अमीर खुसरो की कविताये

अमीर खुसरो की कविताये

 अमीर खुसरो की कविताये Amir Khusro Poetry In Hindi

Table of Contents

 1. आ घिर आई दई मारी घटा कारी

आ घिर आई दई मारी घटा कारी।
बन बोलन लागे मोर
दैया री बन बोलन लागे मोर।
रिम-झिम रिम-झिम बरसन लागी छाई री चहुँ ओर।
आज बन बोलन लागे मोर।
कोयल बोले डार-डार पर पपीहा मचाए शोर।
आज बन बोलन लागे मोर।
ऐसे समय साजन परदेस गए बिरहन छोर।
आज बन बोलन लागे मोर।

2. सकल बन फूल रही सरसों

सकल बन फूल रही सरसों।
बन बिन फूल रही सरसों।
अम्बवा फूटे, टेसू फूले,
कोयल बोले डार-डार,
और गोरी करत सिंगार,
मलनियाँ गेंदवा ले आईं कर सों,
सकल बन फूल रही सरसों।
तरह तरह के फूल खिलाए,
ले गेंदवा हाथन में आए।
निजामुदीन के दरवज़्ज़े पर,
आवन कह गए आशिक रंग,
और बीत गए बरसों।
सकल बन फूल रही सरसों।

रहीम के दोहे

3. आज रंग है ऐ माँ रंग है री

आज रंग है ऐ माँ रंग है री,
मेरे महबूब के घर रंग है री।
अरे अल्लाह तू है हर,
मेरे महबूब के घर रंग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया,
निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया।
अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया,
फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया।
कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया,
मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया।
आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया।
वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।
अरे ऐ री सखी री,
वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री।
मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया,
आहे, आहे आहे वा।
मुँह माँगे बर संग है री,
वो तो मुँह माँगे बर संग है री।
निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो,
जग उजियारो जगत उजियारो।
वो तो मुँह माँगे बर संग है री।
मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया।
गंज शकर मोरे संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखयो सखी री।
मैं तो ऐसी रंग देस-बदेस में ढूढ़ फिरी हूँ,
देस-बदेस में।
आहे, आहे आहे वा,
ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।
सजन मिलावरा इस आँगन मा।
सजन, सजन तन सजन मिलावरा।
इस आँगन में उस आँगन में।
अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में।
अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री।
आज रंग है ए माँ रंग है री।
ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन।
मुँह माँगे बर संग है री।
मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री।
ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी।
देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ।
आज रंग है ऐ माँ रंग है ही।

मेरे महबूब के घर रंग है री।

  बिहारी के दोहे Bihari Ke Dohe

4.काहे को ब्याहे बिदेस,

अरे, लखिय बाबुल मोकाहे को ब्याहे बिदेस,

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

भैया को दियो बाबुल महले दो-महले

हमको दियो परदेस

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ

जित हाँके हँक जैहें

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ

घर-घर माँगे हैं जैहें

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

कोठे तले से पलकिया जो निकली

बीरन में छाए पछाड़

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ

भोर भये उड़ जैहें

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़

छूटा सहेली का साथ

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

डोली का पर्दा उठा के जो देखा

आया पिया का देस

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

अरे, लखिय बाबुल मोरे

काहे को ब्याहे बिदेस

अरे, लखिय बाबुल मोरे

5.अम्मा मेरे बाबा को भेजो री – कि सावन आया

अम्मा मेरे बाबा को भेजो री – कि सावन आया

बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री – कि सावन आया

अम्मा मेरे भाई को भेजो री – कि सावन आया

बेटी तेरा भाई तो बाला री – कि सावन आया

अम्मा मेरे मामू को भेजो री – कि सावन आया

बेटी तेरा मामू तो बांका री – कि सावन आया

6.बहुत कठिन है डगर पनघट की

बहुत कठिन है डगर पनघट की

कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी

मेरे अच्छे निज़ाम पिया।

कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी

ज़रा बोलो निज़ाम पिया।

पनिया भरन को मैं जो गई थी।

दौड़ झपट मोरी मटकी पटकी।

बहुत कठिन है डगर पनघट की।

खुसरो निज़ाम के बल-बल जाइए।

लाज राखे मेरे घूँघट पट की।

कैसे मैं भर लाऊँ मधवा से मटकी

बहुत कठिन है डगर पनघट की।

7.बहोत रही बाबुल घर दुल्हन

बहोत रही बाबुल घर दुल्हन, चल तोरे पी ने बुलाई।

बहोत खेल खेली सखियन से, अन्त करी लरिकाई।

बिदा करन को कुटुम्ब सब आए, सगरे लोग लुगाई।

चार कहार मिल डोलिया उठाई, संग परोहत और भाई।

चले ही बनेगी होत कहाँ है, नैनन नीर बहाई।

अन्त बिदा हो चलि है दुल्हिन, काहू कि कछु न बने आई।

मौज-खुसी सब देखत रह गए, मात पिता और भाई।

मोरी कौन संग लगन धराई, धन-धन तेरि है खुदाई।

बिन मांगे मेरी मंगनी जो कीन्ही, नेह की मिसरी खिलाई।

एक के नाम कर दीनी सजनी, पर घर की जो ठहराई।

  समय चक्र क्या है

गुण नहीं एक औगुन बहोतेरे, कैसे नोशा रिझाई।

खुसरो चले ससुरारी सजनी, संग कोई नहीं आई

8. जो पिया आवन कह गए अजहुँ न आए

जो पिया आवन कह गए अजहुँ न आए,

अजहुँ न आए स्वामी हो

ऐ जो पिया आवन कह गए अजुहँ न आए।

अजहुँ न आए स्वामी हो।

स्वामी हो, स्वामी हो।

आवन कह गए, आए न बाहर मास।

जो पिया आवन कह गए अजहुँ न आए।

अजहुँ न आए।

आवन कह गए।

आवन कह गए।

9. जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ

जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ, घुँघटा में आग लगा देती,
मैं लाज के बंधन तोड़ सखी पिया प्यार को अपने मान लेती।
इन चूरियों की लाज पिया रखाना, ये तो पहन लई अब उतरत न।
मोरा भाग सुहाग तुमई से है मैं तो तुम ही पर जुबना लुटा बैठी।
मोरे हार सिंगार की रात गई, पियू संग उमंग की बात गई
पियू संत उमंग मेरी आस नई।
अब आए न मोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती।
घर आए न तोरे साँवरिया, मैं तो तन मन उन पर लुटा देती।
मोहे प्रीत की रीत न भाई सखी, मैं तो बन के दुल्हन पछताई सखी।
होती न अगर दुनिया की शरम मैं तो भेज के पतियाँ बुला लेती।
उन्हें भेज के सखियाँ बुला लेती।
जो मैं जानती बिसरत हैं सैय्याँ।

10. जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर

जब यार देखा नैन भर दिल की गई चिंता उतर
ऐसा नहीं कोई अजब राखे उसे समझाए कर ।
जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया
हक्का इलाही क्या किया, आँसू चले भर लाय कर ।
तू तो हमारा यार है, तुझ पर हमारा प्यार है
तुझ दोस्ती बिसियार है एक शब मिली तुम आय कर ।
जाना तलब तेरी करूँ दीगर तलब किसकी करूँ
तेरी जो चिंता दिल धरूँ, एक दिन मिलो तुम आय कर ।
मेरी जो मन तुम ने लिया, तुम उठा गम को दिया
तुमने मुझे ऐसा किया, जैसा पतंगा आग पर ।
खुसरो कहै बातों ग़ज़ब, दिल में न लावे कुछ अजब
कुदरत खुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर ।

11. हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल

हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल,
बाइस ख्वाजा मिल बन बन आयो
तामें हजरत रसूल साहब जमाल।
हजरत ख्वाजा संग..।
अरब यार तेरो (तोरी) बसंत मनायो,
सदा रखिए लाल गुलाल।
हजरत ख्वाजा संग खेलिए धमाल।

12. दैया री मोहे भिजोया री

दैया री मोहे भिजोया री
शाह निजाम के रंग में।
कपरे रंगने से कुछ न होवत है
या रंग में मैंने तन को डुबोया री
पिया रंग मैंने तन को डुबोया
जाहि के रंग से शोख रंग सनगी
खूब ही मल मल के धोया री।
पीर निजाम के रंग में भिजोया री।

13. बहुत दिन बीते पिया को देखे

बहुत दिन बीते पिया को देखे,
अरे कोई जाओ, पिया को बुलाय लाओ
मैं हारी वो जीते पिया को देखे बहुत दिन बीते ।
सब चुनरिन में चुनर मोरी मैली,
क्यों चुनरी नहीं रंगते ?
बहुत दिन बीते ।
खुसरो निजाम के बलि बलि जइए,
क्यों दरस नहीं देते ?
बहुत दिन बीते ।

14. अम्मा मेरे बाबा को भेजो री – कि सावन आया

अम्मा मेरे बाबा को भेजो री – कि सावन आया
बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री – कि सावन आया
अम्मा मेरे भाई को भेजो री – कि सावन आया
बेटी तेरा भाई तो बाला री – कि सावन आया
अम्मा मेरे मामू को भेजो री – कि सावन आया
बेटी तेरा मामू तो बांका री – कि सावन आया

15.. तो सूरत के बलिहारी, निजामरी

तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी ।
सब सखियन में चुनर मेरी मैली,
देख हसें नर नारी, निजाम…
अबके बहार चुनर मोरी रंग दे,
पिया रखले लाज हमारी, निजाम….
सदका बाबा गंज शकर का,
रख ले लाज हमारी, निजाम…
कुतब, फरीद मिल आए बराती,
खुसरो राजदुलारी, निजाम…
कौउ सास कोउ ननद से झगड़े,
हमको आस तिहारी, निजाम,
तोरी सूरत के बलिहारी, निजाम…

16. ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल

ज़िहाल-ए मिस्कीं मकुन तगाफ़ुल,
दुराये नैना बनाये बतियां |
कि ताब-ए-हिजरां नदारम ऎ जान,
न लेहो काहे लगाये छतियां ||
शबां-ए-हिजरां दरज़ चूं ज़ुल्फ़
वा रोज़-ए-वस्लत चो उम्र कोताह,
सखि पिया को जो मैं न देखूं
तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां ||
यकायक अज़ दिल, दो चश्म-ए-जादू
ब सद फ़रेबम बाबुर्द तस्कीं,
किसे पडी है जो जा सुनावे
पियारे पी को हमारी बतियां ||
चो शमा सोज़ान, चो ज़र्रा हैरान
हमेशा गिरयान, बे इश्क आं मेह |
न नींद नैना, ना अंग चैना
ना आप आवें, न भेजें पतियां ||
बहक्क-ए-रोज़े, विसाल-ए-दिलबर
कि दाद मारा, गरीब खुसरौ |
सपेट मन के, वराये राखूं
जो जाये पांव, पिया के खटियां ||

18. मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल

मोरा जोबना नवेलरा भयो है गुलाल।
कैसे घर दीन्हीं बकस मोरी माल।
निजामुद्दीन औलिया को कोई समझाए,
ज्यों-ज्यों मनाऊँ वो तो रुसो ही जाए।
चूडियाँ फूड़ों पलंग पे डारुँ इस चोली को
मैं दूँगी आग लगाए।
सूनी सेज डरावन लागै।
बिरहा अगिन मोहे डस डस जाए।
मोरा जोबना।

19. परदेसी बालम धन अकेली मेरा बिदेसी घर आवना

परदेसी बालम धन अकेली मेरा बिदेसी घर आवना।
बिर का दुख बहुत कठिन है प्रीतम अब आजावना।
इस पार जमुना उस पार गंगा बीच चंदन का पेड़ ना।
इस पेड़ ऊपर कागा बोले कागा का बचन सुहावना।

20. ऐ री सखी मोरे पिया घर आए

ऐ री सखी मोरे पिया घर आए
भाग लगे इस आँगन को
बल-बल जाऊँ मैं अपने पिया के,
चरन लगायो निर्धन को।
मैं तो खड़ी थी आस लगाए,
मेंहदी कजरा माँग सजाए।
देख सूरतिया अपने पिया की,
हार गई मैं तन मन को।
जिसका पिया संग बीते सावन,
उस दुल्हन की रैन सुहागन।
जिस सावन में पिया घर नाहि,
आग लगे उस सावन को।
अपने पिया को मैं किस विध पाऊँ,
लाज की मारी मैं तो डूबी डूबी जाऊँ
तुम ही जतन करो ऐ री सखी री,
मै मन भाऊँ साजन को।

21. अम्मा मेरे बाबा को भेजो री – कि सावन आया

अम्मा मेरे बाबा को भेजो री – कि सावन आया
बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री – कि सावन आया
अम्मा मेरे भाई को भेजो री – कि सावन आया
बेटी तेरा भाई तो बाला री – कि सावन आया
अम्मा मेरे मामू को भेजो री – कि सावन आया
बेटी तेरा मामू तो बांका री – कि सावन आया

22. बहुत दिन बीते पिया को देखे

बहुत दिन बीते पिया को देखे,
अरे कोई जाओ, पिया को बुलाय लाओ
मैं हारी वो जीते पिया को देखे बहुत दिन बीते ।
सब चुनरिन में चुनर मोरी मैली,
क्यों चुनरी नहीं रंगते ?
बहुत दिन बीते ।
खुसरो निजाम के बलि बलि जइए,
क्यों दरस नहीं देते ?
बहुत दिन बीते ।

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