Rahim ke Dohe class 7 रहीम के दोहे कक्षा 7
Rahim ke Dohe Class 7 rahim ke dohe in hindi class 7 रहीम का जन्म लाहौर में 1556 ई. में हुआ था। उनके पिता बैरम खान हुमायूँ के सबसे भरोसेमंद प्रमुखों में से एक थे।
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हुमायूँ की मृत्यु के बाद, बैरम खान ने तेरह वर्षीय अकबर का राज्याभिषेक किया। अब्दुर्रहीम खानखाना अपनी रचनाओं के कारण आज भी जीवित हैं। अकबर के नवरत्नों में वे अकेले ऐसे रत्न थे जिनका कलम और तलवार पर समान अधिकार था। रहीम का जीवन परिचय पढ़े।
Rahim Ke Dohe Class 7 रहीम के दोहे कक्षा 7
कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।
बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत ।।
शब्दार्थ:- कहि – कहना, संपति – धन, सगे – रिश्तेदार (अपने), बनत – बनते है, रीत – तरीका, बिपति – संकट (कठिनाई), कसौटी जे कसे – बुरे समय में जो साथ में, तेई – वे ही, साँचे – सच्चे, मीत – मित्र ।
रहीम दास जी कहते हैं कि जब तक आपके पास धन्य संपत्ति होती है। तब तक आप के सभी मित्र होते हैं। लेकिन जैसे ही आपके पास। विपत्ति आती है। सभी लोग आपसे दूर भागने लगते हैं। लेकिन सच्चा मित्र वही होता है। जो आपके विपत्ति में काम आता हूं।
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रहीम के दोहे class 7
जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।
रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह ।।
शब्दार्थ:- परे – पड़ने पर, जल – पानी, जात- जाता, बहि – बहना, तजि – छोड़ना, मीनन – मछलियाँ, मोह – लगाव, मछरी – मछली. नीर – जल, तऊ – तब भी, न – नहीं, छाँड़ति – छोड़ती, छोह- प्रेम ।
रहीम दास जी कहते हैं कि जैसे मछली को जला डाला जाता है। मछली का जाल में फस जाती। जैसे जाल से मछली को निकाला जाता है। मछलियां प्राण त्याग देते हैं।
तरूवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति-सचहिं सुजान ।।
शब्दार्थ:- तरुवर – वृक्ष, नहिं – नहीं, खात – खाना, सरवर – सरोवर (तालाब), पियत – पीते, पान – पानी, कहि – कहते, परकाज – दुसरो के लिए काम, हित – भलाई, सम्पति – धन (दौलत), सचहिं – संग्रह (बचत), सुजान – सज्जन।
रहीम दास जी कहते हैं कि वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाते हैं। तलाब कभी अपना पानी नहीं पीते हैं। इसी प्रकार सज्जन लोग वही होते हैं। जो दूसरों के हित के लिए अपनी संपत्ति का संचय करते हैं।
थोथे बादर क्वार के, ज्यों रहीम घहरात।
धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात ।।
शब्दार्थ:- थोथे – खोखले. बादर – बादल, क्वार – आश्विन ( सितंबर-अक्टूबर का महीना), ज्यों- जैसे, घहरात – गर्जना, धनी – धनवान, निर्धन – गरीब, भए – हो जाते है, पाछिली – पिछली ।
रहीम दास जी कहते हैं कुंवार के मांस में आकाश में बिना बादल केवल गरजते हैं लेकिन बरसते नहीं है। धनी पुरुष भी बिल्कुल उसी तरह होते हैं। जो गरीब हो जाने पर सिर्फ घमंड भरी बातें करते हैं।
धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह।
जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह।।
शब्दार्थ:- रीत- ढंग, सीत- सर्दी , घाम – धुप, औ- और, मेह- बारिश, परे – पड़ना, सो- सारा, सहि- सहना, त्यों – वैसे, देह- शरीर।
रहीम दास जी कहते हैं कि। धरती की यही रीत है यह धूप सर्दी सब कुछ सह लेती है। मनुष्य का शरीर भी इसी तरह होना चाहिए। उसे सुख-दुख सब कुछ सह लेना चाहिए।
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