संत कबीर दास का जीवन परिचय | Kabir Das Ka Jivan Parichay

Kabir Das Ka Jivan Parichay

Kabir Das Ka Jivan Parichay नमस्कार दोस्तो इस पोस्ट में आज हम बात करेंगे कबीर दास का जीवन परिचय के विषय में इस लेख में कबीर दास के जीवन के विभिन्न पहलु जैसे कबीर दास की शिक्षा कबीर दास के गुरु कबीरदास का विवाह तथा अन्य पहलु पर चर्चा करेंगे ।

संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Ka Jivan Parichay)

कबीर दास ( kabir das ) 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि और हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित करने वाले संत थे उनके गीतों और कविताओं को सूफी शैली और रहस्यवाद से जोड़ा गया।कबीर” नाम अरबी शब्द “अल-कबीर” से आया है। शब्द का अर्थ है “महान”; यह कुरान में वर्णित अल्लाह का 36वां नाम है कबीर दास के गीतों कविताओं में सूफी शैली और रहस्यवाद पाया जाता है ।

कबीर दास के संबंध में जन्म और मृत्यु के लगभग तिथि प्रमाण नहीं पाए जाते हैं। कई लोगों का मानना है कि उनका जन्म लहर तालाब के पास हुआ था।

कई लोगों के अनुसार वह मुस्लिम जुलाहा के पुत्र थे। कई लोगों के अनुसार वह विधवा ब्राह्मणी के पुत्र थे जो लोक लाज के भय से उन्हें लहर तालाब के पास छोड़ गई थी। वस्तुतः कबीरदास के जन्म माता पिता के संबंध में स्पष्ट कोई सुराग नहीं मिलता है लेकिन यह बात अवश्य मानी जाती है कि उनका पालन पोषण नीरू और नीमा नामक जुलाहा ने किया था। उनके माता-पिता बेहद गरीब और अशिक्षित हैं। कबीर दास भी अनपढ़ ही थे लेकिन उनके लिखे गए दोहे आज भी एक मिसाल कायम करते हैं।

कबीर की रचनाएँ सर्वोच्च कोटि की थीं लोग आजकल भी उनके दोहो का पाठ करते हैं और उनके दोहे को सीखते हैं।उनकी रचनाएँ धर्म, पाखंड, झूठ और हिंसा के विरुद्ध थीं कबीर पंथ के नाम से एक धार्मिक समुदाय जिसे कबीरपंथी कहा जाता है वे लोग कबीर को ईश्वर के रूप में मानते है उत्तर भारत में इनके अनुनाइयों की बहुत बड़ी संख्या है। कबीर दास के दोहे को हर वर्ग आयु  के व्यक्ति नैतिक और सामाजिक सबक माना जाता है।

कबीर दास ने हिंदू मुसलमान की एकता की बात की कबीरदास ‘निर्गुण ब्रह्म’ के उपासक थे। उनका मानना ​​था कि ईश्वर पूरी दुनिया में मौजूद है। उन्होंने ‘ब्रह्म’ के लिए ‘राम’, ‘हरि’ आदि शब्दों का प्रयोग किया लेकिन वे सभी ‘ब्रह्म’ के पर्यायवाची हैं।कबीर का जन्म कबीर कबीर का जन्म वर्ष 1398 में हुआ था कबीर दास भक्ति काल के कवि थे अन्य भक्ति काल के कवि है रहीम दास , मीरा बाई , सूरदास आदि।

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संत कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das ka Jivan Parichay) एक नज़र में

नाम Name कबीर दास (Kabir Das)

उपनाम नाम Full Name कबीरा,कबीरदास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहेब

जन्म तारीख Date of Birth सन 1398

जन्म स्थान Place of Birth लहरतारा, काशी, उत्तर प्रदेश, भारत

मृत्यु Death सन 1518 मगहर,उत्तर प्रदेश

नागरिकता Nationality भारतीय

पारिवारिक जानकारी Family Information

पिता का नाम Father’s Name नीरू 

माता का नाम Mother’s Name नीमा 

गुरु का नाम रामानन्द

पत्नी का नाम Spouse Name  लोई

पुत्र का नाम कमाल

पुत्री का नाम कमाली

अन्य जानकारी Other Information

प्रमुख रचनाएँ

साखी, सबद ,रमैनी,

भाषा

अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी

प्रसिद्ध महान कवि, समाज सुधारक,

कबीर का जन्म (Kabir Das ka Janam)

 

चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
जेठ सुदी बरसायत को पूरनमासी तिथि प्रगट भए॥
घन गरजें दामिनि दमके बूँदे बरषें झर लाग गए।
लहर तलाब में कमल खिले तहँ कबीर भानु प्रगट भए॥

कबीर के जन्म के बारे में विवरण स्पष्ट नहीं है। कुछ स्रोत 1398 को उनके जन्म का वर्ष मानते हैं जबकि अन्य कहते हैं कि उनका जन्म 1440 के आसपास हुआ था।

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उनके बारे में एक किंवदंती के अनुसार  उनका जन्म वाराणसी में एक ब्राह्मण  माँ के यहाँ हुआ था जिन्होंने  अपने नवजात बेटे को त्याग दिया था। ऐसा कहा जाता है कि एक निःसंतान मुस्लिम दंपत्ति ने बच्चे को गोद लिया और उसे अपने रूप में पाला। हालांकि, आधुनिक इतिहासकारों का कहना है कि इस किंवदंती का समर्थन करने के लिए कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। इंडोलॉजिस्ट वेंडी डोनिगर के अनुसार, कबीर का जन्म और पालन-पोषण एक मुस्लिम परिवार में हुआ था।उन्होंने अपनी आजीविका कमाने के लिए एक बुनकर के रूप में काम किया।

कबीर के ही शब्दों में

हम कासी में प्रकट भये हैं,रामानन्द चेताये।

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कबीर दास की शिक्षा (Education of Kabir Das)

कबीर दास  अनपढ़ थे उनके ही शब्दो में

मसि कागद छुवो नहीं, कमल गही नहिं हाथ

कबीरदास जी जो भी बोलते थे उनके शिष्या धर्मदास उसको लिपिबद्ध करते थे।

कबीरदास का विवाह(Kabir Das ka Vivah)

कबीर की शादी ‘लोई’ से हुई थी। कबीर के कमल और कमली नाम के दो पुत्र भी थे। शायद कबीर की उनके पुत्र कमाल से धर्म संबधी मतभेद था।

बूड़ा बंस कबीर का, उपजा पूत कमाल।
हरि का सिमरन छोडि के, घर ले आया माल।

कबीर की पत्नी लोई को उनके कुछ दोहे के माध्यम से समझा जा सकता है ।

कहत कबीर सुनहु रे लोई।
हरि बिन राखन हार न कोई।।

इस दोहे में कबीरदास जी लोई को समझा रहे है हरि के आलावा कोई दूसरा सहारा नहीं होता है।

सुनि अंघली लोई बंपीर। इन मुड़ियन भजि सरन कबीर।।

इस दोहे से यह अनुमान लगाया जाता है की कबीर के धार्मिक स्वभाव के कारण उनके घर में प्रतिदिन साधु-संतों की आवाजाही रहती थी। अत्यधिक गरीबी और ऊपर से मेहमानों के लगातार आने-जाने के कारण कबीर की पत्नी का अक्सर कबीर से झगड़ा होता रहता होगा ।

नारी तो हम भी करी, पाया नहीं विचार।
जब जानी तब परिहरि, नारी महा विकार।।

इस दोहे से यह अनुमान लगाया जाता है की शायद कबीर की पत्नी आगे चलकर कबीर की शिष्या बन गयी होगी । लेकिन उनके लिखे गए दोहे आज भी एक मिसाल कायम करते हैं। कबीर की बातें सर्वोच्च कोटि की थीं ।

पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय।।

कबीर दास के गुरु (Kabir Das ke Guru)

कबीर दास जी के गुरु के विषय में भी बहुत सारे मत मिलते हैं एक कथा ऐसी भी प्रचलित है कि रामानंद जी स्नान करने के लिए गंगा किनारे गए थे। उनके पैरों के नीचे कबीर दास जी आ जाते हैं  कबीर दास जी के मुंह से राम निकल जाता है रामानंद जी को अपना गुरु मान लेते हैं।

उनसे गुरु दीक्षा ले लेते हैं। रामानंद जी बहुत सारा ज्ञान लेते हैं जिसकी प्रशंसा से कबीर दास जी स्वयं करते हैं। कबीर दास जी की नजरों में गुरु का पद बहुत उच्च होता है। जिसको उनके इस दोहे से समझा जा सकता है ।

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥

प्रमुख रचनाएँ (kabir das ki rachnaye)

कबीर के नाम में पाए जाने वाले ग्रंथों की संख्या अलग-अलग लेखों के साथ बदलती रहती है। एच एच विल्सन के अनुसार कबीर के नाम से आठ ग्रंथ हैं। विस्प जीएच वेस्टकॉट ने कबीर की 74 पुस्तकों की सूची प्रस्तुत की जबकि रामदास गौर ने हिंदुत्व में 71 पुस्तकों की गणना की। कबीर की वाणी संग्रह बीजक के नाम से प्रसिद्ध है।जिसके तीन भाग है  साखी, सबद ,रमैनी, है ।

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साखी– इसमें अधिकांश कबीर दास जी की शिक्षाओं और सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है ।
सबद -यह कबीर दास जी की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने अपने प्रेम और आत्मीय साधना का सुन्दर वर्णन किया है।
रमैनी- इसमें कबीरदास जी ने अपने कुछ दार्शनिक और रहस्यवादी विचारों की व्याख्या की। साथ ही उन्होंने इस रचना को चार छंदों में लिखा।

संत कबीर दास की कविताओं और दोहों का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। कबीर दास की कविताओं को तीन श्रेणियों में बांटा गया है।

सखी
श्लोक
दोहा

मूर्ति पूजा का विरोध

कबीर दास जी मूर्ति पूजा का विरोध करते थे। कबीर दास जी मूर्ति पूजा को नहीं मानते थे। उन्होंने अपने दोहे में कहा है कि। पत्थर पूजे से भगवान मिल जाते हैं तो मैं पहाड़ पूछ सकता हूं। इस से अच्छा है कि आप लोग घर की चिक्की के पूजा करूं  जिसके पूजने  से घर का घर का आना जाता है। और व्यक्ति का पेट भरता है।

पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥

जाति प्रथा का विरोध

कबीर दास जी की जाति पति को नहीं मानते थे वह इसका विरोध करते थे। उनकी नजरों में कोई भी व्यक्ति छोटा बड़ा नहीं होता। सभी व्यक्ति समान होते हैं। कबीर दास जी के अनुसार व्यक्ति अपने कर्म से छोटा बड़ा होता है ।

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

2

जाति पांति पूछे नहिं कोई हरि को भजे सो हरि को होय

आडम्बरो का विरोध

कबीर दास जी बहुत सारे आडम्बरो का विरोध करते है  रोजा नमाज व्रत तिलक माला गंगा स्नान आदि का भी विरोध करते है । जो उनके से समझा जा सकता है ।

मुंड मुड़या हरि मिलें ,सब कोई लेई मुड़ाय |
बार -बार के मुड़ते ,भेंड़ा न बैकुण्ठ जाय |

अर्थ क्या बार बार सिर मुड़वाने से हरि जाते है तो भेड़ सीधा बैकुण्ठ क्यों नहीं चली जाती है सारे ऊनी कपडे भेड के बालो से ही बनते है ।

माटी का एक नाग बनाके,
पुजे लोग लुगाया !
जिंदा नाग जब घर मे निकले,
ले लाठी धमकाया

2

जिंदा बाप कोई न पुजे, मरे बाद पुजवाये। 
मुठ्ठी भर चावल लेके, कौवे को बाप बनाय।।

3

कांकर पाथर जोरि के ,मस्जिद लई चुनाय ।
ता उपर मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।।

हिंदू मुस्लिम एकता

कबीरदास जी हिंदू मुस्लिम एकता पर बल देते हैं हिंदू मुस्लिम सब को मिलकर आपस में रहना चाहिए। उनके अनुसार व्यक्ति धर्म से नहीं कर्म से बड़ा होता है।

हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।

2

मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे ,
मैं तो तेरे पास में।
ना मैं तीरथ में, ना मैं मुरत में,
ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में , ना मस्जिद में,
ना काबे , ना कैलाश में।।
ना मैं जप में, ना मैं तप में,
ना बरत ना उपवास में ।।

ना मैं क्रिया करम में,
ना मैं जोग सन्यास में।।
खोजी हो तो तुरंत मिल जाऊ,
इक पल की तलाश में ।।
कहत कबीर सुनो भई साधू,
मैं तो तेरे पास में बन्दे…
मैं तो तेरे पास में…..

कबीरदास की मृत्यु

कबीरदास की मृत्यु 1495 ईस्वी के आसपास मानी जाती है। कबीरदास की मृत्यु के स्थान को लेकर मतभेद है। अलग-अलग लोगों का मानना ​​है कि उनकी मृत्यु पुरी, मगहर और रतनपुर (अवध) में हुई थी लेकिन अधिकांश विद्वान मगहर को उनकी मृत्यु स्थान मानते हैं।

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कबीर एक शांतिपूर्ण जीवन से प्यार करते थे और अहिंसा, सत्य, गुण आदि जैसे गुणों के प्रशंसक थे। उनकी सादगी, पवित्र प्रकृति और पवित्र स्वभाव के कारण विदेशों में भी उनका सम्मान किया जा रहा है।

कबीर दास का साहित्य में स्थान

कबीर दास भक्ति काल  सर्वश्रेस्ठ कवि माने जाते है सधुक्कड़ी और पंचमेल खिचड़ी कबीर की भाषाएँ थीं जिनका उन्होंने अपने साहित्यिक कार्यों में उपयोग किया थाकबीर को हिन्दी काव्य में रहस्य का जनक कहा गया है। कबीर के काव्य में आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध की स्पष्ट व्याख्या है।

संतों की संगति में होने के कारण उनकी भाषा में पंजाबी, फारसी, राजस्थानी, ब्रज, भोजपुरी और खारी बोली शब्दों का प्रयोग होता था। इसलिए इनकी भाषा साधूक्कड़ी और पंचमेल कहलाती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न के उत्तर

कबीर दास का जन्म कब हुआ था?

 कबीर दास की जन्म तिथि और जन्म स्थान के बारे में पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है।कबीर दास का जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। कुछ सूत्रों के अनुसार उनका जन्म 14 वीं -15 वीं शताब्दी के आसपास भारत के वाराणसी शहर में हुआ था।

कबीर दास का जन्म कहाँ हुआ था?

 कबीर दास का जन्म वाराणसी में हुआ था।

कबीर दास की सबसे प्रसिद्ध कृति कौन सी है?

 कबीर दास की सबसे प्रसिद्ध कृति बीजक थी।

 कबीर दास के लेखन से कौन सा आंदोलन प्रभावित था?

 भक्ति आंदोलन कबीर दास के लेखन से प्रभावित था ।

कबीर दास की पत्नी का क्या नाम था

कबीर दास की पत्नी का नाम लोई था ।

कबीर दास जी की प्रमुख रचना है

कबीर दास जी की सबसे लोकप्रिय रचनाएँ सखी, सबद और रमणी हैं ।

कबीर दास किस काल के कवि थे ?

कबीर दास भक्ति काल के कवि थे ।

कबीर दास के गुरु कौन थे ?

कबीर दास के गुरु रामानंद थे उन्होंने अपने शिक्षक गुरु रामानंद के प्रभाव के बाद हिंदू धर्म अपनाया।

कबीर दास जी के विषय में महत्वपूर्ण तथ्य

कबीर दास जी पढ़े-लिखे नहीं थे उन के दोहों का संकलन बीजक में उनके शिष्य धर्मदास ने किया था।

डॉ श्याम सुंदर दास ने कबीरदास के दोहों का संकलन कबीर ग्रंथावली नाम से प्रकाशित कराया था।

कबीरपंथी लोग कबीर दास को ईश्वर का अवतार मानते हैं।

आप सभी पाठकों को हमारी पोस्ट Kabir Das Ka Jivan Parichay कैसी लगी। हमने पूरी कोशिश की है कि आपको कबीर दास का जीवन परिचय पूरी तरह से समझ में आ सके । यह पोस्ट जो व्यक्ति कबीर दास जी जीवनी जानना चाहते हैं के साथ-साथ प्राथमिक कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के लिए भी उपयोगी होगी। आप सभी पाठक कमेंट के माध्यम से अपना अनुभव हमारे साथ जरुर साझा करे। 

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