राजा भगीरथ का परिचय और गंगा आगमन Maharaja Bhagirath

राजा भगीरथ

आज हम जानेगे राजा भगीरथ के बारे में और जीवन परिचय माँ गंगा का आगमन और अन्य तथ्य

राजा भगीरथ का परिचय और गंगा आगमन Maharaja Bhagirath in Hindi

राजा भगीरथ जब मनुष्य कोई कार्य करने का दृढ़ संकल्प कर लेता है तब कार्य कितना भी कठिन और असम्भव जान पड़ता हो, वह कर ही लेता है । हमारे देश के इतिहास में ऐसे सैकड़ों उदाहरण मिलते हैं उन्हीं में से एक महापुरुष भागीरथ अपने अद्वितीय पुरुषार्थ के कारण जाने जाते हैं ।

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कई पीढ़ियों पहले राजा सगर अयोध्या पर शासन किया था। राजा सगर की दो रानियाँ हैं। एक बार राजा सगर ने यज्ञ प्रारंभ किया। प्राचीन काल में जब यज्ञ काल में घोड़े को छोड़ा जाता था तब इसे विजय का प्रतीक माना जाता था। इंद्र ने राजा सगर के घोड़े को जब्त पकड़ लिया।

बहुत सारे घोड़े मिले लेकिन वह नहीं मिला, इसलिए राजा सगर ने अपने पुत्रों को घोड़े को खोजने और लाने के लिए कहा। राजा के पुत्र यज्ञ  के घोड़े को खोजने के लिए घर से निकल गए। उन्होंने देश-विदेश दोनों जगह तलाश की, लेकिन घोड़ा नहीं मिला, इसलिए उन्होंने खुदाई शुरू कर दी। भाइयों ने एक-एक करके धरती को खोदना और उसकी खोज करना शुरू किया। इस खोज के दौरान कई जानवर मारे जाने लगे और लोग इस बात से बहुत दुखी हुए. , लेकिन उन्हें अपने पिता के यज्ञ को पूरा करना होगा। उसने  उपेक्षा की और खुदाई जारी रखी।

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अंत में एक स्थान पर पहुंचे जहां मुनि कपिल अपने बगल में बंधे घोड़े के साथ बैठे थे। हुआ यह कि इन्द्र ने घोड़े को छिपाकर वहीं बांध दिया, और राजा के पुत्र समझ गए कि यह वही है जिसने हमारे पिता के यज्ञ में विघ्न डाला। उसने गुस्से में कहा: तुमने यज्ञ का  घोड़ा चुरा लिया। मुनि कापिल क्रोधित हो गया और उन्होंने इन पुत्रों को वहीं भस्म कर  दिया।

जब राजा सगर ने देखा कि मेरा पुत्र बहुत दिनों से नहीं लौटा है, तो उसने अपने दूसरे  पुत्रों को भेज दिया। कड़ी मशक्कत के बाद उनका बेटे  वहां पहुंचा। उसे  पूरी घटना की जानकारी हुई है। वे अंत में घोड़े को ले गए। तबाह हुए पूर्वजों को तारने  के लिए गंगा की जरूरत थी।उनके वंश में कई लोगों ने बहुत तपस्या की, लेकिन गंगा लाने के लिए कोई सफल नहीं  हुआ। अंत में सागर के प्रपौत्र भगीरथ  ने गंगा को लाने का संकल्प लिया।

भगीरथ महाराज दिलीप के पुत्र थे । वह अपने दादा की कहानी सुनकर दुखी हुए । भगीरथ के कोई संतान नहीं थे उन्होंने  सभी मंत्रियों को राजपाठ करने के लिए सौंप दिया।  भगीरथ की एक ही इच्छा थी कि वह गंगा लाकर अपने दादा की अस्थियां अर्पित करे।  कठिन तपस्या के बाद, वह सफलतापूर्वक गंगा ले आए। इसलिए गंगा को भागीरथी भी कहा जाता है।

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 यह प्रश्न हो सकता है कि भगीरथ गंगा को किस प्रकार लाये? ऐसा जान पड़ता है कि गंगा की धारा पहले पहाड़ों के बीच होकर बहती थी । अपने राज्य के लिए तथा देश के लिए भगीरथ उसकी धारा वहाँ से निकाल कर लाये । आजकल भी पहाड़ों को काटकर बड़ी – बड़ी नहरें लायी जाती हैं । भगीरथ ने लगन और विश्वास से यह कार्य किया और वह पूर्ण रूप से सफल हुए । यह कार्य महान था, इसी से महान कार्य करने में जो लोग कार्यरत होते हैं,

 गंगा से हमारे प्रान्त को बहुत लाभ होता है । धन – धान्य से हमें कितना लाभ पहुँचता है, उसका कहाँ तक किया जाय । इसकी महत्ता से पोथियाँ भरी पड़ी हैं । जिस महापुरुष ने ऐसी सरिता को हमें दिया उनके कृतज्ञ हम क्यों न हों? भगीरथ जी के कार्य का महत्त्व हम इस बात से समझ कि यदि आज गंगा न होती तो हमारी स्थिति क्या होती?

 भगीरथ एक महान राजा ही नहीं थे, महान व्यक्ति भी थे, उन्होंने मानवता के हित के लिए कार्य किया । चिरकाल तक मानवता उनकी ऋणी रहेगी ।

 ऐसा कहा जाता है कि गंगा को लाने के पश्चात् और अपने पितामहों की धार्मिक क्रिया पश्चात् बहुत दिनों तक महाराजा भगीरथ ने अयोध्या में राज्य किया । इससे स्पष्ट है कि उन्होंने । धारा अपने राज्य के हित के लिए बहायी । महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में उस घटना का बहुत ही वर्णन किया है । आगे – आगे भगीरथ का रथ चला आ रहा है और पीछे – पीछे गंगा की धारा वेग

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