रसखान का जीवन परिचय
Raskhan Ka Jivan Parichay रसखान का मूल नाम सैय्यद इब्राहीम था। लेकिन काव्य जगत में वे केवल सखान के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। रसखान मुस्लिम पठान थे। रसखान का जन्म 1558 ई. के लगभग दिल्ली में हुआ था। रसखान के जन्म स्थान को लेकर कई मतभेद हैं। कुछ विद्वान उनके जन्म स्थान को पिहानी या दिल्ली मानते हैं। शिव सिंह सरोज और हिंदी साहित्य के प्रथम इतिहास और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर रसखान का जन्म स्थान पिहानी जिला हरदोई माना जाना चाहिए।रसखान स्व्यं बताते हैं कि बगावत के कारण दिल्ली श्मशान भूमि बन गई थी, फिर वह इसे छोड़कर ब्रज चले गए।
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सामान्य परिचय
पुरा नाम Full Name सय्यद इब्राहिम
जन्म स्थानPlace of Birth काबुल, अफ़ग़ानिस्तान
मृत्यु Death1628, वृन्दावन
नागरिकता Nationality भारतीय
पारिवारिक जानकारी Family Information
पिता का नाम Father’s Name गंनेखां
माता का नाम Mother’s Name
पत्नी का नाम ज्ञात नहीं
भाई बहन
अन्य जानकारी Other Information
रसखान का मूल नाम सैय्यद इब्राहीम था। लेकिन काव्य जगत में वे केवल सखान के नाम से ही प्रसिद्ध हैं। रसखान मुस्लिम पठान थे। रसखान का जन्म 1558 ई. के लगभग दिल्ली में हुआ था। रसखान के जन्म स्थान को लेकर कई मतभेद हैं। कुछ विद्वान उनके जन्म स्थान को पिहानी या दिल्ली मानते हैं। शिव सिंह सरोज और हिंदी साहित्य के प्रथम इतिहास और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर रसखान का जन्म स्थान पिहानी जिला हरदोई माना जाना चाहिए।रसखान स्व्यं बताते हैं कि बगावत के कारण दिल्ली श्मशान भूमि बन गई थी, फिर वह इसे छोड़कर ब्रज चले गए।
रसखान के गुरु का नाम विट्ठलनाथ था। विट्ठलनाथ के प्रभाव से रसखान कृष्ण के सच्चे भक्त हो गये।विट्ठलनाथ जी के संपर्क में आने पर रसखान भगवान कृष्ण के भक्त बन गए । वे जितना कृष्ण के रूप सौन्दर्य पर मुग्ध थे उतना ही उनकी लीला भूमि ब्रज के प्राकृतिक सौन्दर्य पर मोहित थे। जीवन के शेष भाग में रसखान कृष्ण-भक्ति से ओत-प्रोत सरस और मार्मिक रचनाएँ करते रहे। ‘ दो सौ वैष्णवों की वार्ता ‘ नामक ग्रन्थ में रसखान को उच्चकोटि का कृष्ण भक्त कवि कहा गया है।
रसखान की मृत्यु 1628, वृन्दावन में हुई
रसखान का साहित्यिक परिचय
मुसलमान होते हुए भी वे कृष्ण के प्रबल भक्त थे। रसखान मूल रूप से फारसी भाषा के विद्वान और कवि थे। लेकिन ब्रजभूमि में आकर उन्होंने ब्रजभाषा और ब्रज संस्कृति से प्रभावित होकर ब्रजभाषा में काव्य रचना आरंभ की। रसखान को भगवान कृष्ण और उनकी जन्म – भूमि ब्रजभूमि से बहुत लगाव थाथा। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने रसखान सम्बन्ध में कहा है –
अतः भक्ति और रस की दृष्टि से रसखान का काव्य वास्तव में रस की खान है। वास्तव में हिन्दी काव्य जगत की सगुण भक्ति धारा में रसखान का स्थान बहुत ऊँचा है। सगुण भक्ति धारा में इनकी तुलना तुलसीदास सूरदास मीरा बाई से की जाती है अष्टछाप के महान कवियों की तरह वे ब्रजभाषा साहित्य में सदैव अमर रहेंगे।
रसखान की रचनाएँ
रसखान की दो प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं – सुजान – रसखान और प्रेम – वाटिका।कुछ विद्वानों ने तीसरी रचना का उल्लेख रसखान शातक के नाम से भी किया है।