आचार्य चाणक्य नीति ज्ञान की बातें

आचार्य चाणक्य नीति ज्ञान की बातें

आचार्य चाणक्य नीति ज्ञान की बातें
आचार्य चाणक्य नीति ज्ञान की बातें

 चाणक्य नीति ज्ञान की बातें

 कथन  एक मनुष्य को चाहिए कि मन के विचारों को ज्यादा किसी के सामने प्रकट नहीं करना चाहिए अभी तो उस काम को जल्दी से जल्दी कर डालना चाहिए कार्य रुप में कर डालना चाहिए चाणक्य नीति अध्याय 2 श्लोक 7

व्याख्या आचार्य चाणक्य नीति मे यह कहना चाहते हैं कहते हैं कि कि यदि मनुष्य को अपने कार्य में सफलता प्राप्त करनी है तो उसे अपने योजनाओं के विषय में किसी के सामने ज्यादा गाना नहीं चाहिए बल्कि उस योजना को समय हे जल्दी से जल्दी कार्य रूप में कर डालना चाहिए जो व्यक्ति अपने कार्य का दूसरों के सामने गाना गाते फिरते हैं उनका समय ऊर्जा दोनों नष्ट होती है और जब वह अपने कार्य को पूरा नहीं कर पाते हैं तो समाज में उनका काफी मजाक होता है और कभी-कभी तो उनके विरोधी उनका अत्यधिक मजाक उड़ाते हैं और तरह-तरह बातें करके उनका उपहास करते हैं

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कथन दो व्यक्ति का शरीर निरोग है और मृत्यु दूर है तभी तक उसे अपने सारे कार्य कर डालना चाहिए अन्यथा मृत्यु हो जाने के बाद इस संसार में कुछ शेष नहीं रहता चाणक्य नीति अध्याय 4 श्लोक 4 

हिंदू धर्म के अनुसार मानव शरीर बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है उस पर भी समय-समय पर रोग आते रहते हैं अतः मनुष्य को समय का सदुपयोग करना चाहिए और व्यर्थ के कामों में उसे नहीं भेजना चाहिए जब तक आपका शरीर स्वस्थ है तभी तक आप की दुनिया दुनिया आना था शरीर नष्ट हो जाने के बाद इस संसार में कुछ भी नहीं रह जाता

कथन 3 मनुष्य का समय कैसा है उसके मित्र कैसे हैं यह देश कैसा है उसकी शक्ति कैसी है इन सभी को के बारे में चिंतन करके मनन कर के बाद ही इंसान को किसी कार्य को करना चाहिए चाणक्य नीति अध्याय 4 श्लोक 18

 व्याख्या किसी काम को करने से पहले मनुष्य को अपनी शक्तियों का ज्ञान होना चाहिए उसे यह भी मालूम है ना चाहिए और किस देश में रह रहे हैं हमारी इनकम कितनी है हमारा खर्च कितना है और हम इस काम को कितनी अधिक शक्ति कितनी अधिक उर्जा के साथ कर सकते हैं इन सब बातों का सोच पर विचार कर तभी उसको अपने कार्य के रूप में करना चाहिए यह बात कमाल की है कि आचार्य चाणक्य ने आज से कितने वर्षों पहले यह बातें जब मनुष्य को शिक्षा का अधिकतर ज्ञान नहीं रहता भी उन्होंने इतनी सटीक बात कही थी

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चाणक्य नीति ज्ञान की बातें

 कथन चार व्यक्ति को आपत्ति है और संकट से तभी तंग करना चाहिए जब तक कि आप पत्तों संकट आपके पास नहीं आते हैं और जैसे ही वह आपके पास आ जाना आ जाए उन पर जल्द से जल्द आक्रमण करके उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए चाणक्य नीति अध्याय 5 श्लोक 30

 व्याख्या  आचार्य चाणक्य नीति मे यह कहना चाहते हैं कि व्यक्ति को अपने संकट से तभी तो डरना चाहे जब तक कि वह अपने पास नहीं आया था वह जल्द से जल्द जैसे ही मैं आपके पास आ जाना चाहिए उसको दूर करने का कोई उपाय करना चाहिए ना कि उसे भयभीत होकर आपको चुपचाप बैठना चाहिए यहां कहने का आशय यह है कि हर कोई व्यक्ति सुखी नहीं रहता है उस पर किसी न किसी प्रकार का उसके जीवन में संकट आते रहते हैं तो संकट से तभी तक रहना चाहिए जब तक वह आपके अत्यंत लिखना आ जाए जैसे ही वह आपके पास आ जाए उसे जल्द से जल्द दूर करने के उपाय सोचना चाहिए

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कथन 5 व्यक्ति को अपनी पत्नी भोजन और धन इन तीन बातों से हमेशा संतोष करना चाहिए परंतु अध्ययन तत्वाधान में व्यक्ति को कभी भी संतुष्ट नहीं करना चाहिए अध्याय  अध्याय 7 श्लोक 4

 व्याख्या उपरोक्त को इस लोक में आचार्य चाणक्य नीति मे यह कहना चाहते हैं यदि आपकी पत्नी सुंदर नहीं है भोजन अधिक अच्छा नहीं है धन अधिक मात्रा में नहीं है तो भी दुख होने की कोई बात नहीं सर कांड याद है कि पत्नी को गुण सिखा कर उसे गुणवान बनाया जा सकता है पर अच्छा भोजन प्राप्त किया जा सकता है अधिक धन एकत्र किया जा सकता है लेकिन शुभ कार्य करने का प्रयास करना चाहिए

 कथन ६ पानी की एक बूंद गिरने से घड़ा भर जाता है उसी तरीके थोड़ा-थोड़ा दान विद्या अर्जन करने से ज्ञानी और धनवान हो जाता है

 चाणक्य नीति अध्याय 12 श्लोक 19

 व्याख्या आचार्य चाणक्य नीति मे यह कहना चाहते हैं जिस तरीके जिस तरीके नल में एक एक बूंद करके पानी गिर रहा हो उसके नीचे कोई बात रख दिया जाए तो धीरे-धीरे बोल पाते भर जाता है हालांकि इस प्रक्रिया में कुछ समझ जरुर लगता है लेकिन वह पात्र भर जाता ठीक उसी तरीके थोड़ा-थोड़ा विद्याज्ञान करने से थोड़ा-थोड़ा धन अर्जन करने से व्यक्ति ज्ञानी और धनवान बन सकता है

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