भ्रांतिमान अलंकार Bhrantiman Alankar In Hindi

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भ्रातिमान अलंकार Bhrantiman Alankar In Hindi

कभी कभी किसी वस्तु को देखकर उसमे अन्य कुछ सादृश्य के कारण उसे अन्य वस्तु समझ बैठते है। ऐसे भूल को भ्रान्ति कहते है। तथा इसमें भ्रातिमान अलंकार होता है।
जय उपमेय में अपमान का आभास हो, तबउसमे भ्रम या भ्रातिमान अलंकार होता है।

जैसे नाच अचानक ही उथे मिनु पावस बन मोर ।
जानत हो नन्दित कारी यह दिसि नन्द किसोर ।।

जैसे – अँधेरे में किसी ’रस्सी’ को देखकर उसे ’साँप’ समझ लेना भ्रांतिमान अलंकार है।

भ्रांतिमान अलंकार के उदाहरण

ओस बिन्दु चुग रही हंसिनी मोती उनको जान।

नाक का मोती अधर की कान्ति से, बीज दाडिम का समझकर भ्रान्ति से।
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन है।

वृन्दावन विहरत फिरैं राधा नन्द किशोर।
नीरद यामिनी जानि सँग डोलैं बोलैं मोर।।

अधरों पर अलि मंडराते, केशों पर मुग्ध पपीहा।

री सखि मोहि बचाय, या मतवारे भ्रमर सों।
डस्यो चहत मुख आय, भरम भरी बारिज गुनै।।

नाच अचानक ही उठे, बिनु पावस वन मोर।
जानत ही नंदित करी, यह दिसि नंद किशोर।।

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