पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार Punarukti Prakash Alankar
Punarukti Prakash Alankar In Hindi जहाँ एक ही शब्द दो या इससे अधिक बार होता है और ऐसा होने से ही अर्थ में रुचिरता बढ़ जाती है। वहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार होता है। जैसे-
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थी ठौर-ठौर विहार करती सुन्दर सुरनारियाँ।
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।
जुगन- जुगन समझावत हारा , कहा न मानत कोई रे ।
विहग-विहग
फिर चहक उठे ये पुंज-पुंज
कल- कूजित कर उर का निकुंज
चिर सुभग-सुभग।
ठुमुकि- ठुमुकि रुनझुन धुनि-सुनि ,
कनक अजिर शिशु डोलत।
शान्त सरोवर का डर
किस इच्छा से लहरा कर
हो उठा चंचल – चंचल
यमक अलंकार तथा पुनरुक्ति अलंकार में अंतर
दोनों अलंकारों में काफी समानता होती है क्योकि दोनों अलंकारों में बार-बार शब्दो की पुनरावृत्ति होती है लेकिन दोनों अलंकार की शब्दो की पुनरावृत्ति में सूक्ष्म अंतर होता है।
यमक अलंकार में शब्दों की पुनरावृत्ति आवृत्ति होने पर उनके अर्थ की भिन्नता पायी जाती है। जैसे –
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय
यहां कनक शब्द दो बार प्रयोग हुए हैं जिसमें एक का अर्थ स्वर्ण दूसरे का अर्थ धतूरा है।
वही पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार में शब्दों की आवृत्ति दो या अधिक बार होती है किंतु अर्थ की भिन्नता नहीं पायी जाती । जैसे –
थी ठौर-ठौर विहार करती सुन्दर सुरनारियाँ।
इसमें ठौर-ठौर शब्द दो बार आया है किंतु अर्थ की भिन्नता नहीं है अतः पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
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