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सिंधु घाटी सभ्यता (Sindhu Ghati Sabhyata)
Sindhu Ghati Sabhyata In Hindi एक समय था जबकि हम ऋग्वैदिक सभ्यता को ही भारतीय सभ्यता के प्रथम अध्याय के रूप में देखते थे, किन्तु 1927 तथा उसके बाद सिंधु घाटी के क्षेत्रों में जो उत्खनन कार्य हुआ, उससे यह स्पष्ट हो गया कि भारतीय सभ्यता का प्रथम अध्याय ऋग्वैदिक सभ्यता न होकर सिंधु घाटी सभ्यता है।

उत्खनन में प्राप्त सामग्री के आधार पर पुराविदों तथा इतिहासकारों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि ऋग्वेद सभ्यता के शताब्दियों पूर्व भारत में एक अत्यन्त समृद्ध और गौरवशाली सभ्यता का उदय हुआ था। यह गौरवशाली सभ्यता इतिहास में सिंधु सभ्यता के नाम से प्रख्यात है। यह सभ्यता सिंधु सभ्यता या सिंधु घाटी की सभ्यता इसलिए कहना है कि इस सभ्यता के प्रधान अवशेष मुख्यतया सिंधु घाटी में ही प्राप्त हुए हैं। इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।
सिंधु घाटी सभ्यता कांस्य युग की सभ्यता थी। इस सभ्यता का केंद्र मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी भाग में सिंधु नदी का बेसिन था।यह सभ्यता पाषाण युग में विकसित हुई सबसे पहले, यह सभ्यता पंजाब क्षेत्र में सिंधु घाटी में विकसित हुई। बाद में इसका विस्तार घग्गर-हकरा नदी घाटी और गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र में हुआ। पाकिस्तान के वर्तमान राज्य का लगभग हर हिस्सा, भारत गणराज्य का पश्चिमी राज्य अफगानिस्तान के दक्षिण-पूर्व और बलूचिस्तान प्रांत का पूर्वी हिस्सा इसी सभ्यता का था।
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज Sindhu Ghati Sabhyata Ki Khoj
1842 में, चार्ल्स मेसन ने पहली बार बलूचिस्तान, अफगानिस्तान और पंजाब की अपनी विभिन्न यात्राओं पर हड़प्पा के खंडहरों का उल्लेख किया।
1857 में दो ब्रिटिश इंजीनियर कराची से लाहौर तक ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए रेलवे लाइन बिछाना चाहते थे। लेकिन उन्हें रेलवे लाइन बिछाने के लिए गिट्टी की जरूरत थी। किसी स्थानीय ने उन्हें पास में ही गिट्टी के हड़प्पा के खंडहर का सुझाव दिया। जिसका का प्रयोग स्थानीय गांव द्वारा भी किया जाता था।
1865 कनिंघम ने पहली हड़प्पा हड़प्पा मुहर की खोजी । लेकिन वह इसको ब्राह्मी लिपि समझते थे।
सर जॉन मार्शल ने सर्वप्रथम क्षेत्र की पुरातत्व खुदाई।
सर्वप्रथम दयाराम साहनी और माधवस्वरूप वत्स ने 1920 में पंजाब के माण्टगोमरी जिले में हड़प्पा का पता लगाया तत्पश्चात् राखालदास बनर्जी ने 1922 ई० में हड़प्पा से लगभग 660 किमी की दूरी पर सिन्ध प्रदेश के लरकाना जिला के मोहनजोदड़ो नामक स्थान की खुदाई करके इस सभ्यता की खोज की। जब मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में खुदाई की गई ।दोनों स्थलों पर एक-जैसी वस्तुएँ ही प्राप्त हुईं। अतः सर जॉन मार्शल तथा अन्य विद्वानों ने इसे सिन्धु सभ्यता नाम दिया, किन्तु बाद में जब रोपड़, रंगपुर, कालीबंगा, लोथल, धौलाबीरा, बनमाली, बेट द्वारिका में हड़प्पा से मिलतीवस्तुएँ प्राप्त हुईं तो इसे हड़प्पा सभ्यता कहना अधिक उपयुक्त समझा गया क्योंकि अधिकांश स्थान सिन्धु और उन सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे।
बी० एन० मिश्र ने जो पूना स्थित डेक्कन कॉलेज के पुरातत्त्व विभाग के निदेशक रहे, निष्कर्ष निकाला कि सिन्धु सभ्यता का नाम सरस्वती घाटी सभ्यता होना चाहिए। ताजा आँकड़े बताते हैं कि इस सभ्यता के जिन 1400 स्थलों की खोज की गयी है उनमें 918 स्थल भारत में ही हैं। शेष स्थलों में 481 पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान में हैं। इनमें कुछ स्थल घग्घर करा नदियों के क्षेत्रों में अवस्थित हैं। कुछ विद्वानों की मान्यता है कि इसे सरस्वती घाटी सभ्यता कहना चाहिए, जबकि अनया विद्वान इस विचार से सहमत नहीं हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता-Creator of Indus civilization-
सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माताओं के विषय में भी विद्वानों में मतभेद
कुछ विद्वान् द्रविड़ों को सिंधु घाटी सभ्यता का निर्माता मानते हैं। दूसरी ओर कुछ भारतीय विद्वान् आर्यों को सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता के रूप में स्वीकार करते हैं। अनेक इतिहासकार सुमेरियन तथा उनकी अन्य जातियों को इस सभ्यता का निर्माता मानते हैं,
प्राप्त अस्थियों के अवशेषों तथा प्रतिमा-मस्तकों के वैज्ञानिक अध्ययन से ऐसा परिलक्षित होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता निर्माता एक जाति के नहीं थे, वरन् कई जातियों के सम्मिलन से इस सभ्यता का निर्माण हआ था।बहुत आधक विस्तृत था।सिन्धु सभ्यता का काल-Period of Indus Civilization
सिन्धु सभ्यता के काल के विषय में विद्वानों में बहुत मतभेद है। डॉ० पिगट और डॉ० डीलर का मत है कि सिन्धु सभ्यता 2800 ई०पू० के लगभग उत्पन्न हुई और 1500 ई०पू० में नष्ट हो गयी। डॉ० फेबी ने
मोहनजोदड़ो की सभ्यता का मुख्य काल 2800-2500 ई०पू० माना है। डॉ० ए०डी० पुसलकर ने सब मतों की समीक्षा करके
सिन्धु सभ्यता का काल 2800-2200 ई०पू० माना है। डॉ० मार्शल 3250-2750 ई०पू०, माधवस्वरूप वत्स 3500-2700
धर्मपाल अग्रवाल 2300-1740 ई०पू० तथा आल्विन 2150-1750 ईसा पूर्व पुरानी सभ्यता मानते हैं।
कार्बन -14 पद्धति के अनुसार, यह अवधि ईसा पूर्व 2700 से 1500 ईसा पूर्व की है।
सिंधु घाटी सभ्यता का सामाजिक जीवन– Social life of Indus civilization
उत्खनन से प्राप्त सामग्री के आधार पर यह अनुमान लगाया जाता है कि सिन्धु सभ्यता क चार वर्गों में विभक्त था- ( 1 ) विद्वान ( 2 ) योद्धा और सैनिक ( 3 ) व्यवसायी तथा ( 4 ) श्रमिक लोग ।
पुरोहित, ज्योतिषी तथा वैद्य आदि की गणना विद्वानों में की जाती थी । दूसरा वर्ग योद्धाओं तथा सैनिकों का था वर्ग व्यवसायियों का था । चतुर्थ वर्ग में छोटे – मोटे घरेलू उद्योग – धन्धों में लगे हुए व्यक्ति, श्रमजीवी तथा घरों में काम कर नौकर इत्यादि थे । सिन्धु सभ्यता के निवासियों का सामाजिक जीवन सुखी और शान्त था ।
भोजन – गेहूँ सिन्धु सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन था । वे लोग जौ और खजूर से भी परिचित थे । अन्नों के आ उन लोगों के आहार में मांस का भी स्थान था । वे दूध का विविध प्रयोग करते थे । फलों में तरबूज, अनार, नारियल त का उपयोग होता था ।
वेश – विन्यास – खुदाई में प्राप्त सामग्री से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे लोग सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के व प्रयोग करते थे । खुदाई में एक पुरुष की प्रतिमा प्राप्त हुई है जो शाल ओढ़े हुए है ।
सिंधु घाटी सभ्यता का वेश – विन्यास
पुरुष एक दुपट्टा या शाल दायें कन्धे के नीचे से लेकर बायें कन्धे के ऊपर फेंककर ओड़ते थे । स्त्रियाँ सिर पर एक विशेष प्रकार का वस्त्र पहनती थीं जो सिर के पीछे की ओर पंखे की भाँति उठा रहता था । ऐसा प्रतीत होता है कि पुरुषों और स्त्रियों के वस्त्रों में कोई विशेष अन्तर नहीं था । केश – विन्यास में स्त्रियों की बड़ी रुचि थी । वे तरह – तरह से केश – विन्यास करती थीं । पुरुष छोटी – छोटी दाढ़ियाँ और गलमुच्छे रखते थे और कभी कभी ऊपर के ओंठ पर के केश मुंड़वा देते थे ।
आभूषण – सिंधु घाटी के लोगों को आभूषणों से बड़ा प्रेम था । धनी और निर्धन, स्त्री और पुरुष सभी आभूषणों में रुचि रखते थे । कुछ आभूषण ऐसे थे जिन्हें पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही पहनते थे । हार, बाजूबन्द, कंगन और मुद्रिका ऐसे ही आभूषण थे । केवल स्त्रियों द्वारा पहने जानेवाले आभूषणों में करधनी, पायजेब, सिरबन्द, कानों की बालियाँ आदि थीं । धनी लोगों के आभूषण सोना, चाँदी, मणि एवं जवाहरातों के होते थे और निर्धनों के आभूषण सुलभ हड्डियों, र तथा पक्की मिट्टी के होते थे ।
सौन्दर्य प्रसाधन के उपकरण उत्खनन में अनेक ऐसे उपकरण मिले हैं, जिनसे सिन्धु निवासियों के सौन्दर्य उपकरणों का पता चलता है । वे हाथी दाँत की कंधियों तथा काँसे के बने दर्पण का प्रयोग करती थीं । मुख तथा ओष्ठ लिए वे एक विशेष प्रकार के पदार्थ का प्रयोग करती थीं । हड़प्पा की खुदाई में एक शीशी – जैसी चीज मिली है।
जिसमें का कोई चूर्ण है । सम्भवतः वह सुरमा था । सुरमा और काजल लगाने की कई शलाकाएँ भी प्राप्त हुई हैं । घोंघे में न – सी चीज से पाउडर का आभास होता था । स्त्रियों के छोटे – छोटे शृंगारदान भी होते थे ।
आमोद – प्रमोद – सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में अनेक ऐसी वस्तुएँ मिली हैं, जिनसे सिन्धु सभ्यता के लोगों के दि का परिचय प्राप्त होता है । शतरंज व चौपड़ के समान पाँसों का खेल, गोलियों का खेल, जुआ, नृत्य, संगीत
जंगली पशुओं का आखेट सिन्धु सभ्यता के निर्माताओं के आमोद – प्रमोद के मुख्य साधन थे । वे पशु – पक्षियों के अपना मनोरंजन किया करते थे । बाल – मनोरंजन की ओर भी विशेष ध्यान दिया जाता था । खुदाई में प्राप्त विविध गों के खिलौने इस बात के प्रमाण हैं ।
अन्य उपयोगी वस्तुएँ – खुदाई में गृहस्थी के उपयोग की अनेक वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं, जिनसे यह पता च सभ्यता के निर्माताओं का जीवन सुखी और समृद्ध था । गृहस्थी के उपकरणों में पात्र, घड़े, कलश, थालियाँ है, गिलास, लोटे, चम्मच, प्याले आदि थे । ये पात्र चाँदी, काँसे, ताँबे व चीनी मिट्टी के होते थे । घर की अधि की बनी होती थीं, किन्तु मिट्टी के ये पात्र अत्यन्त सुन्दर होते थे
अस्त्र – शस्त्र – इस सभ्यता के निवासियों के प्रमुख हथियारों में भाला, कटार, परशु, धनुष एवं बाण थे भाव – सा पाया जाता है । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ये लोग युद्ध – प्रेमी नहीं थे ।
सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन Economic life of Indus civilization
कृषि – सिन्धु सभ्यता की आर्थिक व्यवस्था का मूलाधार कृषि थी । गेहूँ और जौ कृषि की मुख्य पैदावार थी तरिक्त चावल, मटर, तिल, नारियल, केला, अनार तथा कपास अन्य उत्पादन थे । वर्षा के कारण कृषि अच्छी
पशु – पालन – सिन्धु सभ्यता के लोगों का दूसरा मुख्य उद्यम पशु – पालन था । खुदाई राप्त मुहरों पर अंकित चित्रों के आधार पर हम कह सकते हैं कि ये लोग गाय, बैल, भेंड़,
आर्थिक जीव री, कुत्ते और शूकर आदि पालते थे । वे गधे, खच्चर, घोड़े और ऊँट से भी परिचित थे ।
– कृषि के अस्तित्व का संकेत मोहनजोदड़ो की एक ऊपरी सतह से तथा लोथल से मिली एक
पशु – पालन ग्ध मूर्तिका से मिला है । हड़प्पा के लोगों को हाथी का ज्ञान था । वे जंगली पशु, जैसे
उद्योग – धन्धे हरिण, अर्ना भैंसा, बाघ, गैंडा, बन्दर, भालु, खरगोश आदि से परिचित थे
– व्यापार उद्योग – धन्धे – कृषि और पशु – पालन के अतिरिक्त सिन्धु सभ्यता के लोगों के आर्थिक न के अन्य आधार उद्योग – धन्धे थे । उद्योग – धन्धों में सूती – ऊनी वस्त्र – उद्योग, बर्तन – उद्योग,
धातुएँ सकारी, स्वर्णकारी, बढ़ईगीरी तथा लुहारी आदि उल्लेखनीय हैं
आन्तरिक व्यापार के लिए वे बैलगाड़ियों का उपयोग करते थे । इस तथ्य के भी प्रमाण मिलते हैं कि सिन्धु मला के लोग भारत के बाहर पश्चिमी एशिया के सुमेर आदि देशों और सम्भवतः मिस्र तक से व्यापार करते थे ।
सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य विशेषताएं
माप – तौल – व्यापारिक विकास और सुविधा की दृष्टि से यातायात के साधनों और माप – तौल आदि का भी विकास हुआ था । तौल के लिए विभिन्न प्रकार के बाटों का प्रयोग किया जाता था । ये बाट पाषाण के बने होते थे । अपि बाट घनाकार पाये गये हैं । नाप के लिए सीपों की पटरियों का प्रयोग किया जाता था ।
धातुएँ – सिन्धु प्रदेश के निवासी पत्थर, लकड़ी और धातु से परिचित थे क्योंकि वे सोना, चाँदी, ताँबा, कॉ जस्ता से बने हुए जेवर का प्रयोग करते थे । उन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था । इस प्रकार सिन्धु सभ्यता के निर्माताओं का आर्थिक जीवन सुविकसित और समुन्नत था
सिंधु घाटी सभ्यता की कलाएँ
नगर – आयोजन और भवन – निर्माण कला के अतिरिक्त सिन्धु सभ्यता के निर्माताओं ने अन्य कलाओं की दिशा उन्नतिकी थी । इन कलाओं में अग्रलिखित मुख्य थीं मूर्तिकला – सिन्धु सभ्यता के निर्माता मूर्तिकला में बड़े कुशल थे । खुदाई में प्राप्त मूर्तिकला अवशेषों से यह सिद्ध हो जाता है कि इन लोगों ने मूर्ति – निर्माण की दिशा में उस युग में पर्याप्त जानकारी थी
मिट्टी की मूर्तियों की संख्या सर्वाधिक है । यह मूर्तियाँ नारी, पुरुष तथा पशुओं की हैं । नारी मूर्तियों की संख्या से अधिक है । कुछ नारी आकृतियाँ मातृदेवी की हैं । मनुष्य का शरीर और पशु के सिरवाली कुछ मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई है
सिंधु घाटी सभ्यता की मुहर ( मुद्रा ) निर्माण कला
सिंधु घाटी की खुदाई में प्राप्त मुहरों या मुद्राओं को देखकर यह स्पष्ट हो जाता सिन्धु सभ्यता के लोग मुद्रा – निर्माण – कला में कितने कुशल थे । खुदाई में लगभग 550 मुहरें प्राप्त हुई हैं । मुहरे विविध प्रक रंग – बिरंगे पत्थरों, मिट्टी, हाथीदाँत तथा धातुओं की बनायी जाती थीं ।
चित्रकला – मिट्टी के बर्तनों तथा मुहरों पर अंकित चित्रों को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि सिन्धु सभ्यता के को चित्रकला का भी ज्ञान था ।
सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि Sindhu Ghati Sabhyata Ki Lipi
लेखन कला – सिन्धु सभ्यता के लोगों ने लेखन – कला का आविष्कार कर लिया था, इसके स्पष्ट उदाहरण प्राप्त उनकी लिपि सुन्दर, चित्रात्मक और कलात्मक थी । वे दायें से बायें लिखते थे पर कुछ मुहरों में बायें से दायें लिपि उदाहरण मिलते हैं । दुर्भाग्यवश इनकी लिपि अब तक नहीं पढ़ी जा सकी है
हण्टर महोदय ने कहा है, ” सैंधव लिपि चित्रप्रधान है और इसमें लगभग 400 वर्ण हैं । इस लिपि में कहीं पर क्षण प्रयोग हुआ है और कहीं पर संकेतात्मक चित्रों का । यह लिपि दायीं से बायीं ओर लिखी गयी है ।

कुछ अन्य कलाएँ – उपर्युक्त कलाओं के अतिरिक्त कुम्भकार – कला, स्वर्ण – कला, बर्तन बनाने की कला आदि विकास हुआ था ।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन के कारण
जलवायु परिवर्तन
कुछ विद्वानों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप सिंधु घाटी सभ्यता का पतन हो गया। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार सरस्वती नदी का सूखा जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण था, जबकि कुछ विद्वानों के अनुसार कि इस क्षेत्र में एक बड़ी बाढ़ आई है।
आर्य आक्रमण
कुछ विद्वान् द्रविड़ों को इस सभ्यता का इंडो-यूरोपीय जनजाति, जिसे आर्य कहा जाता है, ने सिंधु घाटी सभ्यता पर आक्रमण किया और विनाश कर दिया ।
ब्रिटिश पुरातत्वविद् मोर्टिन व्हीलर शांतिपूर्ण हड़प्पा लोगों के खिलाफ घोड़ों और अधिक उन्नत हथियारों का उपयोग करके आर्यों ने उन्हें आसानी से हरा दिया होगा।
Important Qna
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब हुई थी ?
दयाराम साहनी और माधवस्वरूप वत्स ने 1920 में पंजाब के मोंटगोमरी जिले में हड़प्पा की खोज की, जब राखलदास बनर्जी ने इस सभ्यता की खोज 1922 ई. में की थी।
सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है ?
राखीगढ़ी
सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता कौन थे ?
कुछ विद्वान द्रविड़ों को इस सभ्यता का निर्माता मानते हैं। दूसरी ओर, कुछ भारतीय विद्वान आर्यों को इस सभ्यता के निर्माता के रूप में स्वीकार करते हैं। कई इतिहासकार सुमेरियों और उनकी अन्य जातियों को इस सभ्यता का निर्माता मानते हैं,
अस्थियों के अवशेषों और मूर्ति के सिरों के वैज्ञानिक अध्ययन से पता चलता है कि सिंधु सभ्यता के निर्माता किसी एक जाति के नहीं थे, बल्कि इस सभ्यता का निर्माण कई जातियों के मिलन से हुआ था।
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग किसकी पूजा करते थे ?
सिन्धु सभ्यता में मातृ शक्ति की पूजा मौलिक थी। यहां से सबसे ज्यादा महिलाओं की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। हड़प्पा की मुहर एक महिला के गर्भाशय में एक पौधे को उगते हुए दिखाती है। यह शायद पृथ्वी देवी की मूर्ति है।
हड़प्पा के लोगों का मुख्य भोजन क्या था ?
एक हालिया सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग बड़े पैमाने पर मांसाहारी थे। वे गोमांस, भैंस और बकरी का मांस खाते थे। सिंधु घाटी क्षेत्र में पाए जाने वाले चीनी मिट्टी के बरतन और खाने की आदतें इस शोध का आधार हैं।
हड़प्पा सभ्यता के लोगों की मुख्य फसलें थीं ?
गेहूं और जौ कृषि की मुख्य फसलें थीं, जिनमें चावल, मटर, तिल, नारियल, केला, अनार और कपास अन्य फसलें थीं।
सिंधु घाटी सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता क्यों कहा जाता है ?
उत्खनन में प्राप्त सामग्री के आधार पर पुराविदों तथा इतिहासकारों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि ऋग्वेद सभ्यता के शताब्दियों पूर्व भारत में एक अत्यन्त समृद्ध और गौरवशाली सभ्यता का उदय हुआ था। यह गौरवशाली सभ्यता इतिहास में सिन्धु सभ्यता के नाम से प्रख्यात है। यह सभ्यता सिन्धु सभ्यता या सिंधु घाटी की सभ्यता इसलिए कहना है कि इस सभ्यता के प्रधान अवशेष मुख्यतया सिंधु घाटी में ही प्राप्त हुए हैं। इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है।