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पृथ्वी कैसे बनी ( Prithvi Kaise Bani ) – आप सभी के मन में यह प्रश्न अवश्य आता होगा कि हमारी पृथ्वी कैसे बनी ? ( Prithvi Kaise Bani ) , पृथ्वी की उत्पत्ति कैसे हुयी ? इस प्रश्न का उत्तर जानने के लिए आपके मन में उत्सुकता अवश्य रहती होगी। तो आइए समझते हैं पृथ्वी कैसे बनी ।
पृथ्वी कैसे बनी Prithvi Kaise Bani
आज से लगभग 4.6 अरब साल पहले, हमारा सौर मंडल सिर्फ धूल और गैस का एक बादल था जिसे सौर निहारिका के रूप में जाना जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार सौर निहारिका से दूर एक तारा भी था तारे में ऊर्जा खत्म हो जाने के कारण एक तीव्र विस्फोट होता है और पदार्थ दूर-दूर तक बिखर गए गुरुत्वाकर्षण के कारण धूल के कण चट्टानों में बदल गए गुरुत्वाकर्षण के कारण पदार्थ को संघनित कर दिया और नेबुला के केंद्र में सूर्य का निर्माण हो गया।
चंद्रमा का निर्माण
छोटे-छोटे कण को सूर्य की परिक्रमा करने लगे और यह कण आपस में जुड़ कर उल्का और पृथ्वी और अन्य ग्रहों का निर्माण करने लगे वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं पृथ्वी के पड़ोस में थिया (Theia) नाम का ग्रह था जो लगातार पृथ्वी की कक्षा की ओर बढ़ता रहा था और एक समय पर वह पृथ्वी से टकरा जाता है दोनों ग्रह के परस्पर भयंकर टकराव से पृथ्वी का काफी हिस्सा कणों के रूप में अंतरिक्ष में फैल जाते हैं जो रिंग्स की तरह पृथ्वी के चारों ओर फैल जाते हैं और उसकी परिक्रमा करने लगते हैं कणों के परस्पर टकराव और गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी के चंद्रमा का निर्माण होता है।
महासागरों का निर्माण
पृथ्वी कैसे बनी आग के गोले के समान और पृथ्वी पर महासागर कैसे बने । पृथ्वी अपने शुरुआती दिनों में आज की तरह बिल्कुल नहीं थी यह बिल्कुल आग के गोले की भांति गर्म थी कुछ सौ मिलियन वर्षों के पश्चात पृथ्वी ठंडी होने लगी पृथ्वी के प्रारंभिक उल्का पिंड जो पृथ्वी का चक्कर लगा रहे थे गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी से टकराने लगते हैं वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं जल उल्का पिंडों से ही पृथ्वी पर आया है लाखों साल तक पृथ्वी पर उल्का पिंडों की बारिश होती रही और वह अपने साथ नमक मिनरल और पानी लाते रहे।
लाखों साल उल्का पिंडों की बारिश के साथ पृथ्वी पर की ऊपरी सतह पानी से ढकने लगी और पृथ्वी पर महासागरों का निर्माण हो गया इसी दौरान पृथ्वी पर पहले जीवाणु जीवो का निर्माण हुआ था ।
वैज्ञानिक भी ऐसा मानते हैं आज हमारे पास जो पानी है वह धूमकेतुओं और क्षुद्रग्रहों द्वारा लाया गया होगा । पृथ्वी के साथ कई टक्करों के बाद इन पिंडों ने सतह पर बड़ी मात्रा में पानी छोड़ दिया होगा, जो लाखों वर्षों में महासागर बन गए ।
ज्वालामुखी का निर्माण
पृथ्वी के निर्माण के समय हल्के तत्व पृथ्वी की ऊपरी सतह पर और भारी तत्व जैसे रेडियोएक्टिव पदार्थ आंतरिक सतह पर एकत्रित होते रहे हमारी पृथ्वी का आंतरिक कोर रेडियोएक्टिव पदार्थों से मिलकर बना है जिस कारण यह हमेशा गर्म होता रहता है जब पृथ्वी की ऊपरी सतह ठंडी हो जाती है तो पृथ्वी की आंतरिक गर्मी बाहर नहीं निकल पाती है जिस कारण ज्वालामुखी का निर्माण होता है ।
सूक्ष्मजीवों की उत्पत्ति
वक्त बीतने के साथ-साथ पृथ्वी थोड़ा ठंडी होने लगती है धीरे-धीरे ज्वालामुखी के निर्माण कम हो जाते हैं और उस वक्त कुछ ऐसा ही हुआ पानी से ढकी हुई पृथ्वी पर हजारों की तादाद में ज्वालामुखी निकलने लगे आज से लगभग तीन सौ करोड़ साल पहले पृथ्वी पर ऐसा वक्त आया जब पृथ्वी का वातावरण लगभग स्थिर होने लगा था ज्वालामुखी निकलने धीरे हो गए थे और पृथ्वी का एक दिन बारह घंटे का हुआ करता था साल बीतते गए और धीरे धीरे ये सूक्ष्म जीवन विकसित होते गए ।
आज से लगभग दो सौ, पचास करोड़ साल पहले पहली बार पृथ्वी पर ऐसे जीवों का निर्माण हुआ जो जीने के लिए ये पानी के अंदर के मिनरल्स यानी खनीज पदार्थ है का इस्तेमाल करते थे और ऑक्सीजन बाहर निकालते थे ।
इस वक्त तक पृथ्वी जिसके कारण जमीन और वातावरण में स्थित आइरन यानी लोहे के मिनरल्स पानी में स्थित ऑक्सीजन से रिऐक्ट होने लगे और एक वक्त ऐसा आया जब पृथ्वी की जमीन लाल रंग हो चुकी थी वक्त बीतने के साथ धरती की टेक्टोनिक प्लेट्स में दरार होने लगी जिसके कारण पृथ्वी के अंदर का लावा जमीन की तरह कई लाखों सालों तक खुला उबलता रहा और यही वो कारण था जिसके कारण पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बहुत बढ़ गयी और पृथ्वी पर एसिड की वर्षा होने लगती हैै।
पृथ्वी कैसे बनी बर्फ का गोला
एसिड की वर्षा के कारण पृथ्वी का तापमान घटने लगा और पृथ्वी का तापमान इतना अधिक घटा दी पृथ्वी के ऊपर स्थित पानी बर्फ़ में परिवर्तित होने लगा पृथ्वी पर पहली बार ice age आया इस वक्त पूरी पृथ्वी सफेद बर्फ़ से ढक चुकी थी।आमतौर पर जब धरती पर सूरज की किरणें गिरती है तब जमीन उन किरणों को सोख लेती है मगर क्योंकि पूरी पृथ्वी बर्फ़ से ढक चुकी थी ।और क्योंकि बर्फ़ सफेद और चमकीली होती है जिसके कारण सूरज की किरणें धरती पर गिरने के बाद वापस चली जाती थी इसी कारण से पृथ्वी कई लाखों सालों तक वर्षों से ढकी रही ।
मगर फिर से पृथ्वी के अंदर स्थित गर्मी ज्वालामुखी के रूप में निकलना शुरू हो गई और इन्हें ज्वालामुखियों से निकलने वाली गर्मी ने पर कॉफी की लाना शुरू कर दिया इसी बीच जब पृथ्वी की गहराई में बचे कुछ सूक्ष्म जीव धीरे धीरे बदल रहे थे और अब वो सीज़न को अपने शरीर को बड़ा और जटिल बनाने के लिए इस्तेमाल करने लगे थे इस बीच पानी में अलग से भी छोटे समुद्री पौधे निकलने शुरू हो चूके थे बाहर जैसे जैसे ज्वालामुखी निकल रहे थे ।
वैसे वैसे वातावरण कार्बन डाइऑक्साइड की वजह से गर्म हो रहा था वक्त के साथ साथ बर्फ़ को पिघलने लगी मगर धरती पर फिर से एसिड की वर्षा शुरू हो गई ।
पृथ्वी कैसे बनी रहने लायक
जिसके कारण फिर पृथ्वी ठंडी होने लगी और फिर पृथ्वी की ज्यादातर सतार बर्फ़ से ढक गई ऐसा बार बार कई हजारों सालों तक होता रहा और इसी कारण से अब समुद्री जीवन धीरे धीरे वातावरण के हिसाब से विकसित हो रहे थे इस बीच कई सारे जीव और समुद्री जंगल से भी लुप्त हो गए मगर जो बच गए वो धीरे धीरे पृथ्वी के बदलते तापमान के हिसाब से ढलते गए और अब हज़ारों सालों बाद समुद्री पेड़ पर्व की वजह से पूरी तरह से मरते या सूखते नहीं थे ।
अब सूक्ष्म जीवन समुद्री जीव बन चूके थे जब फिर से ज्वालामुखियों ने पृथ्वी की बर्फ़ पिघल आना शुरू किया तब ये समुद्री पेड़ जल्दी विकसित होकर फैल गए तो धीरे धीरे वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ने लगी और पृथ्वी पर होने वाली एसिड की वर्षा कम होने लगी वातावरण में आने की वजह से पृथ्वी की मोटी होने लगी ।
आज से लगभग सैंतालीस करोड़ साल पहले पृथ्वी की सतह पर पहली बार नामक प्लांट शुरू हुआ वक्त के साथ साथ जमीन पर अलग अलग प्रकार के पौधे और पेड़ उगाना शुरू हुए एक वक्त ऐसा आया जब जमीन के पेड़ों की लंबाई लगभग अस्सी से सौ फिट जितनी या आज की पांच से छह मंजिला बिल्डिंग जितनी ऊंची हो चुकी थी ।
ये वो वक्त जब समुद्री जानवर समुद्र से बाहर निकल रहे थे पूरे जमीनी जानवरों में परिवर्तित हो रही थी धरती की ज्यादातर जमीन एक जगह इकट्ठी हो चुकी थी पृथ्वी का वातावरण और तापमान लगभग स्थिर हो चुका था और अब करीब इक्कीस से तेईस घंटे का दिन हुआ करता था अब समुद्री जीव पानी से बाहर रहने लगे थे ।
और वातावरण के हिसाब से उनके शरीर का रंग रूप बदल रहा था धीरे धीरे ये ज़मीनी जानवर है दोनों सोर्स में परिवर्तित हो गए ये सोर्स ने पेड़ पौधे खाने शुरू कर दिए उनका शरीर लंबा और विशाल रूप से विकसित होने लगा कुछ शिकार किया करते थे जिसके कारण वे छोटे और तेज होते चले गए ।
पृथ्वी की ऊपरी जमीन एक जगह इकट्ठी होने के कारण ज्यादातर जमीन और रेगिस्तान और बंजर हो चुकी थी ज्यादातर जंगल समुद्र के करीब हुआ करते थे।आज से लगभग बीस, करोड़ साल पहले शुरू हो गया की वजह से पृथ्वी की ज्यादातर जमीन पाने के संपर्क में आने लगी।
जिसके फलस्वरूप पृथ्वी पर हरियाली बढ़ती गई जीस वजह से डायनासोरस और ज्यादा विभिन्न और विशाल होते चले गए डायनासोरस ने आने वाले लगभग बीस से तीस, करोड़ सालों तक पृथ्वी पर राज़ किया उस वक्त डायनासोरस समुद्र से लेकर जमीन और आसमान तक पूरी पृथ्वी पर राज़ किया करते थे ।
इस दौरान अफ्रीका से टूटा भारत सीधे आकर आज के तिब्बत से टकराया और इसका कलर की वजह से हिमालय का निर्माण हुआ आज से लगभग साढ़े छह करोड़ साल पहले पृथ्वी की तरफ आज के माउंट एवरेस्ट इससे भी बड़ा लगभग चार दशमलव पांच लाख करोड़ किलो जितना वजन था ।
उल्का पिंड का टकराव
पृथ्वी कैसे बनी नर्क और कैसे हुआ डायनासोरों का अंत पृथ्वी की ओर लगभग अस्सी हज़ार किलोमीटर प्रतिघंटे की स्पीड से पृथ्वी की तरफ आ रहा उल्का पिंड पृथ्वी की सतह उल्का पिंड टकरा गया पृथ्वी की सतह वायुमंडल को छूते ही उसमें भयंकर आग लगी और वो जलते हुए सीधा पृथ्वी से टकराया इस टकराव से निकलने वाली ऊर्जा आज के दस करोड़, परमाणु बम एक साथ फटने के बराबर थी ।
ये उनका वहाँ के जानवर और पेड़ सुरंग भाप बनकर उड़ गया गए गिरते ही पृथ्वी पर पूरी तरह धुल फैली लगी समुद्र में भयंकर बाढ़ आने लगी भूकंप और आग ने पृथ्वी को जलाना शुरू कर दिया कुछ ही घंटों में पूरी पृथ्वी के वातावरण में हानिकारक गैस और धूल की वजह से पृथ्वी नर्क हो चुकी थी आग से पूरी तरह भी हो गए इस वक्त हमारे पूर्वजों जमीन के अंदर रहा करते थे।
जिसके कारण वो इस विशाल प्रलय से बच गए पृथ्वी का वातावरण पूरी तरह से काला और अंधेरा हो चुका था, जिससे धूप भी जमीन तक नहीं पहुँच पा रही थी पृथ्वी के पेड़ और ज्यादातर जानवर विलुप्त हो गई वातावरण में धूल और हानिकारक गैस के कारण पृथ्वी पर फिर से की वर्षा शुरू हो गई।
फिर पृथ्वी ठंडी होकर बर्फ़ से ढक गई लेकिन इस बार पृथ्वी की बर्फ़ लाखों सालों तक नहीं जमी रहीं और अस्सी से नब्बे हज़ार साल बाद ये बर्फ़ पिघलनी शुरू हो गयी जैसे ही धरती पर वातावरण फिर से पहले जैसा होने लगा वैसे ही ये छोटे जीवन जमीन से बाहर आना शुरू हो गए उस वक्त पृथ्वी की पिघलनी शुरू ही हुई थी।
आधुनिक मानव का प्रवेश
जिसके कारण अफ्रीका में घने ठंडे जंगल हुआ करते थे और इसी बीच ये जमीनी जीव बंदरों में परिवर्तित हुए मगर जैसे जैसे पृथ्वी गर्म होने लगी वैसे वैसे अफ्रीका के लिए जंगल सूखने लगे जंगल की चीजे खाने वाले बंदरों को खाने की कमी होने लगी खाने की तलाश में इन बंदरों ने अपने पैरों पर चलना शुरू कर दिया जिससे उन्हें दूसरे जानवरों के शिकार करने में मदद मीलती थी।
धीरे धीरे बंदर ऐप्स यानी वार्नर में परिवर्तित हुए खाने की तलाश में ही ऐप्स से पृथ्वी के दूसरे हिस्सों में फैलने लगे और धीरे धीरे उनके शरीर का रंग रूप वहाँ के मौसम के हिसाब से बदलता गया वक्त के साथ साथ हम आदिवासी बने हमने हथियारों से लेकर आग का आविष्कार किया ।
हम धीरे धीरे इंसान के रूप में विकसित हुए हमने धर्म से लेकर परिवार, भाषा और संस्कृति का निर्माण किया और वक्त के साथ साथ हम विकसित होते चले गए और आज हम इस पृथ्वी की सबसे विकसित प्रजाति बन चूके हैं।
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