पृथ्वी की आयु कितनी है Prithvi ki Aayu Kitni hai

पृथ्वी की आयु कितनी है Prithvi ki Aayu Kitni hai

पृथ्वी की आयु कितनी है Prithvi ki Aayu Kitni hai

Prithvi ki Aayu Kitni hai पृथ्वी की आयु कितनी है जिस प्रकार सौर्य मण्डल एवं पृथ्वी की उत्पत्ति की समस्या काल के विषय में भी पर्याप्त मतभेद है । विभिन्न विद्वानों ने अपने एक जटिल एवं रहस्यमयी समस्या है उसी प्रकार उसके निर्माण प्रयोगों तथा तर्कों के आधार पर पृथ्वी की आयु की वास्तविक गणना करने का प्रयास किया है। परन्तु उनके परिणाम भी एक न होकर भिन्न-भिन्न हैं। वास्तव में पृथ्वी का निर्माण कब हुआ?

इस प्रश्न का समाधान ठीक तौर पर खोज निकालना अगर असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। इसका प्रमुख कारण समुचित प्रमाणों का अभाव ही बताया जा सकता है। साथ ही साथ जिन साधनों का आश्रय इस क्षेत्र में लिया जाता है, वे स्वयं एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। आंखों के सामने घटित अधिकतर बातें सत्य होती हैं।

भूगर्भिक प्रक्रियाएँ इतनी मन्द गति से कार्य करती हैं कि उनका पर्यवेक्षण कोई व्यक्ति अपने लघु जीवन काल में नहीं कर सकता है। उदाहरण के लिए मानव जीवन अधिकतम रूप में 100 वर्ष से अधिक नहीं हो पाता है। अगर अवसादी चट्टानों के किसी क्षेत्र में जमाव व कटाव की प्रक्रिया का अवलोकन करके कुछ निष्कर्ष निकालना हो तो भी सम्भव नहीं हो पाता है, क्योंकि ये क्रियाएँ भी कई सौ वर्षों में सम्पन्न हो पाती हैं।

इसी कारण से भूगर्भशास्त्री जेम्स हटन (James Hutton) ने 1785 में इस मत का प्रतिपादन किया कि पृथ्वी के ऊपर परिवर्तन होते रहते हैं, परन्तु इन परिवर्तनों में इतना अधिक समय लग जाता है कि मानव के लिए उन परिवर्तनों की तिथि का ज्ञान करना असम्भव हो जाता है। इस प्रकार पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में किसी तथ्य का पता लगाना व्यर्थ है, क्योंकि ‘न भूत का लक्षण है न अन्त की कोई आशा है’-“No vestige of a beginning, no prospect of an end.” परन्तु इस प्रकार के निराशावादी विचारों पर ही हमें आश्रित नहीं होना चाहिए। हटन के विपरीत अधिकांश विद्वानों ने इस क्षेत्र में यदि सफल नहीं तो साहसिक प्रयास अवश्य किये हैं।

परन्तु प्रत्येक परिणाम इतने अधिक विपरीत तथा भिन्न-भिन्न हैं कि वास्तविकता का पता लगाना दुरूह कार्य हो जाता है । यद्यपि वर्तमान समय तक किसी ऐसे सिद्धान्त अथवा विश्वस्त विधि का प्रतिपादन नहीं किया जा सका है, जिनके आधार पर पृथ्वी का उतपत्ति काल तथा विकासकाल सही रूप में प्रदर्शित किया जाय, तथापि जो भी मत इस संबंध में प्रचलित हैं, हमें उनका समुचित विश्लेषण करना चाहिए।

( 1 ) धार्मिक संकल्पना

अतीत काल से ही धार्मिकों, दार्शनिकों तथा ज्योतिषज्ञों ने पृथ्वी की आयु परिकलित करने के लिए भगीरथ प्रयास किये हैं।

ईरान के विद्वानों के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति लगभग 1200 वर्ष पहले हुई थी, परन्तु यह मत सर्वथा असत्य है, क्योंकि कितने ही ऐसे प्रत्यक्ष प्रमाण मिले हैं जो स्वयं इस समय से प्राचीन हैं। भारतीय विद्वानों के अनुसार पृथ्वी की आयु लगभग 2,00,00,00,000 वर्ष बतायी जाती है। कर्मकाण्ड में एक जगह पर यह उद्धरण मिलता है – ‘ब्राह्मणे द्वितीये परार्धे श्री श्वेतवाराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे
अष्ठाविंशतितमे कलियुगे कलि प्रथम चरणे।’

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इसके आधार पर गणना करने पर पृथ्वी की आयु लगभग 1, 97, 29, 49, 032 वर्ष बतायी जाती है। यह गणना यद्यपि अटकलबाजी पर आधारित है फिर भी वर्तमान वैज्ञानिक तरीकों पर आधारित गणना से पर्याप्त मेल खाती है तथा सत्य के अधिक करीब है। ईसाई धर्म के अनुसार एक पादरी अशर (Usher) 1 ने सत्रहवीं सदी में पृथ्वी की आयु के विषय में अपना मत व्यक्त किया। यह विवरण (1658 ई० में लन्दन में प्रकाशित) “The Annals of the World” नामक पुस्तक में मिलता है, जिसके अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति ईसा से 4004 वर्ष पूर्व, 2 अक्टूबर को सात बजे प्रात: हुई थी। इसके अनुसार भी पृथ्वी की आयु अत्यन्त कम है जो कि असत्य प्रतीत होती है।

यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि अधिकांश धार्मिक मत कोरी कल्पनाओं पर आधारित हैं। उन्हें तर्क के सामने प्रमाणित नहीं किया जा सकता है, अतः धार्मिक विचारधारा अमान्य है।

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(2) सागरीय लवणता के आधार पर गणना

सागरीय जल में लवण पाये जाते हैं। प्राय: ऐसा अनुमान किया जाता है कि जब प्रथम सागर का निर्माण हुआ, उस समय सागरीय जल शुद्ध था। उसमें लेशमात्र का भी खारापन नहीं था। बाद में वर्षा का जल नदियों के रूप में धरातलीय भागों का अपरदन करता हुआ सागर में गिरने लगा।

इस प्रकार महाद्वीपीय भागों में अपरदन के कारण स्थलीय भाग का लवण नदियों के साथ होकर सागर में जानेलगा, जिससे सागर में लवणता का आविर्भाव हुआ। प्रयोगों एवं पर्यवेक्षणों के आधार पर यह मान लिया गया है कि सागरीय लवण का लगभग 60 प्रतिशत सोडियम नदियों द्वारा प्राप्त होता है। नदियों द्वारा लाये गये लवण तथा सागरीय लवण में सर्वाधिक समानता पायी जाती है । इसी आधार पर यह माना गया है कि सागरीय लवणता का आधार मुख्य रूप में नदी ही है। इस प्रकार प्रतिवर्ष के क्रमिक जमाव के कारण सागरीय लवणता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहती है।

यदि सागर के सभी नमक का पता लग जाय तथा प्रतिवर्ष जमाव की मात्रा या वृद्धि की दर का पता लग जाय तो सागरों के निर्माण काल का पता लगाया जा सकता है।

( 3 ) तलछट के जमाव के अनुसार गणना

अवसादी चट्टानों के जमाव तथा उनके निर्माण काल के आधार पर पृथ्वी की आयु ज्ञात करने के अनेक तरीके प्रचलित हैं।

जब सर्वप्रथम पृथ्वी की उत्पत्ति हुई तो उसके गर्म एवं तरल भाग के शीतल होकर ठोस होने से प्रथम आग्नेय शैल का निर्माण हुआ।
तत्पश्चात् आग्नेय चट्टानों के विघटन (disintegration) तथा वियोजन (decomposition) के फलस्वरूप प्राप्त चट्टान चूर्ण को अनाच्छादन की विभिन्न शक्तियों ने जलीय भाग में जमा कर दिया, जिस कारण अवसादी शैल का निर्माण हुआ।

यह क्रिया सदैव सक्रिय रही तथा आज भी अवसादी चट्टानों का निर्माण हो रहा है।

इस तरह शनै: शनै: अवसादी चट्टानों की गहराई बढ़ती गयी । यदि वर्तमान समय में कुल अवसादी शैलों की गहराई मालूम हो जाय तथा प्रतिवर्ष जमाव की दर ज्ञात हो जाय तो अवसादी शैलों का निर्माण काल जाना जा सकता है। फिर तो साधारण परिकलन के आधार पर पृथ्वी की आयु आंकी जा सकती है ।

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(4) अपरदन के आधार पर गणना

कुछ विद्वानों ने पृथ्वी के आवरणक्षय के आधार पर पृथ्वी की आयु ज्ञात करने का प्रयास किया है। यह परिकलन इस सर्वमान्य तथ्य पर आधारित है कि महाद्वीपीय भागों का प्रतिवर्ष अपरदन होता है। यदि प्रारम्भ से आज तक सम्पूर्ण अपरदन की मात्रा तथा अपरदन की सामान्य दर मालूम हो जाय तो पृथ्वी की आयु जानी जा सकती है।

साधारण तौर पर कुछ भूगर्भवेत्ताओं ने यह अनुमान लगाया है कि एक फुट मोटी सतह के पूर्ण अपरदन के लिए 10,000 वर्ष की आवश्यकता होती है। यह भी विदित है कि अपरदन के बाद प्राप्त अवसाद, परतदार (अवसादी) शैल के रूप में जमा होता

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( 5 ) चन्द्रमा की ज्वारीय शक्ति के आधार पर

गणना चन्द्रमा’ की ज्वारीय शक्ति के आधार पर पृथ्वी की आयु की गणना कई रूपों में की जाती है।
प्रथम विधि- चन्द्रमा का जन्म पृथ्वी से हुआ माना जाता है।

जब चन्द्रमा का जन्म हुआ होगा, तब यह पृथ्वी के नजदीक रहा होगा। उस समय चन्द्रमा की ज्वारीय रगड़ अधिक रही होगी, परन्तु चन्द्रमा निरन्तर पृथ्वी से दूर हटता गया जिस कारण उसकी ज्वारीय रगड़ (tidal friction) में ह्रास होता गया ।

इस प्रकार चन्द्रमा की रगड़ शक्ति में ह्रास की गति के आधार पर गणना करके चन्द्रमा का जन्मकाल तथा पुन: पृथ्वी का उत्पत्ति काल मालूम कर लिया जाता है । इस आधार पर पृथ्वी की आयु लगभग 4 अरब वर्ष बतायी जाती है ।

द्वितीय विधि – चन्द्रमा की ज्वारीय रगड़ का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है, जिस कारण पृथ्वी की परिभ्रमण शक्ति कम हो जाती है ।

दूसरे शब्दों में ज्वारीय रगड़ के कारण पृथ्वी के परिभ्रमण का समय बढ़ जाता है (परिभ्रमणगति में कमी के कारण) । जिस दर से पृथ्वी
की परिभ्रमणगति कम होती है, उसी दर से चन्द्रमा पृथ्वी से दूर रहता है। इस प्रकार चन्द्रमा की ज्वारीय रगड़ की माप तथापरिभ्रमण गति में परिवर्तन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि चन्द्रमा प्रतिवर्ष पृथ्वी से 13 सेण्टीमीटर दूर हट जाता है।
पृथ्वी से चन्द्रमा की वर्तमान दूरी 3,84,000 किलोमीटर है। इस आधार पर चन्द्रमा को 3,84,000 किमी० दूर हटने के लिए 2,95,38,46,000 वर्ष लगे होंगे। इस आधार पर पृथ्वी की आयु 4 अरब वर्ष बतायी जाती है । हेराल्ड जेफरीज के ज्वारीय सिद्धान्त के आधार पर पृथ्वी की आयु 25 अरब वर्ष निश्चित की जाती है।

( 6 ) लार्ड केलविन की संकल्पना

लार्ड केलविन (Lord Kelvin) ने पृथ्वी की आयु की गणना के विषय में वैज्ञानिक विचारधारा प्रस्तुत की है परन्तु वर्तमान समय . में इनका मत मान्य नहीं है। इन्होंने पृथ्वी के शीतल होने की गति के आधार पर पृथ्वी की आयु की गणना की है। धरातल के नीचे की ओर जाने पर प्रति 33 मीटर पर 19 सेन्टीग्रेड ताप में वृद्धि जाती है।

इस प्रकार पृथ्वी के अन्तरतम भाग में अत्यधिक ताप होने के कारण आन्तरिक भाग में ऊष्मा ऊपर की तरफ प्रवाहित होती है तथा पुन: विकिरण (radiation) द्वारा ताप का ह्रास होता है। यदि ‘भूमिगत ताप प्रवणता’ (underground temperature gradient), भूपटल की चट्टानों की औसत कन्डक्टिविटी’ तथा पृथ्वी के धरातलीय भाग का क्षेत्रफल मालूम हो जाय तो गणितीय परिकलन के आधार पर खोयी या नष्ट ऊष्मा की मात्रा ज्ञात की जा सकती है। यदि ताप ह्रास की मात्रा तथा दर मालूम हो जाय तो पृथ्वी के ठोस होने का समय मालूम किया जा सकता है।

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इस आधार पर लार्ड केलविन ने यह माना कि समग्र पृथ्वी 7000° फा० ताप पर ठोस हुई है। इस प्रकार पृथ्वी का वाह्य भाग आज (1897 ई०) से 4,00,00,000 वर्ष पूर्व शीतल होकर ठोस हो गया था । इस प्रकार केलविन ने पृथ्वी की आयु 4 करोड़ वर्ष निर्धारित की है।वर्तमान अनुसंधान युग में केलविन का यह मत मान्य नहीं है ।

केलविन के समय तक रेडियो सक्रिय पदार्थों (radioactive elements) का पता नहीं लगा था। इन पदार्थों के वियोजन तथा विघटन से ताप उत्पन्न होता है जिससे भूगर्भ का ताप और अधिक हो जाता है। केलविन ने इन पदार्थों पर ध्यान नहीं दिया है। अतः इनका मत त्रुटिपूर्ण है।

(7) रेडियो सक्रिय तत्वों के आधार पर गणना

रेडियो सक्रिय पदार्थों के आधार पर पृथ्वी की आयु की गणना में सर्वाधिक सफलता प्राप्त हुई है तथा वर्तमान समय में यह विधि अधिक विश्वसनीय मानी जाती है। ये पदार्थ ऐसे होते हैं कि इनके विघटन (disintegration) से ऊष्मा (heat) उत्पन्न होती है।

इस तथ्य की खोज सर्वप्रथम पियरे क्यूरी (Pierre Curie) ने सन् 1903 ई० में की। उस समय 1904 ई० में रदरफोर्ड (Rutherford) नामक विद्वान ने रेडियो सक्रिय पदार्थों के आधार पर चट्टानों की आयु निर्धारण करने का प्रयोग किया ।

यूरेनियम, थोरियम आदि में सबसे अधिक रेडियो सक्रिय कण पाये जाते हैं । यूरेनियम तथा थोरियम किसी न किसी रूप तथा मात्रा में प्रत्येक शैल में पाये जाते हैं। जब तथा विघटित होकर किरणें प्रसारित करते हैं, जिनसे ऊष्मा उत्पन्न चट्टानों का विघटन होता है तो ये (radioactive) पदार्थ विखंडित होती है ।

इस प्रकार रेडियो सक्रिय पदार्थ भूगर्भ को ऊष्मा (ताप) प्रदान करने में महत्वपूर्ण साधन सिद्ध हुए हैं। जब यूरेनियम का विघटन होता है तो ऊष्मा की उत्पत्ति के कारण उसका रूपान्तर हो जाता है, जिससे सीसा (lead) का निर्माण होता है । अब यदि यह ज्ञात कर लिया जाय कि यूरेनियम का रूपान्तर सीसे में कब हुआ तो रेडियो सक्रिय पदार्थ तथा यूरेनियम का समय मालूम हो जायेगा ।

यूरेनियम विघटित होने पर अल्फा कण (alpha particles) उत्पन्न करता है । फलस्वरूप एक चट्टान से उत्पन्न अल्फा कणों को गिनकर रूपान्तरण की गति का पता लगाया जा सकता है ।

यह अनुमान किया जाता है कि यूरेनियम का 1.67 भाग 10,00,00,000 वर्षों में सीसा में बदल जाता है। परन्तु यह उल्लेखनीय है कि विभिन्न प्रकार की चट्टानों में सीसा की मात्रा भिन्न-भिन्न होती है ।

अतः प्रत्येक शैल का सीसा भिन्न-भिन्न समय में रूपान्तरित हुआ है। इसके होते हुए भी वैज्ञानिक तरीकों से प्रत्येक शैल में सीसा की वर्तमान मात्रा का पता लगा लिया जाता है ।

इस आधार पर यह गणना की जाती है कि रेडियो सक्रिय पदार्थ आज से 1,50,00,00,000 वर्ष पहले वर्तमान थे । इस प्रकार किसी भी शैल की आयु 2,00,00,00,000 वर्ष से अधिक नहीं हो सकती है।

इस समय के पूर्व पृथ्वी तरलावस्था में रही होगी तथा बाद में ठोस होने लगी, जिस कारण शैलों का निर्माण हुआ । उपर्युक्त आधार पर पृथ्वी की
आयु 2,00,00,00,000 से 3,00,00,00,000 वर्ष के बीच मानी जाती है ।

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