आचार्य दीपांकर श्री ज्ञान का जीवन परिचय Shriyagyna Biography in Hindi

आचार्य दीपांकर श्री ज्ञान का जीवन परिचय Shriyagyna Biography in Hindi

आचार्य दीपांकर श्री ज्ञान का जीवन परिचय हमारे देश में अनेक ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने न केवल भारत वरन् विश्व के अन्य देशों में भी अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाया है । आचार्य दीपांकर श्रीज्ञान उनमें से एक हैं ।

 आचार्य दीपांकर श्री ज्ञान का जन्म सन् 982 ई ० में सहोर ( बंगाल ) में हुआ था । सहोर प्राचीन काल में विक्रमपुर राज्य के अतगत प्रसिद्ध नगर था । विक्रमपुर के राजा कल्याण के तीन पुत्र थे – पद्मगर्भ, चन्द्रगर्भ और श्रीगर्भ । चन्द्रगर्भ में प्रतिभा के अंकुर फूटने लगे थे । इस छोटी अवस्था में ही संस्कृत श्लोकों का शुद्ध वाचन करने एवं उनका पुत्रचन्द्रगर्भ ही आगे चलकर दीपंकर श्रीज्ञान के नाम से प्रसिद्ध हुए । पाँच वर्ष की अवस्था में ही बालक चार्य दीपंकर श्रीज्ञान द्वितीय में अर्थ कहने की क्षमता उनमें आ गयी थी ।

 राजकुमार चन्द्रगर्भ में बचपन से ही सांसारिक वैभव के प्रति कोई लगाव नहीं था । बीस वर्ष की अवस्था में पिता ने उनका विवाह करने का निश्चय किया, किंतु उन्होंने मना कर दिया । सब लोगों ने उन्हें सिंहासन सौंपने का निर्णय लिया, किंतु दीपांकर श्रीज्ञान ने उसे भी अस्वीकार कर दिया ।

 उनतीस वर्ष की अवस्था तक कुमार चन्द्रगर्भ ने अनेक सिद्ध महात्माओं के साथ रहकर व्याकरण तर्कशास्त्र, ज्योतिष, चिकित्सा एवं बौद्ध दर्शन का गहन अध्ययन किया । ज्ञान की सभी शाखाओं का अध्ययन करके उन्होंने महापंडित की उपाधि प्राप्त की । इसी समय वजासन महाविहार ( बुद्ध गया ) में उन्हें ” दीपांकर श्री ज्ञान ” के नाम से विभूषित किया गया । बुद्ध मत के अंतर्गत “ दीपांकर ” का नाम बड़े आदर से लिया जाता है । महात्मा बुद्ध भी इस नाम से जाने जाते थे ।

  सिकंदर का इतिहास और जीवनी | Biography of Alexander the Great In Hindi

 अध्ययन पूरा कर लेने के बाद आचार्य दीपांकर ने भारत के तत्कालीन अनेक विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया । जिन दिनों ये विक्रमशिला में महापंडित के पद पर कार्य कर रहे थे, उन्हीं दिनों तिब्बत के महाराजा की आज्ञा से नग – छो – लोचापा नामक एक व्यक्ति दीपंकर को अपने देश तिब्बत ले जाने के लिए आया । उस समय विक्रमशिला में अनेक प्रसिद्ध आचार्य थे, किंतु दीपांकर श्री ज्ञान उनमें विशेष प्रसिद्ध थे । वे एक महान आचार्य तो थे ही, उसमें कई अन्य गुण भी विद्यमान थे । शिष्यों के प्रति उनमें अपार स्नेह और मानव सेवा की प्रगाढ़ भावना थी ।

अन्य पढ़े महात्मा बुद्ध का जीवन परिचय 

महाराजा के आमन्त्रण को स्वीकार कर दीपांकर श्री ज्ञान को तीन वर्ष के लिए तिब्बत जाने की अनुमति दे दी गईं उस समय दीपांकर श्रीज्ञान उनसठ वर्ष के थे । वे नेपाल होते हुए डबरी नामक स्थान पर पहुंचे । यहाँ वे तीन वर्ष तक रहे । वहीं पर उन्होंने अनेक पांडित्यपूर्ण रचनाएँ कीं । “ बोधिपथ प्रदीप ‘ ग्रन्थ की रचना यहीं की गयी थी । उसके बाद वे भारत वापस आना चाहते थे किंतु नेपाल की सीमा पर लड़ाई छिड जाने के कारण वे अपने देश नहीं लौट सके ।

  महावीर स्वामी का जीवन परिचय Mahavir Swami Biography in Hindi

 इसी समय उन्हें केन्द्रीय तिब्बत में आने के लिए आमन्त्रित किया गया । इस क्षेत्र में वे कई वर्षों तक बौद्ध मत का प्रचार करते रहे ।

 महात्मा बुद्ध के उपदेशों को वहाँ की जनता तक पहुँचाया । उन्होंने बौदध मत से सम्बन्धित अनेक गम

 तिब्बत में यह बौद्ध मत के नव जागरण का काल था ।  पन्द्रह वर्षों तक तिब्बत में अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाते रहे । तिहत्तर वर्ष की अवस्था में वहीं उनका निधन हो गया बौद्धमत के पुनर्गठन में उनका बहुत बड़ा योगदान रहा ।

इस प्रकार दीपंकर तिब्बत में दीपांकर श्री ज्ञान को बौद्ध मत से सम्बन्धित ऐसे ग्रंथों की पाण्डुलिपियाँ मिलीं, जो भारत में तिब्बती भाषा में सौ से अधिक ग्रन्थों की रचना की थी । उनमें से 96 ग्रन्थ आज भी सुरक्षित हैं । ये ग्रन्थ उनकी दुर्लभ थीं । दीपंकर श्रीज्ञान ने इन ग्रन्थों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया । उन्होंने संस्कृत, बंगला और

 आचार्य दीपांकर श्री ज्ञान के उपदेशों में मानव सेवा और भाईचारे का सन्देश भरा हुआ है । उनसे हम ज्ञानार्जन की प्रेरणा भी मिली है । ” बोधिपथ प्रदीप ” में उन्होंने पुरुषों को तीन प्रकार का बताया है- अधम, मध्यम देकर, कष्ट पहुँचाकर, भ्रष्ट तरीकों से सांसारिक सुख पाना चाहते हैं वे अधम पुरुष हैं । संसार के दुःखों से विमुख ।

 और उत्तम । इनके लक्षणों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने लिखा है कि जो लोग किसी भी प्रकार दूसरों को धोखा रहकर या कर्म से दूर रहकर भी केवल अपने निर्वाण की कामना करने वाले पुरुष मध्यम कोटि में आते हैं किंतु प्रतिभा, विद्वता और अध्ययनशीलता के परिचायक हैं ।

  निकोला टेस्ला का जीवन परिचय | Biography of Nikola Tesla In Hindi

 जो लोग अपने बच्चों के दुःखों की तरह ही संसार के अन्य सभी लोगों के दुःखों का सर्वथा नाश करना चाहते हैं, वही उत्तम पुरुष हैं ।

 इस प्रकार आचार्य ने सारी मानवता की सेवा एवं उसको सुखी बनाने के प्रयत्न में लगे हुए व्यक्ति को ही उत्तम कोटि का पुरुष माना है । केवल अपने सुख एवं अपने निर्वाण की कामना करने वाले लोगों के गणना उन्होंने अधम और मध्यम प्रकार के पुरुषों में की है ।

 तिब्बत में दीपंकर श्रीज्ञान को लोग बड़ी श्रद्धा से याद करते हैं । चीन, जावा, सुमात्रा, बर्मा ( म्याँमार ) आदि शों में उनकी पावन स्मृति आज भी सजीव बनी हुई है । भारतीय जनमानस में उनकी स्मृति को सँजोने के लिए रत तथा बांग्लादेश में 1983 ई 0 में दीपंकर श्रीज्ञान के जन्म की सहस्राब्दी बड़े उत्साह के साथ मनायी गई

 आचार्य दीपंकर श्रीज्ञान शान्ति, सद्भाव और आपसी सहयोग के प्रतीक के रूप में सदैव अमर रहेंगे

Share this

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *