भारत पर ईरानी और यूनानी आक्रमण | Iranian and Greek invasion of India
भारत पर ईरानी आक्रमण
जिस समय भारत में मगध साम्राज्य का विकास हो रहा था उसी समय भारत के उत्तर – पश्चिम में छोटे – छोटे अनेक राज्य स्थापित हो गये थे ।
Table of Contents
इन राज्यों की निर्बलता का लाभ उठाकर भारत के पश्चिम की ओर से आक्रमण हो रहे थे । इनमें पहला आक्रमण पारसियों का था ।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ‘ हखामनी ‘ के वंश में ‘ कुरुष ‘ Taurus ) नाम का राजा हुआ । कुरुष अत्यन्त बलशाली एवं महत्त्वाकांक्षी शासक था ।
इसी के समय पारसीक आक्रमण पारसीक राजा – कुरुष, कालान्तर में उसने पुनः काबुल की घाटी मार्ग से भारत पर आक्रमण किया ।
उसने इस बार ‘ कपिशा नगरी का विध्वंस कर लगभग 559 ई ० पू ० से 529 ई ० पू ० तक राज्य किया ।
स्ट्रेबो का मत है कि उसने दारा प्रथम, क्षयार्स और पश्तो बोलनेवाले प्रदेश को जीत लिया ।
साइरस
माना जाता है कि भारत पर विजय साइरस के समय 535 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुई थी। साइरस ने सिंधु नदी के तट विजय प्राप्त क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया
द्रारा प्रथम
द्रारा प्रथम ( Dovius ) ने जो इस वंश का तृतीय बादशाह था, 521 ई ० पू ० से 485 ई ० पू ० तक राज्य किया । इसने आक्रमण करके भारत के कम्बोज, पश्चिमी गान्धार और सिन्धु प्रदेश पर अधिकार कर लिया ।
इसका साम्राज्य 23 प्रान्तों में बटा था जिसमें कम्बोज, गान्धार तथा सिन्धु प्रान्त भी सम्मिलित थे ।
दारा के उत्तराधिकारी ‘ क्षयार्स ‘ ( Keryars ) का नत्व भी इन प्रान्तों पर बना रहा, कि
न्तु बाद में उसके उत्तराधिकारियों के समय फारसी आधिपत्य शिथिल हो चला ।
पारसी आक्रमण का प्रभाव –
पारसीक आक्रमण का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा फिर भी इस आक्रमण के अलिखित प्रभाव दृष्टिगोचर होते हैं इस आक्रमण से फारस तथा भारत के मध्य व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुआ ।
पारसीक आक्रमणों ने यूनानियों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरणा प्रदान की ।।कुछ विद्वानों के अनुसार अशोककालीन वास्तुकला ईरानी कला से प्रभावित है ।
ऐसा अनुमान है कि अशोक द्वारा पश्चिमी लेखों में प्रयोग की गयी ‘ खरोष्ठी लिपि ‘ ईरान से ही भारत आयी ।
यूनानी आक्रमण
सिकन्दर महान् परिचय – उत्तर – पश्चिम में दूसरा महत्त्वपूर्ण आक्रमण यूनान के राज्य मेसीडोनिया के शासक सिकन्दर के नेतृत्व मेंवह ईसा से 356 वर्ष पूर्व जन्म हुआ था । सिकन्दर के पिता का नाम फिलिप था । प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तू से उसने प्राप्त की और एक हत्यारे द्वारा अपने पिता फिलिप के मारे जाने पर वह 20 वर्ष की अवस्था में ही सिंहासन पर आरूढ़ दो वर्ष पश्चात् अर्थात् ईसा से 334 वर्ष पूर्व, बाईस वर्ष की अवस्था में, एशिया की विजय के लिए उसने प्रस्थान किया या माइनर से होता हुआ वह ईसा से 332 वर्ष पूर्व सीरिया तथा फिनीशिया पहुंचा ।
फिनीशिया के नगर टाइरास ने सात नों तक उसका प्रतिरोध किया, परन्तु अन्त में यूनानियों ने नगर में प्रवेश किया और वहां के निवासियों को मौत के घाट तारा । उसने 30,000 को दास बनाकर बेच दिया । इसके पश्चात् सिकन्दर मिस्र की ओर बढ़ा तथा उस पर विजय प्राप्त कर व्य सागर के तट पर उसने सिकन्दरिया ( अलेक्जेण्ड्रिया ) नामक नगर की स्थापना की ।
इसके पश्चात् यूनानियों ने पुनः पूर्व की ओर प्रस्थान किया ।
उन्होंने ईसा से 331 वर्ष पूर्व सितम्बर में टाइग्रिस नदी की तथा ईरान के सम्राट् दारा तृतीय का सामना किया । बहुत थोड़े प्रयास से उसे विजय प्राप्त हो गयी और दारा भाग कला ।
फारस का प्रसिद्ध नगर परसीपॉलिस नष्ट – भ्रष्ट हुआ । वहाँ का राजमहल जला दिया गया ।
कैस्पियन सागर के तट होता हुआ सिकन्दर खुरासान और पार्थिया को रौंदकर हिन्दूकुश को पार करता हुआ भारत की सीमा पर आ पहुँचा । बैक्ट्रिया विजय के पश्चात् अब उसने भारत पर आक्रमण करने का निश्चय कर लिया
सिकन्दर का भारत पर आक्रमण
सिकंदर खैबर दर्रे से होते हुए भारत की ओर बढ़ा और सिंध पहुंचा। तक्षशिला के शासक अम्भी ने आसानी से सिकन्दर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया ।
जब वह झेलम पहुंचा तो सिकंदर का सामना पोरस के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। हालाँकि सिकंदर ने पोरस को हरा दिया था लेकिन वह पोरस की बहादुरी और साहस से प्रभावित था।
उसने अपना जीता राज्य उसे लौटा दिया, और उसे अपना सहयोगी बना लिया। फिर वह ब्यास नदी की ओर चल पड़ा। वह सिंध को पर कर आगे आक्रमण करना चाहता था लेकिन यूनानी सैनिक युद्ध से बहुत थके हुए थे और आगे आक्रमण नहीं करना चाहत्ते थे । भारत के गर्म मौसम उन्हें पसंद नहीं आया ।
उन्होंने सिंधु के तट भारतीय युद्ध कला के गुणों का भी अध्यन किया।
यूनानी आक्रमण राजनीतिक प्रभाव
सिकंदर के भारत पर आक्रमण से राजनीतिक प्रभाव पड़ा । सिकंदर ने मौजूदा कई राज्यों की शक्ति को नष्ट कर दिया और उनमें से कुछ के स्वतंत्र अस्तित्व को समाप्त कर दिया।
यूनानियों जाने के कुछ समय बाद एक शक्तिशाली भारतीय साम्राज्य के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई तो उत्तर-पश्चिमी राज्यों को आसानी से जीत लिया गया और वे उस साम्राज्य का हिस्सा बन गए। सिकंदर ने वास्तव में चंद्रगुप्त मौर्य के कार्य को सुगम बनाया और यूनानियों द्वारा आक्रमण किए गए क्षेत्रों में उसकी शक्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
सिकंदर ने नंद साम्राज्य जैसे भारत की सच्ची राजनीतिक शक्ति से नहीं लड़ा। सिकंदर भारत की बहुत छोटी शक्तियों से लड़े और जीते। हालाँकि पोरस जैसे छोटे राजा ने उसे भारतीय पक्ष में साहस दिखाया। ग्रीक लेखकों द्वारा बनाया गया राजनीतिक मिथक कि पश्चिमी सेना भारतीय सेना से श्रेष्ठ थी तब व्यर्थ साबित हुई जब चंद्रगुप्त मौर्य ने न केवल यूनानियों को भारतीय धरती से निष्कासित कर दिया बल्कि सिकंदर के बाद सबसे शक्तिशाली यूनानी शासक सेल्यूकोस निकेटर को हरा दिया । इसका क्षेत्र मे एक बड़े हिस्से को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा। राजनीतिक रूप से सिकंदर महान के आक्रमण के तुरंत बाद भारत एशिया में एक महान शक्ति के रूप में उभरा।
यूनानी आक्रमण व्यपारीक प्रभाव
सिकंदर के आक्रमण ने पश्चिम में यूनानी दुनिया और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच भूमि मार्ग का रास्ता प्रशस्त हुआ । उनकी यात्राओं और अभियानों ने पश्चिमी और पूर्वी लोगों के भौगोलिक क्षितिज का विस्तार किया। परिणामस्वरूप, भारत और पश्चिम के बीच भूमि व्यापार और समुद्री व्यापार का विकास होने लगा। फारसी साम्राज्य के विनाश के बाद,जिस पर यूनानियों ने शासन करना शुरू किया उसके माध्यम से भारत और पश्चिमी एशिया और यूरोप के साथ संपर्क की रेखाएं अधिक प्रभावी और प्रत्यक्ष हो गईं।
पश्चिम में भूमि मार्ग मुख्य रूप से काबुल, बलूचिस्तान में मुल्ला दर्रा और गेड्रोसिया से होकर जाता था। अपने विजित क्षेत्रों में, सिकंदर ने ग्रीक शहरों सैन्य चौकियों और बस्तियों की स्थापना की। वे समय के साथ वाणिज्य के केंद्रों के रूप में विकसित हुए और उनमें से कई लंबे समय तक जीवित रहे।