अतिश्योक्ति अलंकार की परिभाषा Atishyokti Alankar In Hindi
जहाँ किसी की प्रशंसा बहुत बढ़ा-चढ़ाकर लोक-सीमा के बाहर की बात कही जाए, व अतिश्योक्ति अलंकार होता है। जैसे
जो साथि सुधा पयोनिधि होई। परम रूपमय कछाप सोई॥
सोधा र मंदरू सिगारू, मथै पानि पंकर निज भारू॥
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अतिश्योक्ति अलंकार के उदाहरण
एहि बिधि उपज लछिः जब सुन्दरता सुख मूल ॥
तदपि सकोच समेत कबि
कहहिं सीय समतूल ॥
यहाँ सीता की सुन्दरता का वर्णन बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर किए जाने से अतिशयोक्ति अलंकार है।
हनुमान की पूंछ में लगन न पायी आगि, लंका सिगरी जल गई, गए निशाचर भाग।।
देख सुदामा की दीन दशा करुणा करके करुणानिधि रोए,
पानी परात को हाथ छुयो नहिं नैनन के जल सों पग धोए।
देख लो साकेत नगरी है यही, स्वर्ग से मिलने गगन जा रही है।.
संदेसनि मधुवन-कूप भरे।
लहरें ब्योम चूमती उठती।
परवल पाक फाट हिय गोहूँ।
मै तो राम विरह की मारी, मोरी मुंदरी हो गयी कंगना
बालों को खोलकर मत चला करो, दिन में रास्ता भूल जायेगा सूरज।।
युद्ध में अर्जुन ने तीरों की ऐसी बौछार की, कि सूरज छुप गया और धरती पे अँधेरा छा गया |
एक दिन मैंने ऐसी पतंग उड़ाई ,ऐसी ऊंची पतंग उड़ाई ,उड़ते-उड़ते वह देव लोक में पहुंच गई !
आगे नदिया पड़ी अपार घोड़ा कैसे उतरे उस पार, राणा ने सोचा इस पार तब तक चेतक था उस पार।।
रावण में सौ हाथियों का बल था
कढ़त साथ ही म्यान तें, असि रिपु तन ते प्रान।
उसकी चीख से मेरे कान फट गए
चंचला स्नान कर आये, चन्द्रिका पर्व में जैसे, उस पावन तन की शोभा, आलोक मधुर थी ऐसे।।
वह शेर इधर गांडीव गुण से भिन्न जैसे ही हुआ, धड़ से जयद्रथ का उधर सिर छिन्न वैसे ही हुआ।।
भूप सहस दस एकहिं बारा। लगे उठावन टरत न टारा।।
राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था।
जोजन भर तेहि बदनु पसारा, कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा
बांधा था विधु को किसने इन काली जंजीरों से? मणि वाले फणियों का मुख क्यों भरा हुआ हीरो से
कल मेरे पड़ोस वाली गली में २ परिवार में लड़ाई हो गयी और वहां खून कि नदिया बह गयीं
रूपकातिशयोक्ति अलंकार
जब उपमेय और उपमान में इतना अभेद स्थापित किया जाता है कि उपमेय का अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है, केवल उपमान द्वारा उसका बोध होता है, तब रूपकातिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे
हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी।
तुम्ह देखी सीता मृगनैनी ॥
खंजन सुक कपोत मृग मीना।
मधुप निकर कोकिला प्रबीना ।।
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