पुष्यमित्र शुंग का जीवन परिचय
पुष्यमित्र शुंग शुंग वंश का संस्थापक था। वह अन्तिम मौर्य सम्राट् वृहद्रथ का सेनापति था। पुष्यमित्र शुंग परेड दिखाने के बहाने अन्तिम मौर्य सम्राट (बृहद्रथ) की सैन्य समीक्षा के दौरान हत्या कर दी और अपने आपको राजा उद्घोषित किया।। इस प्रकार मौर्य के स्थान पर शुंग वंश की स्थापना हुई। 185 ईसा पूर्व के आसपास शुंग वंश की शुरुआत की थी।पुष्य मित्र शुंग का शासन 36 वर्ष तक चला।
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इतिहासकार विंसेंट आर्थर स्मिथ के अनुसार पुष्यमित्र फारस के मूल निवासी थे क्योंकि उनका पैतृक नाम शुंग का सम्बन्ध फारस से था। मिथ्रा नामक वैदिक देवता फारस के निवासियों के देवता थे। हालांकि, महामहोपाध्याय पंडित हरप्रसाद शास्त्री ने स्मिथ के इस सिद्धांत को गलत माना। ऋग्वेद के सहयोगी पुरुमित्र और विश्वामित्र आदि कहलाते हैं। यह साबित करने की कोशिश की कि वह एक ब्राह्मण पुष्यमित्र था।
बौद्ध ग्रंथ दिव्यबदान के अनुसार शुंगों की उत्पत्ति मौर्यों से हुई लेकिन सुरेश चंद्र राय के अनुसार यह कथन गलत है। दिव्याबादन में पुष्यमित्र के पूर्वजों के रूप में सूचीबद्ध मौर्य राजकुमारों की इतिहासलेखन भी स्थापित नहीं है। दूसरी ओर, अधिकांश पुराणों में यह स्वीकार किया जाता है कि जनरल पुष्यमित्र ने सम्राट बृहद्रथ को मार डाला और सिंहासन पर बैठ गए।
पुष्यमित्र शुंग का जीवन परिचय मुख्य बिंदु
पुरा नाम Full Name पुष्यमित्र शुंग
जन्म तारीख Date of Birth
जन्म स्थान Place of Birth
मृत्यु Death 149 ईसा पूर्व
राजवंश शुंग साम्राज्य
पारिवारिक जानकारी Family Information
पिता का नाम Father’s Name ज्ञात नहीं
माता का नाम Mother’s Name ज्ञात नहीं
पत्नी का नाम Spouse Name
पुत्र का नाम अग्निमित्र और वसुमित्र
पुष्यमित्र शुंग का गोत्र
पुष्य मित्र शुंग के गोत्र के विषय में कुछ मत भिन्न है, पतंजलि के अनुसार पुष्य मित्र शुंग का गोत्र भारद्वाज था, लेकिन कालिदास की रचना ‘मल्लविकाग्निमित्रम्’ के अनुसार उनका गोत्र कश्यप था। महाभारत के हरिवंश पर्व के वर्णन के अनुसार, पुष्य मित्र शुंग का गोत्र कश्यप था।
पुष्यमित्र शुंग का अश्वमेध यज्ञ
सम्भवतः एक यज्ञ में तो पतञ्जलि ने ही पुरोहित का आसन इस प्रकार अश्वमेध यज्ञ करने की जो परम्परा महापानन्द, चन्द्रगप्त मौर्य तथा अशोक के कार्यकाल में टूट थी. उसे पुष्पमित्र शुंग ने पुनः प्रारम्भ कराया।
पुष्यमित्र शुंग का शासनकाल
पुष्यमित्र शुंग एक महान योद्धा थे। उसने डेमेट्रियस के इस ग्रीक राजा के आक्रमण को खारिज कर दिया, और शक शासकों और सातवाहनों के साथ युद्ध छेड़कर शुंग साम्राज्य का विस्तार किया। साथ ही, पुष्पमित्र शुंग के शासनकाल के दौरान, हिंदू धर्म का पोषण हुआ और जनता पर बौद्ध धर्म का प्रभाव कम होने लगा।
पुष्यमित्र शुंग और बौद्ध धर्म-
दिव्यावदान और तारानाथ के अनुसार पुष्यमित्र असहिष्णु ब्राह्मण था। उसने अनेक बाद्ध राओं को मरवा डाला तथा उनके मठों और विहारों को नष्ट करवा दिया था। कहते हैं, उसने साकल में यह घोषणा की थी कि जो व्यक्ति बौद्ध भिक्षु का कटा हुआ शीश मेरे समक्ष लायेगा, उसे मैं 100 दीनार पारितोषिक के रूप में दूंगा।
अधिकांश विद्वान् इन कथनों को पूर्णतया सत्य नहीं मानते, परन्तु पुष्यमित्र ब्राह्मण धर्मानुयायी था, इसमें सन्देह नहीं। _उसका असहिष्णु होना सन्देहपूर्ण है, क्योंकि पुरातत्त्व विशारदों के मतानुसार साँची और भरहुत के अनेक बौद्ध विहार,
स्तप तथा उनके अलंकरण शुंग काल में ही निर्मित किये गये थे। यदि शंग सम्राट बौद्धों का नाश करनेवाला था, तो – इन बौद्ध कृतियों का निर्मित होना कैसे सम्भव है? ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्ध ग्रन्थों में पुष्यमित्र शुंग से रुष्ट होकर ऐसा
इसलिए लिख दिया गया है, क्योंकि वह ब्राह्मण धर्म का पोषक था और उसने मौर्य सम्राट् वृहद्रथ की हत्या की थी।
पुष्यमित्र शुंग के अभिलेख
शुंग वंश के संस्थापक पुष्यमित्र शुंग के अभिलेख पंजाब के जालंधर में मिले हैं। पुष्यमित्र शुंग के अभिलेख उनके राजा बनने से लेकर प्रशासन और भारत में वैदिक धर्म की पुन: स्थापना तक।
पुष्यमित्र शुंग अभिलेख की बात करें तो दिव्यवदन के अनुसार यह राज्य सांगला तक फैला था, जो वर्तमान में सियालकोट में है। पुष्यमित्र शुंग के शिलालेखों में उनकी कहानी शुरू से अंत तक संक्षेप में वर्णित है।