर मैने आपसे यह कहा था कि यह बालि मेरा भाई नहीं, अपितु मेरा काल है, बिल्कुल सच है।
यहाँ उपमेय (भाई) का निषेध करके उपमान । (काल) की स्थापना की गई है। अत: अपहति अलकार है।

भ्रातिमान (भ्रम ) अलंकार

कभी कभी किसी वस्तु को देखकर उसमे अन्य कुछ सादृश्य के कारण उसे अन्य वस्तु समझ बैठते है। ऐसे भूल को भ्रान्ति कहते है। तथा इसमें भ्रातिमान अलंकार होता है।
जय उपमेय में अपमान का आभास हो, तबउसमे भ्रम या भ्रातिमान अलंकार होता है।

जैसे नाच अचानक ही उथे  मिनु पावस बन मोर ।
जानत हो नन्दित कारी यह दिसि नन्द किसोर ।।

संदेह अलंकार किसे कहते हैं

जब उपमेय और उपमान में समता देखकर यह निश्चय नहीं हो पाता है कि उपमान में उपमेय की दुविध बनी रहती है, तब संदेह अलंकार होता है।

जैसे
की तुम तीनि देव मह कोऊ ।
मर-नारायन की तुम दोक ।।

नोट – भ्रातिमान अलंकार में उपमेय और उपमान के सादृश्य का आभास सत्यमान लिया जाता है, परन्तु संदेह में सुविधा (संदेह) मनी रहती है है या नहीं।

उल्लेख अलंकार

जब एक वस्तु का वर्णन (उल्लेख) कई प्रकार से किया जाए, तब उल्लेख अलंकार होता है।

उदाहरण
जिनकी रही भावना जैसी। प्रभु-मूरति देखी तिन जैसी ॥

देखहि भूप महा रनधीरा, मनहुँ चीर रस भरे शरीरा ॥

खरे कुटिल नृप प्रभुहि निहारी, मनहुँ भयानक मूरति भारी ॥

पुरबासिन्ह देखे दोउ भाई, नर भूषन लोचन सुखदाई॥

दृष्टांत अलंकार किसे कहते हैं

उपमेय और उपमान वाक्य तथा उनके साधारण धर्म का (धर्म पार्थक्य होते हुए भी) जहाँ बिम्ब-प्रतिविम्ब भाव (भाव-साम्य) हो, यहाँ दृष्टांत अलंकार होता है।

जैसे
भरतहि होइ म राज मदु विधि हरिहर पद पाइ।
कबहुं कि कांजी सीकरनि जीरसिन्धु बिनसाइ।।

उदाहरण अलंकार

जब दो ऐसे वाक्यों में जिनका साधारण धर्म भिन्न है. वाचक शब्द द्वारा समता दिखाई जाती है, तब उदाहरण अलंकार होता है।

उदाहरण
उदित कुमुदिनी नाच हुए प्राची में ऐसे ।।
सुधा-कलस रत्नाकर से उठता हो जैसे ॥

अतिशयोक्ति अलंकार किसे कहते हैं

जहाँ किसी की प्रशंसा बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लोक-सीमा के बाहर की बात कही जाए, वहीं अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे
जो साथि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कछाप सोई॥
सोधा र मंदरू सिगारू, मथै पानि पंकर निज भारू॥

एहि बिधि उपज लछिः  जब सुन्दरता सुख मूल ॥
तदपि सकोच समेत कबि
कहहिं सीय समतूल ॥

यहाँ सीता की सुन्दरता का वर्णन बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर किए जाने से अतिशयोक्ति अलंकार है।

रूपकातिशयोक्ति अलंकार

जब उपमेय और उपमान में इतना अभेद स्थापित किया जाता है कि उपमेय का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है, केवल उपमान द्वारा उसका बोध होता है, तब रूपकातिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी।

तुम्ह देखी सीता मृगनैनी ॥

खंजन सुक कपोत मृग मीना।
मधुप निकर कोकिला प्रबीना ।।

अन्योक्ति अलंकार किसे कहते हैं

अन्योक्ति का अर्थ है-अन्य के प्रति की गई उक्ति। जब शब्दार्थ के साथ-साथ उससे ध्वनित होने वाले किसी अन्य अर्थ का बोध कराना कवि का लक्ष्य होता है, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है।

जैसे
नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इहि काल । अली कली ही सौं बिंध्यौ, आगे कौन हवाल ।।
यहाँ शब्दार्थ है-भौरे और कली वाला अर्थ, किन्तु व्यंग्यार्थ है-राजा जयसिंह और नवोढ़ा रानी वाला अर्थ। भ्रमर की अन्योक्ति से राजा जयसिंह को सचेत किया गया है। अतः यहाँ अन्योक्ति अलंकार है।

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समासोक्ति अलंकार

जब प्रस्तुत द्वारा अप्रस्तुत का बोध कराया जाता है तब समासोक्ति अलंकार होता है, किन्तु यहाँ प्रस्तुत की प्रधानता होती है। नोट-यह अन्योक्ति का उल्टा होता है।

विरोधाभास अलंकार किसे कहते हैं

जहाँ वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास कराया जाए और अर्थ में उस विरोध का परिहार हो, वहाँ विरोधाभास होता है। जैसे
या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोय। ज्यों-ज्यों बूडै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय।।
जैसे-जैसे यह चित्त स्याम रंग (कृष्ण प्रेम) में डूबता जाता है, वैसे-वैसे उज्ज्वल (निर्मल) होता जाता है।
काले रंग में डूबने पर भी सफेद हो रहा है, यह तो विरोध का आभास है, किन्तु काले रंग का तात्पर्य कृष्ण का प्रेम है इसलिए विरोध का परिहार हो जाता है। तब अर्थ होगा कि जैसे-जैसे यह अनुरागी चित्त कृष्ण के प्रेम में डूबता जाता है, वैसे-वैसे निर्मल होता जाता है।

विषम अलंकार किसे कहते हैं

जब दो परस्पर विरोधी पदार्थों का संसर्ग कराया जाता है, तब विषम अलंकार होता है। जैसे
कहाँ राम के कोमल कर हैं,
कहाँ कठोर शरासन शिव का ।।

असंगति अलंकार

जब कारण और कार्य में संगति न हो, तब असंगति अलंकार होता है। कारण कहीं पर और कार्यकहीं अन्यत्र हो तब असंगति होती है।

जैसे
दृग उरझत टूटत कुटुम, जुरत चतुर चित प्रीति।  परत गाँठ दुरजन हिये, दई नई यह रीति।।

विशेषोक्ति अलंकार

जब कारण के उपस्थित रहने पर भी कार्य नहीं होता है, तब विशेषोक्ति अलंकार होता है।

जैसे
लाग न उर उपदेस, . तदपि कह्यो सिव बार बहु।

विभावना अलंकार

जब कारण के बिना कार्य हो जाता है, तब विभावना अलंकार होता है। जैसे
बिनु पद चलै, सुनै बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।

यथासंख्य या क्रम अलंकार

जब कुछ पदार्थों का उल्लेख करके उसी क्रम | (सिलसिले) से उनसे सम्बन्धित अन्य पदार्थों, कार्यों
या गुणों का वर्णन किया जाता है, तब यथासंख्य या क्रम | (जैसी संख्या है वैसा) अलंकार होता है। |

उदाहरण
अमी हलाहल मद भरे स्वेत, स्याम, रतनार।

जियत, मरत झुकि-झुकि परत, जेहि चितवत इक बार॥
यहाँ अमृत, हलाहल, मद जिस क्रम में हैं उसी क्रम में स्वेत, स्याम, रतनार हैं तथा उसी क्रम में जियत, मरत, झुकि-झुकि परत है। क्रम का उचित निर्वाह होने से यहाँ यथासंख्य या क्रमालंकार है।

तद्गुण अलंकार किसे कहते हैं

जहाँ कोई वस्तु अपना गुण त्यागकर अपने पास की किसी अन्य वस्तु का गुण ग्रहण कर लेती है, वहाँ तद्गुण (उसका गुण, ग्रहण करना) अलंकार होता है।

उदाहरण

पाँचन के रंग सों रंगि जाति सी
भाँति ही भाँति सरस्वती सेनी। पैरे जहाँ ही जहाँ वह वाल
तहाँ तह ताल में होत फवेनी।।

अतद्गुण अलंकार

जब कोई वस्तु समीपवर्ती अन्य पदार्थ के गुण ग्रहण नहीं करती है, उसका प्रभाव ज्यों-का-त्यों बना रहता है, तब अतद्गुण अलंकार होता है।

उदाहरण
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग। मीलित
जब दो पदार्थों में स्वाभाविक या आगन्तुक गुण (धर्म) एक-सा होता है और उनमें एक-दूसरे में ऐसा घुल-मिल जाता है कि दोनों के मध्य भिन्नता मिट जाती है, तब मीलित अलंकार होता है।

उदाहरण
पान-पीक अधरान में, सखी लखी न जाय। कजरारी-अँखियान में, कजरा, री, न लखाय।

उन्मीलित अलंकार

जब दो पदार्थों के गुण एक से हों और एक के दूसरे में विलीन हो जाने पर भी किसी कारणवश दोनों का भेद प्रकट हो जाए, तब वहाँ उन्मीलित अलंकार होता है। जैसे
मिलि चन्दन बैठी रही, गोरे मुख न लखाय। ज्यों-ज्यों मद लाली चदै,
त्यों-त्यों उभरत जाय।।
चन्दन की बिन्दी गोरे मुख से (रंग साम्य के कारण) ऐसी घुल-मिल गई कि अलग से लक्षित नहीं होती, किन्तु जैसे-जैसे मद की लालिमा मुख पर झलकती है, वैसे-वैसे चन्दन की पीत आभा उभरती जाती है। यहाँ उन्मीलित अलंकार है।

परिसंख्या अलंकार किसे कहते हैं

जब किसी वस्तु को अन्य स्थानों से हटाकर किसी एक ही स्थान पर स्थापित किया जाता है, तब परिसंख्या अलंकार होता है।

उदाहरण
दंड जतिन्ह कर भेद जहँ, नर्तक नृत्य समाज। जीतहु मनहिं सुनिअ अस, रामचन्द्र के राज।।

Alankar kise Kahate Hain आशा करता हूं मैं इस पोस्ट में अलंकार किसे कहते हैं,अलंकार की परिभाषा, अलंकार के कितने भेद होते हैं, तथा प्रमुख अलंकारों के बारे में अच्छी तरह से समझ में आ गया होगा।

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