तुलसी के फायदे

तुलसी के फायदे

तुलसी के फायदे

Tulsi Ke Fayde तुलसी रोग-शोक हरती है। सुख-सौभाग्य का अक्षय वर देने वाली है। जिसे देखने मात्र से ही शीश स्वतः झुक जाता है। उस मातरूपा वनस्पति का नाम है, तुलसी। देवी भागवत में कहा गया है

बन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्व पावनी।

पष्पसारा नन्दिनी च तुलसी कृष्ण जीवनी।।

तुलसी कुल (लेबिएटी) की इस वनस्पति को चरक ने मुख्यतः श्वास हर जबकि सुश्रुत ने शिरो विरेचनीय कहा है। हिन्दी, गुजराती, मराठी, बंगला, में इसे तुलसी नाम से ही जाना जाता है। तामिल में अलंगाई, तेलगू में तुलसी, गग्गेरा। कन्नड़ में श्री तुलसी मलयालम में मित्तनु । राजस्थानी में तुलसी, तुलसा अरबी में तुलसी, बदरुत, शाहशफरम। फारसी में रहां, रेहानू तथा अंग्रेजी में Holy Basil, Secred Basil एवं लेटिन में Ocimum sanctum कहा जाता है। .
तुलसी भारत के प्रायः सभी क्षेत्रों में, हिमालय पर 6 हजार फीट की ऊंचाई तक मिलती है। भारत के अलावा तुलसी म्यांमार, लंका और आस्ट्रेलिया में भी पाई जाती है।
भारत में तुलसी का कितना महत्व है,  यह इस बात से सहज ही समझा जा सकता है कि यह हिन्दुओं के घरों में प्रायः मिल जाती है। तुलसी जंगलों में स्वयं उगती है।
वनस्पति शास्त्रियों ने अभी तक तुलसी की आठ प्रजातियों का पता लगा लिया है
(1) तुलसी (ओसिमम सैक्टम),

(2) बर्बरी (ओसियम बैसिलिकम),

(3) वन तुलसी (ओसिमम केनम),

(4) रामतुलसी (ओसिमम गेटिसिमम),

(5) कर्पूर तुलसी (ओसिमम किलियैण्डर चेरिकम),

(6) मरुवक (मेजोराना हार्टेन्सिस), तुलसी बालंगा (लाल्लेमेटिया रायलियग),

(8) तुलसी मूत्रल (ओसिमम ग्रेण्डिफ्लोरम)
ओसिमम सैक्टम वानस्पतिक नाम वाली तुलसी ही ज्यादातर मिलती है और इसे ही प्रमुख तुलसी माना गया है। हालांकि इसकी भी दो प्रजातियां होती है- (1) श्वेत तुलसी (या तुलसी) और कृष्ण तुलसी (या काली तुलसी)।

 मच्छरों को दूर करने में तुलसी का पौधा बहुत सक्षम है। इस तथ्य को आधुनिकों ने भी स्वीकारा
दरअसल इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि तुलसी की पत्तियों से एक खास तरह की गैस उड़ती रहती है। जिसके प्रभाव से रोगाणु नष्ट होते हैं, मच्छर दूर होते हैं तथा वातावरण की अशुद्धि मिटकर वायु शुद्ध होती है।

उदर विकार

तुलसी के तुरंत तोड़े हुए पत्तों को पीसकर निचोड़कर रस निकालें। 5 ग्राम इस रस में थोडा सा सैंधव नमक मिलाकर सेवन करें। इस प्रयोग को प्रातः सायं करते हने से बदहजमी दूर होती है, भूख बढ़ती है
सोंठ चूर्ण 3 ग्राम, तुलसी स्वरस मिलाकर सेवन करें। इससे भी पाचन कया सुधरती है, बदहजमी मिटती, भूख लती है, प्रयोग प्रातः सांय लाभ होने तक लेते रहें।

 

तुलसी के सामान्य प्रयोग

ज्वर

काली मिर्च और पीपल (छोटी पिप्पली) समान भाग लेकर कूटपीस कर चूर्ण बना लें। इसमें तुलसी की पत्तियों को पीसकर रस निकालकर उक्त चूर्ण को इस रस से भिगोयें और छाया में चूर्ण को सुखा लें। आयुर्वेद की भाषा में इस क्रिया को भावना देना कहा जाता है। इस प्रकार से तुलसी के पत्तों के रस की 7 बार भावना दें। उपरोक्त चूर्ण को 7 बार तुलसी रस से भिगोयें और छाया में सुखायें।
इस प्रकार तुलसी के गुणों से समृद्ध यह काली मिर्च और पिप्पली का मिश्रित चूर्ण हर प्रकार के ज्वर को नष्ट कर देता है। सुविधा की दृष्टि से इस चूर्ण की चना बराबर आकार की गोलियां बनाई जा सकती है और तब यह गोलियां कहलायेंगी ‘ज्वरहर वटी’।
कई लोग ऐसे अस्वास्थ्यकर वातावरण में रहते हैं जहां बुखार का जोर प्रायः बना ही रहता है। ऐसे में तुलसी की जड़ की 5 ग्राम मात्रा को 50 ग्राम पानी में उबालें। जब पानी करीब-करीब आधा रह जाये तब छानकर पी लें। यह एक मात्रा है। बच्चों को इसे कम मात्रा में दिया जाना चाहिए। रोज एक-दो बार इसके सेवन से ज्वर से मुक्ति मिलेगी।
.यदि बुखार पुराना हो गया हो तब नियमित रूप से 10 ग्राम तुलसी स्वरस प्रातः काल को पीना उपयोगी है।

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 सर्दी-खांसी

तुलसी की 11 पत्तियां, 2-3 काली मिर्च के दाने, अदरक का एक छोटा टुकड़ा तथा चुटकी भर सेंधा नमक एक कप पानी में डालकर उबालिए। आधा कप पानी रह जाने पर उतारकर छान लीजिये। इसके 3 भाग करके पीने से सर्दी खांसी मिट जाती है। तुलसी एक कफ नाशक औषधि है।

खांसी सूखी भी होती है और बलगमी भी। खांसी एलर्जी से भी होती है और क्षय (टी.बी.) की वजह से भी। अतः खांसी होने पर मूल कारण की जानकारी करें। खांसी से रोग निवारक क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
तुलसी के डेढ़ ग्राम रस में 3 ग्राम मधु और डेढ़ ग्राम अदरक स्वरस मिलाकर पिलायें। यह प्रयोग दिन में 2-3 बार करें। इस प्रयोग से खांसी के अलावा, जुकाम, पार्श्वशूल और बुखार भी दूर होते हैं।
अदरक के रस में तलसी की मंजरी पीसकर मिलायें, फिर इसमें शहद मिलाकर पिलाने से खांसी मिटती है।
तुलसी पत्र स्वरस की 2 ग्राम मात्रा में इतना ही अडूसे के पत्तों का रस मिलाकर चाटने से पुरानी खांसी मिटती है।
बलगमी खांसी होने पर- बड़ी इलायची का आधा ग्राम चूर्ण में 2 ग्राम तुलसी पत्र स्वरस तथा शहद 2 ग्राम मिलाकर चाटने से खांसी में कफ गिरना, गले की खराश और घरघराहट ठीक हो जाती है। इस प्रयोग को दिन में 3 बार करना चाहिए।
सूखी खांसी में तुलसी के डेढ़ ग्राम स्वरस में अदरक और प्याज का इसी मात्रावत रस मिलायें, पश्चात् उसमें 3 ग्राम शहद मिलाकर चाट लें। यह एक मात्रा में हैं। इस प्रकार की 1-1 माना दिन में 3 बार सेवन करें।

वात शोथ –

तुलसी के रस में काली मिर्च का चूर्ण और शुद्ध घी मिलाकर पीने से वात शोथ मिटता है।

धनर्वात –

काली तुलसी की पत्तियों का रस, लहसुन, अदरक, प्याज का रस निकालकर 5 ग्राम रस रोगी को पिलाएं तथा शरीर पर मलें। इससे धनुर्वात मिट जाता है।

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मूत्र-वीर्य विकार –

तुलसी के बीजों को पानी में भिगोकर मिश्री मिलाकर सेवन करने से मूत्र और वीर्य सम्बन्धी रोग मिट जाते हैं।

नपुंसकत्व –

तुलसी के बीज और गुड़ को मिलाकर चने के बराबर गोलियां बना लीजिए। प्रतिदिन सुबह-शाम 1-1 गोली खाकर ऊपर से गाय का धारोष्ण दूध (4 माह तक) पीने से नपुसंकत्व दूर होता है। वीर्य वृद्धि होती है, नसों में शक्ति आती है। पाचन शक्ति में सुधार होता है और अशक्त पुरुष सशक्त बन जाता है।

स्वप्न दोष –

6 ग्राम तुलसी के बीज, मिट्टी के पात्र में रात को पानी में भिगो दीजिए। प्रात:काल 10 दाने बादाम की गिरियां तथा 5 इलायची के बीज डालकर अच्छी तरह पीस लीजिए। आवश्यकतानुसार शक्कर डालकर सेवन कीजिए। इससे स्वप्नदोष बन्द हो जाता है।

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प्रदर रोग –

 तुलसी के पत्तियों का स्वरस 20 ग्राम, चावल के मांड के साथ सेवन करने तथा भात या घी-भात का पथ्य लेने से प्रदर रोग दूर होता है। 2) तुलसी की 2 ग्राम मंजरियाँ खाकर ऊपर 2 केले सुबह-शाम खाने से प्रदर रोग दूर होता है।

बांझपन

तुलसी के बीज में स्निग्धताका जो गण हैं वह स्त्रियों के जननेन्द्रिय संबंधी रोगों में अत्यंत लाभकारक है। यदि स्त्रियों में मासिक धर्म में रुकावट आ जाए तो तुलसी के बीजों से लाभ होता है। गर्भाशय की शद्धि के लिए पान के साथ तुलसी के बीज पीसकर मासिक धर्म के समय 3 दिन तक पिलाइए। इससे गर्भधारण में सहायता मिलती है। तुलसी की पत्तियों के काढ़े के अलावा तुलसी का शर्बत, तुलसी के बीजों का चूर्ण भी उपयोगी सिद्ध हुए है। पहले कुछ समय काढ़े का उपयोग करके अंगों की शुद्धि की जाए और फिर बीज के प्रयोग से गर्भाशय को शक्तिशाली बनाया जाए तो संतानोत्पत्ति
की संभावना अवश्य ही बढ़ सकती है।

निमोनिया

तुलसी की पत्तियों का रस, कालीमिर्च चूर्ण, अदरक का रस, पिप्पली का चूर्ण शहद के साथ सेवन करने से सर्दी, ज्वर, निमोनिया में लाभ होता है। भूख लगती है।

पथरी –

तुलसी के रस में शहद मिलाकर देने से किडनी की पथरी में लाभ होता है। तुलसी किडनी की कार्य शक्ति में
वृद्धि करती है। प्रयोग छ: माह तक करें।

कैंसर

आधा किलो गाय का दूध गरम करके उसमें 50-60 तुलसी के पत्ते डालकर दही जमाना चाहिए। यह दही
अगले 12 घंटे में सेवन करना चाहिए। बासी दही कर प्रयोग न करें। रोज ताजा दही जमाना चाहिए। तेल, मिर्च, खटाई से परहेज करें। जिन्हें कफ या दमा की शिकायत हो वे दूध में तुलसी की पत्ती उबालकर काली मिर्च, सोंठ का मसाला डालकर सुबह-शाम पियें। अनुभव सिद्ध प्रयोग है।

ध्वजभंग

तुलसी की जड़ को पानी में पीसकर शिश्न पर लेप करें।

जिव्हाजाड्य

तुलसी बीज, कालीमिर्च सोंठ, अकरकरा, इन्द्रजौ और चिरायता को पीसकर बिजौरे नींबू के रस में मिलाकर जीभ पर मलने से जीभ की जड़ता नष्ट होकर वह मुलायम हो जाती है।
पूयमेह

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 तुलसी स्वरस में मधु मिलाकर सेवन करना हितकारी है।
तुलसी बीज, छोटी इलायची दाना और कलमी सोरा समान मात्रा में मिलाकर पीसकर 300 मि. ग्राम खाकर ऊपर से दूध में दुगना पानी मिलाकर पीना भी पूयमेह में हितावह है।

आमवात

 तुलसी स्वरस में अजवायन चूर्ण मिलाकर खाना उपयोगी है।
तुलसी पंचांग चूर्ण को गोदुग्ध से सेवन करना भी ठीक है।
तुलसी पत्र, निर्गुण्डी पत्र और अपामार्ग चूर्ण को उष्ण जल से सेवन करना भी हितकारी है। .

 

बाल रोग – बच्चों के उदर रोगों में थोड़ा सा तुलसी के पत्तों के रस में थोड़ी मात्रा में सोंठ का चूर्ण मिलाकर दें। इस उपाय | बच्चों के उदर रोग ठीक होते हैं।
.यदि बच्चे को खांसी की शिकायत हो तब तुलसी पत्र स्वरम तथा काली मिर्च चूर्ण की थोड़ी-थोड़ी मात्रा को मिलाकर शहद से मिलायें और उसे चटायें। लाभ होगा।
जब बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो तब भी यही प्रयोग लाभकारी रहेगा।
यदि बच्चा पेट दर्द से परेशान हो तब तुलसी स्वरस में अदरक स्वरस मिलाकर (समान मात्रा में) कुछ गरम करके पिलायें।
बच्चों के पेट में कीड़े होने की शिकायत आम है। ऐसे में तुलसी के पत्तों का रस कुछ गरम करके दें। इस रस में यदि थोडा सा शहर | मिला दें। तब बच्चों के उल्टी करने की समस्या दूर होगी।
बच्चों की आयु को मध्यनजर रखते हुए मात्रा का निर्धारण करना चाहिए।
•शर्बत-तुलसी पत्र मंजरी सहित 50 ग्राम, 15 ग्राम काली मिर्च, 25 ग्राम अदरक को 500 ग्राम पानी में पकाएं, जब पानी चौथाई हिस्सा रहे तो छानकर इनमें 10 ग्राम छोटी इलायची के बीज बारीक पीसकर मिलाएं और 200 ग्राम चीनी मिलाकर  से पकाएं, जब एक तार की चाशनी हो जाए तो छानकर रख लें। मात्रा निरो आधा चम्मच से डेढ चम्मच। बच्चों को उम्र के हिसाब से तथा । होने बड़ों को 2 से 4 चम्मच तक दिन में 3-4 बार चटाएं।

मुखदौर्गन्ध्य – 2-4 पत्ते भोजन के बाद चबाने से मुख की दुर्गन्ध समाप्त होती है। कई व्यक्तियों की जो यह धारणा है कि तुलसी में पारद होता है। अत: उसे दांतों से नहीं चबाना चाहिए, निराधार है।
तुलसी पत्र 11 नग, बहेड़ा चूर्ण 1 ग्राम, हरिद्रा चूर्ण 3 ग्राम, कालीमिर्च 4 नग, गुड़ 10 ग्राम का फाण्ट बनाकर सेवन करना गुणकारी है।
.तुलसी के बीज 10 ग्राम, अकरकरा 20 ग्राम, शर्करा 30 ग्राम पीस चूर्ण बनालें, 1 ग्राम चूर्ण प्रात: सांय दूध के साथ सेवन करने से भी लाभ पाया जाता है।
शुक्रमेह – बीज चूर्ण का जल के साथ सेवन करना लाभप्रद है। इस चूर्ण में मिश्री भी मिलाई जा सकती है। यह स्वप्नमेह में भी लाभप्रद है।तुलसी स्वरस और दुर्वास्वरस में मधु मेलाकर सेवन करें।
मुखपाक – तुलसी व चमेलीपत्र चबाने से लाभप्रद है।

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