चीनी यात्री फाह्यान की भारत यात्रा

चीनी यात्री फाह्यान की भारत यात्रा

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में एक चीनी यात्री फाह्यान भारत आया, उसके बचपन का नाम कुंग था। फाह्यान का जन्म चीन में वू-यंग नामक स्थान पर हुआ था। को भाषा में ‘फा’ का अर्थ है धर्म और ‘हियां’ का अर्थ है शिक्षक। इसलिए फाह्यान का शाब्दिक अर्थ धर्माचार्य है।

फाह्यान भारत कब आया

फाह्यान भारत कब आया

फाह्यान ने 399 ईस्वी में चीन छोड़ दिया और 414 ईस्वी में भारत से लौट आया। वह 15 साल तक भारत में रहे और गोबी रेगिस्तान को जमीन से पार करने के बाद खाटन और पामीर के रास्ते तक्षशिला पहुंचे। भारत में उन्होंने मथुरा, कन्नौज, यस्ता, कपिलवस्तु, कुशीनगर, वैशाली, नालंदा, गया, बोधगया, राजगृह, पाटलिपुत्र, काशी आदि शहरों की यात्रा की। और ताम्रलिप्ति के बंदरगाह पर पहुंचे। ताम्रलिप्ति से वे सिंहलद्वीप पहुंचे और वहां से 90 दिनों की यात्रा के बाद जावा लौट आए। उन्होंने इस यात्रा का विवरण इस प्रकार दिया: “वह 6 साल में मध्यदेश पहुंचे और वापस आ गए।
फाह्यान बौद्ध भिक्षु था। अतएव इस नाते उसका मुख्य प्रयोजन भारत के बौद्ध तीर्थ-स्थानों की खोज तथा बौद्ध धर्म और मुख्य उद्देश्य भारत में बौद्ध तीर्थ स्थलों की खोज और बौद्ध धर्म और दर्शन है

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फाहियान का यात्रा वृतांत

फाह्यान ने अपनी भारतीय यात्रा का अत्यन्त सन्दर विवरण प्रस्तुत किया है। इस विवरण में हमें
तक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक दशा का अच्छा परिचय मिलता है।

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राजनीतिक स्थिति—फाह्यान के अनुसार राजा (चन्द्रगुप्त द्वितीय) का शासन अत्यन्त सुव्यवस्थित था। प्रजा बड़ी सुखी और सम्पन्न थी। राजा प्रजा के हित का बड़ा ध्यान रखता था। राजा प्रजा के कार्यों में कोई हस्तक्षेप नहीं करता था। सामान्यतया अपराधियों को कठोर दण्ड नहीं दिया जाता था। |

 सामाजिक दशा अर्थदण्ड का विशेष प्रचलन था। राजद्रोह जैसे घोर अपराध करने पर दाहिना हाथ काट लिया जाता था। प्राणदण्ड की प्रथा नहीं थी। राजा की ओर से बड़े-बड़े नगरों में चिकित्सालय खुले थे। यात्रियों की सुविधा के लिए सरायें बनी थी
जिनमें यात्रियों को भोजन मुफ्त मिलता था। आवागमन की सुविधा के लिए राजमार्ग बने हुए थे जिनके दोनों ओर छायादार वृक्ष लगे हुए थे। देश में पूर्ण शांति थी। चोर-डाकुओं का भय नहीं था।

उच्च वर्ण के लोग मदिरा. प्याज, लहसुन इत्यादि  प्रयोग नहीं करते थे। इसका प्रयोग चाण्डाल
करते थे। ये लोग नगर के बाहर रहते थे। उन्हें अस्पृश्य समझा जाता था।

आर्थिक दशा – फाह्यान ने उस समय के भारतीय व्यापारियों की दानशीलता की बड़ी प्रशंसा की है।  ओषधि-वितरण की व्यवस्था है। श्रेष्ठि (सेठों) और गहपतियों ने कई चिकित्सालयो का दरिद्र लोगों को निःशुल्क भोजन मिलता था।
आठ (सेठों) और गृहपतियों ने कई चिकित्सालयों की स्थापना कर रखी है,
देश के सभा दाना वे. विधवाएँ और लूले-लँगड़े एवं अन्य रोगी यहाँ आते हैं। इस बात का ध्यान रखा जाता है ।फाह्यान के अनुसार इस समय लोग समद्ध और सखी थे। प्रजा से राजा बहुत कम कर लेता था। कृषि मुख्य उद्यम था। कृषि के अतिरिक्त अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धों का विकास हो गया था। वाणिज्य-व्यवसाय स्थिति अच्छी थी। उसके अनुसार उस समय इतने बड़े जहाज बनते थे कि उनमें दो सौ व्यक्ति एक बार बैठ सकते थ।

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धार्मिक दशा-फाह्यान के अनुसार इस समय बौद्ध धर्म का पंजाब और बंगाल में विशेष प्रचार था। मथुरा में बौद्ध धर्म 20 विहार थे जिससे यह पता चलता है कि यहाँ भी बौद्ध धर्म का प्रसार हो रहा था, किन्तु ‘मध्यदेश’ में बौद्ध धर्म बहुत कम प्रचार था। महात्मा बुद्ध से सम्बन्ध रखनेवाले अनेक स्थान उजाड़ हो रहे थे। ‘मध्यदेश’ में ब्राह्मण धर्म -विशेष प्रभाव था। लोगों को धार्मिक मामलों में स्वतन्त्रता थी। राज्य की ओर से धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया ता था। राजा वैष्णव होते हुए भी बौद्ध मठों को उदारतापूर्वक दान देता था।
फाह्यान ने देश के अनेक भागों का भ्रमण किया तथा बौद्धों के मठ के जीवन को देखा। भिक्षु सर्वसाधारण में धर्मयमों का उपदेश करते तथा उनसे दान ग्रहण करते थे। वह लिखता है-“भिक्षु प्रतिदिन अच्छे काम करते तथा अपने सूत्रों को दुहराते हैं। जब अपरिचित भिक्षु आते हैं तो वहाँ के प्राचीन भिक्षु आकर उनका स्वागत करते उनके लिए वस्त्र तथा भिक्षा-पात्र ले आते हैं। पैर धोने के लिए जल देते, मालिश के लिए तेल देते और निश्चित पयोपरान्त हल्का आहार देते हैं। कुछ समय के विश्राम के उपरान्त वे उनसे पूछते हैं कि उसे भिक्षु हुए कितने दिन हो । इसके पश्चात् उसे उसके स्थायी नियमों के अनुकूल उचित उपकरणों से युक्त शयनागार मिलता है। इस प्रकार नियमों के अनुसार उसकी हर प्रकार की उचित सेवा की जाती है।

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पाटलिपुत्र नगर का वर्णन-फाह्यान पाटलिपुत्र में लगभग 3 वर्ष तक रहा था। अतएव उसके यात्रा-विवरण में पाटलिपुत्र का अच्छा वर्णन मिलता है। फाह्यान पाटलिपुत्र नगर की सुन्दरता से बहुत प्रभावित हुआ था। उसने सम्राट आशोक द्वारा बनवाये हए विशाल राजप्रासाद को अब भी अच्छी हालत में पाया था। यह राजप्रासाद अत्यन्त सुन्दर था। फाह्यान इसकी सुन्दरता को देखकर मुग्ध हो गया था। उसका विश्वास था कि पाटलिपुत्र का यह महल देवताओं का बनवाया हुआ है। उसने पाटलिपुत्र में दो बौद्ध मठ देखे थे जो बड़े सुन्दर थे।

इन मठों में से एक हीनयान सम्प्रदाय का
और दूसरा महायान सम्प्रदाय का। इनमें लगभग 600.बौद्ध भिक्षु रहा करते थे। पाटलिपुत्र में एक विशाल औषधालय जहाँ लोगों को मुफ्त दवा मिलती थी। रोगियों के भोजन की भी मुफ्त व्यवस्था थी। औषधालय का खर्च नगर के धनीनी और समृद्ध लोग चलाते थे। इनके अतिरिक्त अन्य अनेक संस्थाएँ थीं जो दीन-दुःखियों की सेवा-सहायता किया ती थीं।

फाह्यान किसके समय भारत आया

चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में एक चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था

चीनी यात्री फाह्यान की पुस्तक का नाम
चीनी यात्री फाह्यान की पुस्तक फो क्वा की माना जाता है

फाह्यान किसके दरबार में आया था
फाह्यान चंद्रगुप्त विक्रमादित्य दरबार में आया था

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