विरोधाभास अलंकार Virodhabhas Alankar

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विरोधाभास अलंकार Virodhabhas Alankar

virodhabhas alankar in hindi विरोधाभास दो शब्दों से मिलकर बना है – विरोध + आभास जहाँ वास्तविक विरोध न होते हुए भी विरोध का आभास कराया जाए और अर्थ में उस विरोध का परिहार हो, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है।

विरोधाभास अलंकार के उदाहरण

या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोय। ज्यों-ज्यों बूडै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्ज्वल होय।।
जैसे-जैसे यह चित्त स्याम रंग (कृष्ण प्रेम) में डूबता जाता है, वैसे-वैसे उज्ज्वल (निर्मल) होता जाता है।

काले रंग में डूबने पर भी सफेद हो रहा है, यह तो विरोध का आभास है, किन्तु काले रंग का तात्पर्य कृष्ण का प्रेम है इसलिए विरोध का परिहार हो जाता है। तब अर्थ होगा कि जैसे-जैसे यह अनुरागी चित्त कृष्ण के प्रेम में डूबता जाता है, वैसे-वैसे निर्मल होता जाता है।

बैन सुन्या जबते मधुर, तबते सुनत न बैन

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