रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय Ramdhari Singh Dinkar ka Jivan Parichay
Table of Contents
- 1 रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय Ramdhari Singh Dinkar ka Jivan Parichay
- 2 रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय Ramdhari Singh Dinkar ka Jivan Parichay एक नज़र में
- 3 साहित्यिक परिचय
- 4 भाषा
- 5 शैली भाषा की भाँति ही रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की शैली भी व्यावहारिक हैं। इनकी रचनाओं में शैली के विवेचनात्मक, समीक्षात्मक, भाषात्मक, सूक्तिपरक आदि रूप भी मिलते हैं।भाषा की तरह दिनकर की शैली भी व्यावहारिक है। आलोचनात्मक, आलोचनात्मक, भाषाई, विज्ञानवादी, शब्द उनकी रचनाओं में भी मिलते हैं। पुरस्कार (Awards)
- 6 हिन्दी साहित्य में स्थान
Ramdhari Singh Dinkar ka Jivan Parichay रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म सन् 1908 में विहार के मुंगेर जिले के ‘सिमरिया-घाट’ नामक ग्राम में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह तथा माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था। ‘दिनकर’ ने पटना विश्वविद्यालय से बी.ए. (ऑनर्स) की शिक्षा पूर्ण की थी।
पारिवारिक परिस्थितियों के कारण इच्छा रहने के बाद भी ये आगे नहीं पढ़ सके। दिनकर जी ने वाल्यावस्था में ही अपनी साहित्य-सृजन की प्रतिभा का परिचय दिया था। मिडिल कक्षा में अध्ययनरत् होते हुए, इन्होंने ‘वीरवाला’ नामक काव्य की रचना की तथा मैट्रिक में पढ़ते समय इनका ‘प्राणभंग’ काव्य प्रकाशित हो गया था। वर्ष 1928-29 में उन्होंने साहित्य सृजन के क्षेत्र में विधिवत् कदम रखा।
बी.ए. की परीक्षा पास करने के उपरान्त इन्होंने मोकामा-घाट के हाईस्कूल में प्रधानाध्यापक का कार्य भार सँभाला। सन् 1934 में इन्होंने बिहार के सरकारी विभाग में सब-रजिस्ट्रार की नौकरी की तथा सन् 1934 में ही ब्रिटिश सरकार के युद्ध प्रचार विभाग में उपनिदेशक नियुक्त किए गए। कुछ समय पश्चात् सन् 1950 में ये मुजफ्फरपुर कॉलेज में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
सन् 1952 में भारत के राष्ट्रपति ने इन्हें राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया, जहाँ ये सन् 1962 तक रहे। कुछ समय तक ये भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।
इसके पश्चात् भारत सरकार के गृहविभाग में हिन्दी सलाहकार के रूप में वे एक लम्बे अर्से तक हिन्दी के सम्बर्द्धन के लिए कार्यरत् रहे। इन्होंने आकाशवाणी के निदेशक के रूप में भी कार्य किया। दिनकर जी की साहित्यिक प्रतिभा को सम्मान देने
हेतु भारत के राष्ट्रपति ने सन् 1959 में इनको ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया तथा सन् 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय ने इन्हें डी.लिट्. की मानद उपाधि प्रदान की। इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला । ‘उर्वशी’ काव्य रचना के लिए इन्हें सन् 1972 में एक लाख रुपये के भारतीय ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। हिन्दी के ये महान् साहित्यकार, हिन्दी साहित्य की सेवा करते हुए सन् 1974 को इस संसार से विदा हो गए।
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय Ramdhari Singh Dinkar ka Jivan Parichay एक नज़र में
नाम Name रामधारी सिंह ‘दिनकर’
उपनाम नाम Full Name ‘दिनकर’
जन्म तारीख Date of Birth सन् 1908
जन्म स्थान Place of Birth मुंगेर जिले के ‘सिमरिया – घाट’ ग्राम , बिहार, भारत
मृत्यु Death सन 1974
नागरिकता Nationality भारतीय
पारिवारिक जानकारी Family Information
पिता का नाम Father’s Name श्री रवि सिंह
माता का नाम Mother’s Name श्रीमती मनरूप देवी
प्रमुख पुरस्कार
पद्म भूषण (1959),
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1959)
भारतीय ज्ञानपीठ (1972)
प्रमुख कविताएँ
प्राणभंग, रेणुका, हुंकारं, रसवन्ती, द्वन्द्वगीत, कुरुक्षेत्र, धूप छांह,
साहित्यिक परिचय
गद्य और काव्य विधाओं में दिनकर जी का समान अधिकार था। उन्हें अपने देश और संस्कृति से बहुत लगाव था, उन्होंने संस्कृति, कविता, समाज, जीवन आदि विषयों पर बहुत ही विशेष लेख लिखे। ‘चार संस्कृति’
राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित उनकी सर्वश्रेष्ठ कृतियाँ ‘संस्कृति के चार
अध्याय’ और ‘भारतीय संस्कृति की एकता’ हैं। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित कविताएँ लिखने के लिए उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ का सम्मान मिला।
कृतियाँ
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी हिन्दी साहित्य के लिए अमूल्य निधि हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
1. निबन्ध संग्रह ‘मिट्टी की ओर’, ‘अर्द्धनारीश्वर’, ‘रेती के फूल’,
‘उजली आग’ आदि।
2. काव्य ग्रन्थ ‘रेणुका’, ‘हुँकार’, ‘सामधेनी’, ‘रूपवन्ती’, ‘कुरुक्षेत्र’,
‘रश्मिरथी’, ‘उर्वशी’, ‘परशुराम की प्रतीक्षा’।
3. संस्कृति ग्रन्थ ‘संस्कृति के चार अध्याय’, ‘भारतीय संस्कृति की ‘एकता’ ।
4. आलोचना ग्रन्थ ‘शुद्ध कविता की खोज।
भाषा
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की भाषा विशुद्ध साहित्यिक संस्कृत में खड़ीबोली है। उनकी भाषा में हर जगह बोधगम्यता और स्पष्टता मौजूद है। उनकी भाषा में देशी शब्दों और मुहावरों, मुहावरों और कहावतों का भी आसानी से प्रयोग किया जाता था। अंग्रेजी में कहीं
लोकप्रिय शब्दों और उर्दू-फ़ारसी शब्दावली का मिश्रण भी बहुत सुखद है। उनकी भाषा सरल, स्वाभाविक और व्यावहारिक है। इसमें प्रवाह, चमक, लालित्य और स्पष्टता है। कहीं वाक्य रचना ढीली हो गई।
शैली
भाषा की भाँति ही रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की शैली भी व्यावहारिक हैं। इनकी रचनाओं में शैली के विवेचनात्मक, समीक्षात्मक, भाषात्मक, सूक्तिपरक आदि रूप भी मिलते हैं।भाषा की तरह दिनकर की शैली भी व्यावहारिक है। आलोचनात्मक, आलोचनात्मक, भाषाई, विज्ञानवादी, शब्द उनकी रचनाओं में भी मिलते हैं।
पुरस्कार (Awards)
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी को निम्नलिखित प्रमुख पुरस्कार मिले
पद्म भूषण (1959),
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1959),
भारतीय ज्ञानपीठ (1972)
साहित्य चूड़ामण (1968)
हिन्दी साहित्य में स्थान
रामधारी सिंह दिनकर जी न केवल एक कवि थे, बल्कि एक शानदार गद्य लेखक भी थे। उनकी उत्कृष्ट गद्य रचनाएँ “संस्कृति के चार अध्याय” और “शुद्ध कविता की खोज” हैं। इन कृतियों के माध्यम से वे महान विचारक और गद्य लेखक की श्रेणी में प्रतिष्ठित हुए। राष्ट्रीय भावनाओं पर आधारित उनका साहित्य भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर है। उनकी दुनिया मायने रखती है
हिन्दी के बाद के छायावाद काव्य के महान आलोचक, विचारक और कवि के रूप में महान लेखकों में दिनकर जी का अमूल्य स्थान है।
साहित्य अकादमी पुरस्कार (1959),
भारतीय ज्ञानपीठ (1972)
साहित्य चूड़ामण (1968)
हिन्दी के बाद के छायावाद काव्य के महान आलोचक, विचारक और कवि के रूप में महान लेखकों में दिनकर जी का अमूल्य स्थान है।