नीति के दोहे Niti ke Dohe
Niti ke Dohe नमस्कार दोस्तों इस दोस्त मैं आपको नीति के दोहे बताये जाना है नीति का अर्थ है उचित कार्य करने की कला यह महान व्यक्तियों कबीरदास रहीमदास तुलसीदास बिहारी के दोहे से लिया गया है यह आपके जीवन को उचित दिशा दिखाने में मदद करेंगे ।
जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं कोशिश करने वालों को सब कुछ मिलता है, जैसे मेहनती गोताखोर गहरे पानी में जाकर कुछ जरूर लाता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कोशिश नहीं करते हैं और कुछ नहीं पाते हैं। पढ़े कबीर के दोहे
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं कोशिश करने वालों को सब कुछ मिलता है, जैसे मेहनती गोताखोर गहरे पानी में जाकर कुछ जरूर लाता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कोशिश नहीं करते हैं और कुछ नहीं पाते हैं।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।।
अर्थ: कबीर दास कहते हैं यदि कोई मीठी बोली बोलना जानता है, तो वह जानता है कि वाणी एक अमूल्य रत्न है। इसलिए आप शब्दो का प्रयोग सोच समझ कर करना चाहिए ।
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।
अर्थ : कबीर दास कहते हैं न अधिक बोलना ठीक है और न ही अधिक चुप रहना अच्छा है। जैसे बहुत अधिक बारिश अच्छी नहीं होती है और बहुत अधिक धूप भी अच्छी नहीं होती है।
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहिं सुजान।
रहीम दास जी कहते हैं कि वृक्ष कभी अपना फल नहीं खाते हैं। तलाब कभी अपना पानी नहीं पीते हैं। इसी प्रकार सज्जन लोग वही होते हैं। जो दूसरों के हित के लिए अपनी संपत्ति का संचय करते हैं पढ़े रहीम के दोहे
रहिमन निज मन की व्यथा, मन ही राखो गोय।
सुनि इटलैहैं लोग सब, बाँट न लैहैं कोय।
रहीम दास जी कहते हैं कि अपनी मन की व्यथा मन में रखनी चाहिए उसे किसी के साथ बैठने नहीं चाहिए क्योंकि व्यथा को सुनकर लोग हंसी लेते हैं उसको बाटता कोई नहीं है।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े जुड़े तो गाठ पड़ जाय।।
रहीम दास जी कहते हैं प्रेम का संबंध बहुत ही मधुर होता है उसे कभी नहीं तोड़ना चाहिए अगर आप इसे तोड़ देते हैं तो प्रेम का संबंध वापस उतना मधुर नहीं हो पाता है अगर उस संबंध वापस जोड़ा भी आता है फिर भी हृदय में कटुता पड़ी रहती है।
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोले बोल।
‘रहिमन’ हीरा कब कहै, लाख टका मेरा मोल॥
रहीम दास जी कहते हैं कि कभी भी स्वयं की बुराई नहीं करनी चाहिए बड़ी-बड़ी बातें नहीं करनी चाहिए क्योंकि हीरो इतना अनमोल होता है कभी अपनी कीमत नहीं बताता कि मैं कितना अनमोल ह ।
आवत ही हर्ष नहीं, नैनन नहीं सनेह।
तुलसी तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह।
रहीम दास जी कहते हैं कि उस जगह पर कभी नहीं जाना चाहिए जहां पर जाने पर लोग आपको देखकर खुश नहीं होते आपको देखकर उनकी आंखों में प्यार नहीं होता।
तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन इक मंत्र है, तज दे बचन कठोर।।
तुलसीदास जी कहते हैं मीठे वचन बहुत ही अनमोल होते हैं मीठे वचन बोलने से प्रसन्ता छा जाती है यह एक वशीकरण मंत्र जैसा है आता अपने कड़वे वचन को छोड़कर मीठे वचन बोलना चाहिए। पढ़े तुलसीदास का जीवन परिचय
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग।
रहीम दास जी कहते हैं कि जो लोग उत्तम प्रकृति के होते हैं वह लोग गलत संगति भी कर सकते हैं क्योंकि उनके ऊपर गलत संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है वे लोग चंदन की तरह होते हैं जिस पर जिस पर सर्प चिपके रहते हैं लेकिन चंदन अपने शीतलता नहीं छोड़ता है।
जप माला छापा तिलक, सरै न एकौ कामु ।
मन-काँचै नाचै वृथा, साँचे राँचे रामु।।
कवि बिहारी जी कहते हैं कि भक्ति के नाम पर दिन भर माला जपना और दिखावे के लिए माथे पर तिलक लगाना आदि से कोई कार्य सिद्ध नहीं होता अर्थात् भक्ति के नाम पर, धार्मिक दिखावे से कोई लाभ नहीं, बल्कि सच्चे हृदय से होता है। उनकी भक्ति से ही राम चिपके रहेंगे और ईश्वर की प्राप्ति होगी। सच्ची भक्ति से ही भगवान प्रसन्न होते हैं।
बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु।
भलौ-भलौ कहि छोड़िये, खोटै ग्रह जपु दानु ||
कवि बिहारी जी कहते हैं कि जिस मनुष्य के शरीर में बुराई का वास होता है, उसी का सम्मान किया जाता है। संसार की यही नीति है कि जो व्यक्ति दुष्ट एवं बुरा है, जगत् में उसी का सम्मान किया जाता है, जब अच्छा समय होता है तो भला-भला कहकर छोड़ दिया जाता है। और जब बुरा समय आता है तो मनुष्य उसके लिए दान व जाप करने लगता है अर्थात् अच्छे समय में मनुष्य ईश्वर को भूल जाता है और बुरा समय आने पर वह ईश्वर की स्तुति करने लगता है। पढ़े बिहारी के दोहे
नर की अरु नल-नीर की गति एकै करि जोई।
जेतौ नीचो ह्रै चलै, तेतौ ऊँचौ होई।
प्रस्तुत दोहे में मानवीय विनम्रता के महत्व का वर्णन किया गया है। कवि बिहारी जी कहते हैं कि मनुष्य की स्थिति नल के पानी की तरह है। वे एक ही हैं। जैसे नल का पानी नीचे की ओर जाता है, इसमें पानी जितना ऊपर उठता है, यानी जल स्तर उतना ही अधिक होता है। विनम्रतापूर्वक यानी उसकी श्रेष्ठता यानी दुनिया में उसकी इज्जत उतनी ही बढ़ती जाती है।
बढ़त-बढ़त संपति-सलिलु, मन-सरोजु बढ़ि जाइ।
घटत-घटत सु न फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ।।
कवि बिहारी जी कहते हैं कि जब मनुष्य का सम्पत्तिसपी जल बढ़ता है, तो उसका मनरूपी कमल भी बढ़ जाता है अर्थात जैसे-जैसे मनुष्य के पास धन बढ़ने लगता है, वैसे से ही उसकी इच्छाएं भी बढ़ने लगती है, परन्तु जब सम्पत्तिरूपी जल घटने लगता है, तब मनुष्य का मनरूपी कमल नीचे नहीं आता, मते ही वह जह सहित नष्ट न हो जाए अर्थात् धन चले जाने पर भी उसकी इच्छारें कन नहीं होती; जैसे जल के बढ़ने पर कमल नाल बढ़ जाती है, लेकिन जल घटने पर यह नहीं
घटती।
Neeti ke doha