Rahim ke dohe class 9 | रहीम के दोहे कक्षा 9
rahim ke dohe class 9 रहीम का जन्म लाहौर में 1556 ई. में हुआ था। उनके पिता बैरम खान हुमायूँ के सबसे भरोसेमंद प्रमुखों में से एक थे। हुमायूँ की मृत्यु के बाद, बैरम खान ने तेरह वर्षीय अकबर का राज्याभिषेक किया। अब्दुर्रहीम खानखाना अपनी रचनाओं के कारण आज भी जीवित हैं। अकबर के नवरत्नों में वे अकेले ऐसे रत्न थे जिनका कलम और तलवार पर समान अधिकार था। रहीम का जीवन परिचय पढ़े।
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रहीम के दोहे कक्षा 9 rahim ke dohe class 9 explanation
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥
शब्दार्थ:-
चटकाय = चटकना, टूटना ।
परि = पड़ना, पड़ जाना ।
टूटे = टूट जाना
गाँठ परि जाय = गांठ पड़ जाना
अर्थ रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का धागा कभी नहीं टूटना चाहिए क्योंकि यह एक बार टूट जाता है। तो इसे दोबारा जोड़ने पर यह सिर्फ गाँठ बन जाता है। दूसरे शब्दों में प्रेम का बंधन उस नाजुक धागे की तरह होता है। जहां जरा सा आपसी झगडा होने पर टूट जाता है और एक बार टूट जाता है दोबारा जोड़ने पर उसमें गांठ बन जाती है।
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rahim ke dohe class 9 summary rahim ke dohe class 9 solutions
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
शब्दार्थ:
एकै = एक।
साधे = साथ।
मूलहिं = जड़ में।
सींचिबो = सिंचाई करना।
अघाय = तृप्त।
अर्थ रहीम दास जी कहते हैं कि एक समय में एक ही काम करना चाहिए। एक ही समय में एक से अधिक कार्य करने से कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं होता है, अर्थात उनमें से कोई भी पूरा नहीं होगा। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को एक समय में एक ही काम करना चाहिए। क्योंकि बाकी इसी तरह साबित होंगे। जैसे फूल और फल पौधे में जड़ पर पानी डालने और हर फूल और फल को पानी न देने से आते हैं।
Hindi rahim ke dohe class 9
चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
शब्दार्थ:
रमि = रमना
अवध-नरेस = अवध के राजा ,श्री राम ।
बिपदा = विपत्ति , मुसीबत।
आवत = आना
अर्थ रहीम दास जी कहते हैं कि जब राम जी वनवास में गए तब उस समय चित्रकूट में कुछ समय बिताया था । जब किसी व्यक्ति को आपदा का सामना करना पड़ता है तो वह चित्रकूट ही जाता है ।
धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
शब्दार्थ:
धनि = धन्य
पंक = कीचड़
लघु = छोटा
अघाय = जिसकी इच्छा या वासना पूरी हो चुकी हो
उदधि = सागर
पिआसो = प्यासा
अर्थ: रहीम जी कहते हैं कीचड़ का पानी जिसे हम गंदा मानते हैं जो हमारी प्यास बुझाता हैं। इसलिए यह गंदा पानी धन्य है। लेकिन इसके विपरीत उस विशाल महासागर का जल जो हमारी प्यास बुझाता हैं।
नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।
ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥
शब्दार्थ: नाद = आवाज़, संगीत की ध्वनि
रीझि = प्रसन्नता, खुश होकर
मृग = हिरण
अर्थ रहीम दास जी कहते हैं कि हिरण संगीत से इतना प्रसन्न हो जाता है। कि उसके लिए अपने शरीर तक निछावर कर देता है। कुछ लोग इसी प्रकार के होते हैं। कि प्रेम में इतना मुक्त हो जाते हैं। कि अपना सब कुछ लुटा देते हैं। और कुछ लोग पशुओं से भी बदतर होते हैं। तुम दूसरों के लिए दूसरों से लेने की भावना रखते हैं। लेकिन कुछ देने की भावना नहीं रखते।
बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥
शब्दार्थ:
बिगरी = बिगड़ी।
फटे दूध = फटा हुआ दूध।
मथे = मरना।
माखन = मख्खन
अर्थ रहीम दास जी कहते हैं जब कोई बात बिगड़ जाती है तो वे आसानी से नहीं बनती है। जब किसी के दिल में कड़वाहट आ जाती है। उसे हटाना बहुत मुश्किल होता है। रहीम दास जिसकी तुलना फटे हुए दूध से करते हैं। जिसको मथने के बाद भी मक्खन नहीं होता है।
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥
शब्दार्थ:
बड़ेन = बड़ा , विशाल।
लघु = छोटा।
डारि डालना
आवे = आना।
तरवारि = तलवार।
अर्थ रहीम दास जी कहते हैं कि बड़े लोगों को देखकर अपने हथियार कभी नहीं डालना चाहिए। क्योंकि कभी-कभी बड़े कामों को करने के लिए छोटे कामों की भी जरूरत होती है उदाहरण के रूप में जहां से जो काम सुई कर सकती है वह काम तलवार नहीं कर सकती ।
रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय।
बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥
शब्दार्थ:
निज = अपना।
संपत्ति = धन दौलत , पैसा।
बिपति = विपत्ति , मुसीबत।
सहाय = सहायता , मदद।
जलज = कमल।
रवि = सूरज।
अर्थ रहीम दास जी कहते हैं जिसके पास कोई धन नहीं है। उसकी विपत्ति के समय कोई भी सहायता नहीं करेगा। गुलाब के सूख जाने के बाद सूर्य किरणें भी उसे नहीं बचा सकते।
रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥
शब्दार्थ:
पानी = जल , शान ,
बिनु = बिना , बगैर।
मानुष = मनुष्य , इंसान।
चून = चूना।
अर्थ रहीम दास जी कहते हैं कि विनम्रता चमक और जल बहुत जरूरी है। जब मनुष्य में विनम्रता नहीं रहती है। उसका कोई महत्व नहीं रहता उसी तरह अगर मोती में कोई चमकना हो वह बेकार है।
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
शब्दार्थ:-
निज = अपने ।
बिथा = कष्ट, दर्द।
बाँटि = बांटना, वितरण करना।
सुनि = सुनकर।
अठिलैहैं = मज़ाक उड़ाना।
अर्थ रहीम दास जी कहते हैं कि। विनम्रता चमक और जल बहुत जरूरी है। जब मनुष्य में विनम्रता नहीं रहती है। उसका कोई महत्व नहीं रहता उसी तरह अगर मोती में कोई चमकना हो वह बेकार है। रहीम दास जी कहते हैं कि। मन की व्यथा हमेशा मन नहीं रखनी चाहिए। दूसरे जब आपकी मन की व्यथा जानते हैं। वह सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं। उसको दूर करने की कोशिश नहीं करते हैं।
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