रैदास के दोहे | Raidas ke Dohe
संत रैदास के दोहे ( Raidas ke Dohe ) ज्ञान, भक्ति और समाज सुधार के संदेश हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा और उनसे अनुरक्ति का व्यक्त किया । वे दासी-पंथी के जन्मदाता थे और रैदास के दोहे दोहे अब भी लोकप्रिय हैं।
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ऊँचे कुल के कारणै, ब्राह्मन कोय न होय।
जउ जानहि ब्रह्म आत्मा, रैदास कहि ब्राह्मन सोय॥
हिंदी अर्थ रैदास जी कहते हैं कि ऊंचे कुल में जन्म लेने से कोई भी ब्राह्मण नहीं हो जाता है ब्राह्मण वही होता है जो ब्रह्म आत्मा को जानता है।
हिंदू पूजइ देहरा मुसलमान मसीति।
रैदास पूजइ उस राम कूं, जिह निरंतर प्रीति॥
इस दोहे में संत रैदास जी उन लोगों को बताते हैं जो हिंदू धर्म के अनुयायी होते हुए भी ईश्वर के अलग-अलग नामों और रूपों को पूजते हैं। संत रैदास जी कहते हैं कि जहां हम भगवान को प्रेम से और निरंतर पूजते हैं, वहां धर्म या सम्प्रदाय का कोई महत्व नहीं होता है। उन्होंने अपने दोहे में भगवान राम की उपासना को उदाहरण के रूप में दिया है, लेकिन यह दोहा सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए उपयोगी है, क्योंकि इसमें समझाया जाता है कि भगवान की पूजा करना अनिवार्य है, लेकिन उसके नाम या रूप का कोई विशेष महत्व नहीं है।
रैदास प्रेम नहिं छिप सकई, लाख छिपाए कोय।
प्रेम न मुख खोलै कभऊँ, नैन देत हैं रोय॥
रैदास जी कहते हैं कि प्रेम को छिपाने से कुछ नहीं होता है। भले ही आप लाख बार उसे छिपा लें, लेकिन आपका प्रेम अंततः उजागर होना ही होगा। वह आपके नैनों से बहेगा और आपके मुख से निकलेगा।
माथे तिलक हाथ जपमाला, जग ठगने कूं स्वांग बनाया।
मारग छाड़ि कुमारग उहकै, सांची प्रीत बिनु राम न पाया॥
हिंदी अर्थ संत रविदास जी कहते हैं लोग ईश्वर की आराधना के नाम पर तरह-तरह के स्वांग रचाते हैं भगवान को पाने का सच्चा मार्ग छोड़कर कुमारग अपनाते हैं लेकिन भगवान को प्रेम के सहारे ही पाया जा सकता है।
जनम जात मत पूछिए, का जात अरू पात।
रैदास पूत सब प्रभु के, कोए नहिं जात कुजात॥
संत रैदास जी कहते हैं कि एक व्यक्ति का जन्म उसके कर्मों से होता है, इसलिए उसकी जाति को नहीं पूछा जाना चाहिए सभी मनुष्य भगवान के पुत्र होते हैं और कोई भी जाति नहीं होती है।
Raidas ke Dohe in Hindi
रैदास इक ही बूंद सो, सब ही भयो वित्थार।
मुरखि हैं तो करत हैं, बरन अवरन विचार॥
इस दोहे में संत रैदास जी कहते हैं कि सब लोग एक ही जल की बूंद के बराबर होते हैं और उनका विभाजन केवल उनके बर्ण वर्ण के आधार पर होता है। यह दोहा उनकी विद्वता को दर्शाता है और समाज में जातिवाद के खिलाफ उनकी आवाज को समर्थन देता है। संत रैदास जी कहते हैं कि जो भी व्यक्ति मुर्ख होता है, वह अपने बर्ण वर्ण के अलावा कुछ नहीं सोचता है और अपने अंदर का समरसता नहीं समझता है।
प्रेम पंथ की पालकी, रैदास बैठियो आय।
सांचे सामी मिलन कूं, आनंद कह्यो न जाय॥
संत रैदास जी कहते हैं कि प्रेम का मार्ग एक पालकी की तरह होता है जो हमें स्वर्ग की ओर ले जाती है। उन्होंने स्वयं भी इस प्रेम की पालकी में बैठकर इस मार्ग को चुना है। जब हम सांचे सामी के साथ मिलते हैं तब हमें असीम आनंद का अनुभव होता है जो शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता।
पराधीनता पाप है, जान लेहु रे मीत।
रैदास दास पराधीन सौं, कौन करैहै प्रीत॥
संत रैदास जी बताते हैं कि पराधीनता अर्थात् दूसरों के अधीन होना एक पाप है जो हमें दुखी बना देता है। वे कहते हैं कि प्रेम के लिए हमें पराधीनता को छोड़ देना होगा।
रैदास ब्राह्मण मति पूजिए, जए होवै गुन हीन।
पूजिहिं चरन चंडाल के, जउ होवै गुन प्रवीन॥
हिंदी अर्थ रैदास जी कहते हैं कि उस ब्राह्मण की पूजा नहीं करनी चाहिए जो गुण हीन हो । उस चांडाल की पूजा करना कहीं अच्छा है जो गुणों युक्त अथवा शीलवान हो।
Raidas ke Dohe in Hindi With meaning
ब्राह्मण खतरी बैस सूद रैदास जनम ते नांहि।
जो चाहइ सुबरन कउ पावइ करमन मांहि॥
संत रैदास जी बता रहे हैं कि उनकी जन्मभूमि या जाति उनकी प्रेम भक्ति के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। वे कहते हैं कि ब्राह्मण, खत्री, बनिया या शूद्र कोई भी जो परमात्मा की भक्ति करता है और उसके कर्मों में शुद्धता रहती है, वह परमात्मा को प्राप्त हो सकता है।
जात पांत के फेर मंहि, उरझि रहइ सब लोग।
मानुषता कूं खात हइ, रैदास जात कर रोग॥
यह दोहा रैदास जी की जातिवाद से मुक्ति को लेकर है। इसमें उन्होंने कहा है कि लोग जात-पांत के फेर में उलझे हुए हैं और मानवता को भूल गए हैं। उन्होंने सबको याद दिलाया है कि हम सभी मनुष्य हैं और हमारे बीच जाति व धर्म कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। रैदास जी ने जात के रोग को दूर करने की अपील की है जो मानवता को तबाह कर रहा है।
जो ख़ुदा पच्छिम बसै तौ पूरब बसत है राम।
रैदास सेवों जिह ठाकुर कूं, तिह का ठांव न नाम॥
रैदास सोई सूरा भला, जो लरै धरम के हेत।
अंग−अंग कटि भुंइ गिरै, तउ न छाड़ै खेत॥
जिह्वा भजै हरि नाम नित, हत्थ करहिं नित काम।
रैदास भए निहचिंत हम, मम चिंत करेंगे राम॥
रैदास जन्मे कउ हरस का, मरने कउ का सोक।
बाजीगर के खेल कूं, समझत नाहीं लोक॥
धन संचय दुख देत है, धन त्यागे सुख होय।
रैदास सीख गुरु देव की, धन मति जोरे कोय॥
हिंदी अर्थ रैदास जी कहते हैं कि धन का संचय करने से दुख होता है और धन का त्याग करने से सुख मिलता है और कहते हैं कि यह मेरे गुरुदेव की सीख है धन का संचय कभी मत करें।
रैदास जन्म के कारनै होत न कोए नीच।
नर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच॥
हिंदी अर्थ रैदास जी कहते हैं वर्ण या समाज के किसी भी वर्ग में पैदा होने से कोई व्यक्ति नीच नहीं होता। इसके बजाय हमें उनकी कर्म और उनके आचरण से उनकी महत्ता और उनकी उपलब्धियों का अंदाजा लगाना चाहिए। व्यक्ति कर्मों से नीच होता है ना की जाति से ।
गुरु ग्यांन दीपक दिया, बाती दइ जलाय।
रैदास हरि भगति कारनै, जनम मरन विलमाय॥
इस दोहे में संत रैदास जी गुरु के महत्व को बताते हुए कहते हैं कि गुरु ज्ञान की दीपक हैं जो हमें जीवन के मार्ग पर लेकर जाते हैं।उन्होंने गुरु की शरण में जाकर हरि की भक्ति की है। उन्होंने गुरु के उपदेशों का अनुसरण करते हुए जीवन को समझा और कहते हैं हरि की भक्ति करने से जनम-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
रैदास हमारो साइयां, राघव राम रहीम।
सभ ही राम को रूप है, केसो क्रिस्न करीम॥
हिंदी अर्थ : संत रैदास कहते हैं कि राम हमारे साईयां हैं अर्थात वे हमारे परम पिता हैं और हमारी भक्ति का आधार हैं। उनके अनुग्रह से हम सुखी और सफल जीवन जी सकते हैं।
इसके साथ ही दोहे में संत रैदास यह भी बता रहे हैं कि राम, रहीम, कृष्ण या करीम सभी एक ही ईश्वर के अलग-अलग नाम हैं।
अंत में आप सभी को संत रैदास के दोहे ( Raidas ke Dohe ) कैसे लगे उम्मीद करता हूं कि आपको पसंद आए होंगे । यदि आपको रैदास के दोहे अर्थ सहित पसंद आया तो आप हमें कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं ।