करुण रस की परिभाषा उदाहरण सहित

करुण रस की परिभाषा Karun Ras Ki Paribhasha

करुण रस का स्थायी भाव शोक हैं। शोक नामक स्थायी भाव विभाव, अनुभाव और संचारी भावों से संयोग करता है तब ‘करुण रस का निष्पत्ति होती है।

उदाहरण
मणि खोये भुजंग-सी जननी, फन सा पटक रही थी शीश।
अन्धी आज बनाकर मुझको, किया न्याय तुमने जगदीश॥

श्रवण कुमार की मृत्यु पर उनकी माता के विलाप का यह उदाहरण करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।

स्पष्टीकरण-1.स्थायी भाव-शोक।

2. विभाव
(क) आलम्बन-श्रवण।

आश्रय-पाठक।
(ख) उद्दीपन-दशरथ की उपस्थिति।

. 3. अनुभाव-सिर पटकना, प्रलाप करना आदि।

4. संचारी भाव-स्मृति, विषाद आदि।

करुण रस के उदाहरण Karun Ras ka Udaharan

बिपति बँटावन बंधु बाहु बिन करौं भरोसो काको
कोउ मुखहीन बिपुल मुख काहू ।

बिन पद-कर कोऊ बहु-बाहू ॥

शोक-विकल सब रोवहिं रानी ।

रूप राशि, बल, तेज बखानी ॥ .
करहिं बिलाप अनेक प्रकारा ।

परहिं भूमि-तल बारहिं बारा ।।’,

 जथा पंख बिनु खग अति दीना ।

मनि बिनु फन करिबर कर हीना ।। .

. अस मम जिवन बन्धु बिन तोही।

जौ जड़ दैव जियावइ मोही ।।

 तात तात हा तात पुकारी। परे भूमितल व्याकुल भारी॥
चलन न देखन पायउँ तोही । तात न रामहिं सौंपेउ मोही ।।।

हा ! वृद्धा के अतुल धन, हा ! वृद्धता के सहारे ! हा ! प्राणों के परम प्रिय, हा ! एक मेरे दुलारे ! जेहि दिसि बैठे नारद फूली। कौरवों का श्राद्ध करने के लिए,
या कि रोने को चिता के सामने ।

शेष अब है रह गया कोई नहीं,
एक वृद्धा एक अन्धे के सिवा ।।

 अति मलीन बृषभानुकुमारी।
हरि लमजल अंतर तनु भीजे ता लालच न धुआवति सारी ।।

ऊधौ मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं।

वृंदावन गोकुल बन उपवन सघन कुंज की छाहीं॥

 प्रिय पति वह मेरा प्राण प्यारा कहाँ है
दु:ख जलनिधि डूबी का सहारा कहाँ है।

लख मुख जिसका आज लौं जी सकी हूँ,. ..

. वह हृदय हमारा नैन तारा कहाँ है ।।

करि विलाप सब रोवहिं रानी। महा बिपति किमि जाय बखानी ।।
सुन विलाप दुखहूँ दुख लागा। धीरजहूँ कर धीरज भागा।।

 पति सिर देखत मन्दोदरी। मरुछित बिकल धरनि खसि परी ॥
जुबति वृंद रोवत उठि धाई। तेहि उठाइ रावन पहिं आई ।।

चहुँ दिसि कान्ह-कान्ह कहि टेरत, अँसुवन बहत पनारे।

 मम अनुज पड़ा है चेतनाहीन होके,
तरल हृदय वाली जानकी भी नहीं है।

अब बहु दु:ख से अल्प बोला न जाता,

क्षण-भर रह जाता है न उद्विग्नता से।

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