गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय Guru Tegh Bahadur Biography in Hindi

गुरु तेग बहादुर

 गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय Guru Tegh Bahadur Biography in Hindi

गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 01 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था। इनके बचपन का नाम ‘ त्यागमल ‘ था ।

 गुरु हरगोविंद जी के पाँचवें पुत्र थे । उनके चार बड़े भाइयों के नाम बाबा गुरदीता, बाबा अटल राय, बाबा अनी राय,था। सिक्खों के आठवें गुरु हरिकृष्ण जी का देहावसान हो जाने पर ये सिक्खों के नवें गुरु हुए । इन्होंने आनंदपुर साहिब का निर्माण कराया हुआ था ।

13 साल की उम्र में पिता के साथ मुगलों के हमले के विरुद्ध हुए युद्ध में वीरता का परिचय दिया था । इनकी वीरता से प्रभावित होकर इनके पिता ने इनका नाम ‘ त्यागमल ‘ से तेग बहादुर ( तलवार के धनी ) रख दिया ।

गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय (Guru Tegh Bahadur Ji Information in Hindi)मुख्य तथ्य

पुरा नाम Full Name गुरु तेग बहादुर

बचपन का नाम त्यागमल

जन्म तारीख Date of Birth 01 अप्रैल, 1621

जन्म स्थान Place of Birth अमृतसर ,पंजाब

मृत्यु Death 11 नवंबर 1675

पारिवारिक जानकारी Family Information

पिता का नाम Father’s Name गुरु हरगोविंद

माता का नाम Mother’s Name माता नानकी

भाई का नाम Brother’s Name बाबा गुरदित्त, सूरज मल, अनी राय एवं अटल राय

बहन का नाम Sister’s Name बहन बीबी वीरो

पत्नी का नाम Spouse Name माता गुजरी

पुत्र का नाम Children’s Name गुरु गोविन्द सिंह 

गुरु तेग बहादुर जी के वैरागी मन पर युद्धस्थल में हुए भीषण रक्तपात का गहरा प्रभाव पड़ा । इससे उनका मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर अग्रसर हुआ । धैर्य, वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर जी ने एकांत में लगभग 20 वर्ष तक ‘ बाबा बकाला ‘ नामक स्थान पर साधना की । इसके साथ ही उन्होंने धर्म के प्रसार के लिए कई स्थानों का भ्रमण किया । वे आनंदपुर साहिब से वीरतपुर, रोपण, सैफाबाद, खिआला ( खदल ), कुरुक्षेत्र से होते हुए कड़ा मानिकपुर गए । उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से जनमानस में आध्यात्मिक उन्नति, दया, प्रेम और सद्भाव का बीजारोपण किया ।

 गुरु तेग बहादुर जी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में भी गए, जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक व आर्थिक उन्नयन के लिए बहुत से रचनात्मक कार्य भी किए । उन्होंने अंधविश्वासों एवं रूढ़ियों का विरोध किया और नए आदर्श स्थापित किए । परोपकार के लिए कुओं एवं धर्मशालाओं का निर्माण कराया ।

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गुरु तेग बहादुर का विवाह

गुरु तेग बहादुर का विवाह करतारपुर निवासी श्री लाल चंद की पुत्री माता गुजरी से विवाह हुआ, जिनके गर्भ से गुरु गोबिंद सिंह का जन्म विवाह के 34 वर्ष बाद 22 दिसम्बर 1666 को हुआ था।

गुरु गद्दी सभालना

1664 में, गुरु हर कृष्ण का स्वास्थ्य चेचक से बुरी तरह प्रभावित हुए थे। जिसके कारण अंततः 30 मार्च, 1664 को उनकी मृत्यु हो गई थी । उनकी मृत्यु के समय गुरु हर कृष्ण से पूछा गया कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा जिस पर उन्होंने बस ‘बाबा’ शब्द कहा।  और ‘बकला’, जिसका अर्थ था कि अगला गुरु बकाला में मिलेगा। जब अगले सिख गुरु के बारे में खबर फैली तो कई धोखेबाज बकाला में बस गए और उन्होंने मौद्रिक और अन्य तुच्छ लाभ के लिए अगले गुरु होने का दावा किया। इससे सिखों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई क्योंकि इसने वास्तविक सिख गुरु को खोजने का कार्य बहुत कठिन बना दिया।

इस बीच बाबा माखन शाह लबाना नाम का एक धनी व्यापारी एक बार एक भयंकर तूफान में फंस गया, जिसने उसका जहाज लगभग पलट दिया। घटना के दौरान, बाबा माखन शाह ने असहाय महसूस किया और इसलिए भगवान से प्रार्थना की कि वह गुरु को 500 सोने के सिक्के चढ़ा दें, यदि वह तूफान से बच जाते हैं। चमत्कारिक रूप से बचाए जाने के बाद, बाबा माखन शाह गुरु हर कृष्ण की तलाश में गए जब उन्हें गुरु की मृत्यु की सूचना मिली। उन्हें यह भी बताया गया कि गुरु हर किशन ने कहा था कि अगला गुरु बकाला में मिलेगा।

अगस्त 1664 में जब बाबा माखन शाह लबाना बकाला पहुंचे, तो वे 22 धोखेबाजों को नौवें सिख गुरु होने का दावा करते हुए देखकर हैरान रह गए। बाबा माखन शाह ने उनकी प्रार्थना को याद किया और प्रत्येक धोखेबाज को दो दीनार देने लगे। जैसी कि उम्मीद थी, दो दीनार पाकर सभी धोखेबाज खुशी-खुशी चले गए।

बाबा माखन शाह, जो वास्तविक गुरु को न जानने पर निराश थे, उन्हें 10 अगस्त, 1664 को तेग बहादुर ले जाया गया। तेग बहादुर को देखकर, बाबा माखन शाह ने उनके सामने दो दीनार रखे, जिस पर तेग बहादुर ने कहा, ‘क्यों दिया कब दिया आप 500 का वादा करते हैं?’ इन शब्दों को सुनकर बाबा माखन शाह ने तेग बहादुर के सामने 500 सोने के सिक्के रख दिए और जोश से चिल्लाने लगे, ‘गुरु लाधो रे’ (मुझे गुरु मिल गया है)। इसके बाद, तेग बहादुर को नौवें सिख गुरु के रूप में घोषित किया गया।

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गुरु तेग बहादुर की शहादत

जब तत्कालीन मुगल सम्राट औरंगजेब ने कश्मीरी ब्राह्मण विद्वानों को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया।  तो ब्राह्मणों ने समाधान के लिए गुरु तेग बहादुर की ओर रुख किया। गुरु तेग बहादुर जी ने लोगों का बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराने का विरोध किया । गुरुजी ने औरंगजेब से कहा यदि तुम अपने बल प्रयोग से लोगों का धर्म परिवर्तन करवाओगे तो यह इस्लाम धर्म के आदर्शों के विरुद्ध होगा । गुरु ने उन्हें एक संदेश के साथ औरंगजेब वापस भेज दिया कि मुगल सम्राट ब्राह्मणों को परिवर्तित कर सकता है यदि वह गुरु तेग बहादुर को परिवर्तित कर सकता है।

औरंगजेब यह सुनकर आग बबूला हो गया । उनकी घोषणा के कुछ दिनों बाद, गुरु तेग बहादुर को उनके कुछ अनुयायियों, भाई मति दास और भाई दयाल दास के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। जब तीनों ने प्रताड़ित होने के बावजूद इस्लाम कबूल करने से इनकार कर दिया तो औरंगजेब ने उन्हें फांसी देने का आदेश दिया। जब मती दास की मृत्यु हुई, तो दयाल दास को उबलते पानी के एक बड़े बर्तन में फेंक दिया गया। 24 नवंबर, 1675 को मुगल शासक के सामने खड़े होने के लिए गुरु तेग बहादुर का दिल्ली में सिर कलम कर दिया गया था।

 गुरु तेग बहादुर जी ने हँसते – हँसते अपने प्राणों का बलिदान कर दिया । मानवता के हित में उनका यह त्यागमय बलिदान अतुलनीय व अविस्मरणीय है । गुरु तेग बहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा शीशगंज साहिब है । यह उनकी बहुत सी रचनाएँ महला  में संग्रहीत हैं । गुरुद्वारे के निकट लाल किला, फिरोजशाह कोटला औ जामा मस्जिद भी विद्यमान हैं ।

 गुरु तेग बहादुर जी ने सहनशीलता, कोमलता और सौम्यता की मिसाल कायम करने के साथ हमेशा यही संदेश दिया कि किसी भी इंसान को न तो डराना चाहिए और न ही डरना चाहिए । इसकी मिसाल इनका बलिदान है, जिसके कारण इन्हें ” हिंद की चादर ” या ” भारत की ढाल ” भी कहा है । गुरु जी ने दूसरों को बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी ।

 विश्व के इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्राणों की आस देने वालों में गुरु तेग बहादुर जी का स्थान अद्वितीय है । गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान न केवल पालन के लिए, अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए था । उनके लिए धर्म सांस्करित मूल्यों और जीवन विधान का नाम था । इसलिए धर्म के सत्य – शाश्वत मूल्यों के लिए गुरु तेग बहादुर का बलिदान वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के लिए एक परम साहसिक अभिवातथा ।

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महत्वपूर्ण तथ्य

गुरु तेग बहादुर नौवें सिख गुरु थे।  जिन्हें अक्सर सिखों द्वारा ‘मानव जाति के उद्धारकर्ता’ के रूप में सम्मानित किया जाता था।

एक महान शिक्षक के रूप में जाने जाने वाले गुरु तेग बहादुर एक प्रसिद्ध योद्धा, विचारक और कवि भी थे। जिन्होंने अन्य बातों के अलावा, भगवान की प्रकृति, मन, शरीर और शारीरिक और आध्यात्मिक लगाव का विस्तृत विवरण लिखा था।

उनके लेखन को 116 काव्य भजनों के रूप में पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में रखा गया है।

वह एक उत्साही यात्री भी थे और भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचार केंद्र स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

इनमें से एक मिशन के दौरान, उन्होंने पंजाब में चक-ननकी शहर की स्थापना की जो बाद में पंजाब में आनंदपुर साहिब का हिस्सा बन गया।

वर्ष 1675 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के तहत गुरु तेग बहादुर को दिल्ली में मार दिया गया था।

गुरु तेग बहादुर का बचपन का नाम क्या था ?

गुरु तेग बहादुर जी के बचपन का नाम ‘ त्यागमल ‘ था । मुगलों के हमले के विरुद्ध हुए युद्ध में वीरता का परिचय दिया था। इनका नाम ‘ त्यागमल ‘ से तेग बहादुर ( तलवार के धनी ) रख दिया गया था।

गुरु तेग बहादुर को किसने मारा था ?

वर्ष 1675 में मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश के तहत गुरु तेग बहादुर को दिल्ली में मार दिया गया था।

गुरु तेग बहादुर का जन्म कहां हुआ था ?

गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 01 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था।

गुरु तेग बहादुर के पिता का नाम क्या था ?

गुरु तेग बहादुर के पिता का नाम गुरु हरगोविंद था।

गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के कौन से गुरु थे?

गुरु तेग बहादुर सिख धर्म के नवे गुरु थे

गुरु तेग बहादुर की पत्नी का क्या नाम था?

गुरु तेग बहादुर की पत्नी का नाम माता गुजरी था।

गुरु तेग बहादुर को हिंद की चादर क्यों कहा जाता है ?

 गुरु तेग बहादुर जी ने सहनशीलता, कोमलता और सौम्यता की मिसाल कायम करने के साथ हमेशा यही संदेश दिया कि किसी भी इंसान को न तो डराना चाहिए और न ही डरना चाहिए । इसकी मिसाल इनका बलिदान है, जिसके कारण इन्हें ” हिंद की चादर ” या ” भारत की ढाल ” भी कहा है ।

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