मित्रता पर तुलसीदास के दोहे

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मित्रता पर तुलसीदास के दोहे : मित्रता एक ऐसी भावना होती है जो दो व्यक्तियों के बीच संबंध को दर्शाती है जो आपस में प्रेम और सम्मान से जुड़ा होता है। मित्रता एक ऐसी रिश्ता होता है जो समझौते, स्वीकृति और सहानुभूति के आधार पर बनता है। इस रिश्ते में दोनों व्यक्तियों के बीच विश्वास और सम्मान होता है जो स्थायी रूप से रिश्ते को मजबूत बनाता है। मित्रता एक ऐसी भावना होती है जो आपको जीवन में समृद्धता और खुशियों की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करती है। मित्रता पर तुलसीदास के दोहे तुलसीदास जी के मित्रता पर विचार है जो उनके द्वारा संकलित विभिन्न ग्रंथों से लिए गए हैं।

मित्रता पर तुलसीदास के दोहे

जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि विलोकत पातक भारी।
निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरू समाना।

 हिंदी अर्थ- यह दोहा दुखी मित्र के लिए एक संदेश देता है।

जो मित्र दुखी होता है उसे उसके दुख का अहसास करना चाहिए। उसे समझना चाहिए कि उसके विलाप और शोक से उसके मित्र का बोझ बढ़ता है।

इसके बजाय हमें अपने दुख को समुद्र के समान देखना चाहिए जो हमारे दुख को संभालता है और हमें ऊपर उठने में मदद करता है।

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हमें उनके दुख को अपना समझकर उनके समस्याओं के समाधान के लिए मदद करनी चाहिए। इससे हमारी मित्रता मजबूत होगी और हम एक दूसरे के दुख को समझेंगे।

मित्रता पर तुलसीदास के दोहे

सत्रु मित्र सुख दुख जग माहीं।
माया कृत परमारथ नाहीं।

यह दोहा हमें सत्यता की एक महत्वपूर्ण सीख देता है।

 हिंदी अर्थ- तुलसीदास जी कहते हैं कि दुनिया में शत्रु और मित्र सुख और दुख सब हैं। इस जगत में माया ने हमारे परमार्थ को छिपा दिया है।

यह सत्य है कि शत्रु और मित्र दोनों ही हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें शत्रु से लड़ने की शक्ति और मित्र के साथ बंधुत्व का आनंद मिलता है।

लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि ये सब कुछ माया है और इससे अधिक महत्वपूर्ण चीजें हमारे जीवन में होती हैं।

इसलिए हमें अपने परमार्थ को ढूंढने की जरूरत है। हमें अपने अंतर्मन को साफ़ करना होगा और सच्चे संतोष के साथ जीवन को जीना होगा।

वक सठ नृप कृपन कुमारी। कपटी मित्र सूल सम चारी।
सखा सोच त्यागहुॅ मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरे।

यह दोहा एक व्यक्ति के दोस्तों के लिए एक संदेश देता है।

दोहे का अर्थ है कि एक कृपण कुमारी एक नृप से मिलकर उससे वक़्त गुजारती है। उसके कपटी मित्र उसे धोखा देते हैं और उसे सूल समान परेशान करते हैं।

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दोस्त हमेशा हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमें अपने सभी दोस्तों को समझना चाहिए कि वे हमेशा हमारे हित में काम करने वाले वास्तविक मित्र होते हैं।

यदि हमारे मित्र हमें धोखा देते हैं और हमें सूल समान परेशान करते हैं तो हमें उन्हें छोड़ देना चाहिए। हमें अपने असली मित्रों को ढूंढना चाहिए जो हमेशा हमारे साथ होते हैं और हमें सच्चाई बताते हैं।

अंततः, हमें यह भी समझना चाहिए कि हमें सभी प्रकार के कार्यों को अच्छी तरह से संपादित करना होगा। हमें अपने व्यक्तिगत जीवन में सच्चाई का साथ देना चाहिए और सत्य का पालन करना चाहिए।

देत लेत मन संक न धरई।बल अनुमान सदा हित करई।
विपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा।

 हिंदी अर्थ- हमें देते और लेते समय मन में संदेह नहीं रखना चाहिए। हमें सदा ही अपने बल के अनुसार सोचना चाहिए जो हमारे और दूसरों के हित में हो। विपति के समय हमें सतगुणों से युक्त रहना चाहिए और दूसरों की सहायता करना चाहिए। सच्चे मित्र को विपत्ति के समय अवश्य सहायता करनी चाहिए।

मित्रता पर तुलसीदास के दोहे

सकल जगत में मित्र दुर्लभ हैं, जाकर मिले तुलसी तेहि तात।

अर्थ: संपूर्ण विश्व में मित्र बहुत कम होते हैं, जो मिल जाते हैं वे तुलसी के तत्व जैसे होते हैं।

सज्जन दोस्त बड़ाई नहीं होत, दुख काटे और सुख होत नहीं।

अर्थ: सच्चे मित्र हमें तारीफ नहीं करते, वे हमारे दुख बाँटते हैं लेकिन हमारे सुख में हमेशा साथ देते हैं।

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तो यह कुछ चुने हुए थे मित्रता पर तुलसीदास के दोहे आपको कैसे लगे कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं ।

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