आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay
Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay आचार्य रामचंद्र शुक्ल एक हिंदी आलोचक, निबंधकार, साहित्यिक इतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कहानीकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक हिंदी साहित्य का इतिहास है, जिसके माध्यम से अभी भी काल निर्धारण करने और पाठ्यक्रम के विस्तार में मदद करते हैं। हिंदी पाठ पर आधारित वैज्ञानिक आलोचना की शुरुआत उनके द्वारा की गई थी। हिन्दी में लेखन के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय मुख्य बिंदु
Table of Contents
- 1 आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay
Aacharya Ramchandra Shukla ka Jivan Parichay आचार्य रामचंद्र शुक्ल एक हिंदी आलोचक, निबंधकार, साहित्यिक इतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कहानीकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक हिंदी साहित्य का इतिहास है, जिसके माध्यम से अभी भी काल निर्धारण करने और पाठ्यक्रम के विस्तार में मदद करते हैं। हिंदी पाठ पर आधारित वैज्ञानिक आलोचना की शुरुआत उनके द्वारा की गई थी। हिन्दी में लेखन के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय मुख्य बिंदु
- 2 आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय
- 3 आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय
- 4 आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाएँ
- 5 आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली
- 6 हिन्दी साहित्य में स्थान
पुरा नाम Full Name आचार्य रामचंद्र शुक्ल
जन्म तारीख Date of Birth 4 अक्टूबर 1884
जन्म स्थान Place of Birth बस्ती जिले के अगोना, उत्तर प्रदेश, ब्रिटिश भारत
मृत्यु Death 2 फरवरी 1941
नागरिकता Nationality भारतीय
पारिवारिक जानकारी Family Information
पिता का नाम Father’s Name चंद्रबली शुक्ल
माता का नाम Mother’s Name
पत्नी का नाम Spouse Name सावित्री देवी
भाषा संस्कृत मिश्रित शुद्ध परिमार्जित खड़ी बोली
शैली सामासिक शैली
निबन्ध चिन्तामणि
इतिहास हिन्दी साहित्य का इतिहास
आलोचना सूरदास , रस मीमांसा काव्य में रहस्यवाद
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म वर्ष 1884 में बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रबली शुक्ल था। उनके पिता चंद्रबली शुक्ला उस समय राजस्व निरीक्षक (कानूनगो) थे रामचंद्र शुक्लजी अरबी और फारसी भाषाओं के प्रेमी थे। इसलिए उन्होंने आठवीं कक्षा तक उर्दू, फारसी में शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उन्हें हिंदी से बहुत प्रेम था। इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद वे मिर्जापुर के मिशनरी स्कूल में कला शिक्षक बन गए। अध्यापन के दौरान उन्होंने हिंदी, उर्दू, संस्कृत और अंग्रेजी साहित्य का गहन अध्ययन किया, जो बाद में उनके लिए बहुत मददगार साबित हुआ। आपकी कुशाग्रता और साहित्यिक सेवा से प्रभावित होकर वर्ष 1908 में काशी नगरी प्रचारिणी सभा ने आपको ‘हिंदी शब्द सागर’ के सह-संपादक का कार्य सौंपा, जिसे आपने बड़ी कुशलता से निभाया। आपने लंबे समय तक ‘नगरी प्रचारिणी पत्रिका’ का संपादन किया है। कुछ समय के लिए वे काशी विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर भी रहे और 1936 में बाबू श्यामसुंदर दास के सेवानिवृत्त होने पर उन्हें हिंदी विभाग का प्रमुख नियुक्त किया गया। आपने जीवन भर बड़ी तत्परता और समर्पण के साथ हिंदी साहित्य की सेवा की है। 1941 में सांस की बीमारी के कारण कार्डियक अरेस्ट से उनका निधन हो गया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय
आचार्य शुक्ल जी ने हिन्दी साहित्य में कवि और निबंधकार के रूप में प्रवेश किया। आपने अंग्रेजी और बंगाली भाषा में कुछ सफल अनुवाद किए हैं। बाद में, उन्होंने आलोचना के क्षेत्र में अपनी शुरुआत की और हिंदी के अग्रणी आलोचक के रूप में ख्याति प्राप्त की। आपने सैद्धांतिक और व्यावहारिक आलोचनाएँ लिखीं। आप मनोवैज्ञानिक परीक्षण के संस्थापक भी हैं। चिंतामणि के निबंध इसी श्रेणी के हैं। आपने तुलसी, जायसी और सूर की लंबी व्यावहारिक समीक्षाएं लिखी हैं।आपने हिंदी साहित्य का इतिहास लिखकर लिखने की परंपरा की शुरुआत की। तो शुक्ल जी उच्च कोटि के निबंधकार, महान आलोचक, गम्भीर हैं
वे विशिष्ट साहित्य-इतिहास के विचारक और लेखक थे। टेस्ट फील्ड में उनका कोई मुकाबला नहीं है। इसलिए यदि आपको ‘इरस का सम्राट’ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। इसलिए उनका नाम हिंदी साहित्य के एक सितारे की तरह है और रहेगे ।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाएँ
कृतियाँ हिन्दी साहित्य में शुक्ल जी का आगमन कवि और निबन्धकार के रूप में हुआ किन्तु बाद में आप समालोचक हो गये । इसीलिए आपकी रचनाओं में विविधता है । आपकी प्रमुख रवनाएँ निम्नांकित हैं
निबन्ध चिन्तामणि भाग 1 और 2 , विचार वीथी ।
इतिहास हिन्दी साहित्य का इतिहास यह हिन्दी साहित्य का प्रथम वैज्ञानिक प्रमाणिक इतिहास है ।
आलोचना सूरदास , रस मीमांसा काव्य में रहस्यवाद ।
सम्पादित जायसी ग्रन्थावली , भ्रमर गीतसार , काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका , हिन्दी शब्द सागर , तुल ग्रन्थावली ।
काव्य बुद्ध चरित्र , अभिमन्यु वध ।
अनुदित आदर्श जीवन , कल्पना का आनन्द , विश्व प्रपंच , मेगस्थनीज का भारतवर्षीय विवरण ।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने पूरे साहित्य में संस्कृत के साथ मिश्रित शुद्ध और परिष्कृत खरी बोली को अपनाया है। आपके लेखन में एक भी बेकार शब्द मिलना मुश्किल है। वाक्य के निर्माण में एक भी शब्द को हटाया, बढ़ाया या स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। यद्यपि शुक्ल जी की भाषा परिपक्व, परिष्कृत और समान शब्दों से युक्त साहित्यिक है, तथापि इसे कठिन नहीं माना जा सकता। भाव, सरलता और सुन्दर प्रवाह सर्वत्र विद्यमान है। आप शायद ही कभी उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं। ये शब्द जहां से आए हैं, उनका कोई न कोई खास मकसद है। आपकी भाषा में व्याकरणिक प्रतीकों की सजगता सर्वत्र विद्यमान है, कथन में ऊर्जा लाने के लिए आपने आलंकारिक भाषा का प्रयोग किया है।
शैली आचार्य रामचंद्र शुक्ल की शैली समसायक है। शुक्ल जी की शैली की विशेषता कम से कम शब्दों में बड़ी से बड़ी बात कह देना है। आपकी शैली के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं।
आलोचनात्मक शैली शुक्ल जी ने इस शैली को गम्भीर और आलोचनात्मक निबंधों में अपनाया है।
वर्णनात्मक शैली इस शैली की भाषा बोधगम्य और व्यावहारिक है।
व्यंग्यात्मक शैली गम्भीर निबंधों में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग करते हुए उनमें हास्य-व्यंग्य की झलक मिली।
विचारशील शैली इस शैली का प्रयोग विचारोन्मुख निबंधों में किया जाता है।
हिन्दी साहित्य में स्थान
आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिन्दी साहित्य के युग के साहित्यकारों की श्रेणी में आते हैं। वे एक महान आलोचक, गंभीर विचारक और उच्च कोटि के निबंधकार थे। वह रस के क्षेत्र में बेजोड़ हैं। इसलिए यदि उन्हें रस सम्राट कहा जाए तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने अपनी अलौकिक प्रतिभा से भारतीय साहित्य जगत को आलोकित किया और उसे एक नई राह पर ले जाकर एक शिखर पर दिया। इसलिए आपका नाम हिंदी साहित्य में एक सितारे की तरह चमक रहा है और रहेगा।
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- 2 आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय
- 3 आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक परिचय
- 4 आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाएँ
- 5 आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली
- 6 हिन्दी साहित्य में स्थान
निबन्ध चिन्तामणि भाग 1 और 2 , विचार वीथी ।
इतिहास हिन्दी साहित्य का इतिहास यह हिन्दी साहित्य का प्रथम वैज्ञानिक प्रमाणिक इतिहास है ।
आलोचना सूरदास , रस मीमांसा काव्य में रहस्यवाद ।
सम्पादित जायसी ग्रन्थावली , भ्रमर गीतसार , काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका , हिन्दी शब्द सागर , तुल ग्रन्थावली ।
काव्य बुद्ध चरित्र , अभिमन्यु वध ।
अनुदित आदर्श जीवन , कल्पना का आनन्द , विश्व प्रपंच , मेगस्थनीज का भारतवर्षीय विवरण ।
वर्णनात्मक शैली इस शैली की भाषा बोधगम्य और व्यावहारिक है।
व्यंग्यात्मक शैली गम्भीर निबंधों में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग करते हुए उनमें हास्य-व्यंग्य की झलक मिली।
विचारशील शैली इस शैली का प्रयोग विचारोन्मुख निबंधों में किया जाता है।