Tulsidas ka Jivan Parichay | तुलसीदास का जीवन परिचय

Tulsidas Ka Jivan Parichay

Tulsidas ka Jivan Parichay तुलसीदास एक महान संत, कवि और दार्शनिक थे । तुलसीदास जी को भक्ति आंदोलन और उनकी महाकाव्य रामचरितमानस जो हिंदी साहित्य की सबसे महान कृतियों में से एक माना जाता है के लिए जाना जाता है।

तुलसीदास का जीवन परिचय Tulsidas Ka Jivan Parichay

 गोस्वामी तुलसीदास (Tulsidas) का जन्म 1554 या 1497 ई. में चित्रकूट में में हुआ था। ऐसा माना जाता है कि तुलसीदास के जन्म की तारीख और स्थान के बारे में विद्वानों में अलग-अलग राय हैं। तुलसीदास के पिता का नाम आत्माराम दुबे और तुलसीदास की माता का नाम हुल्सी था । ये सरौपालिन ब्राह्मण थे । ऐसा कहा जाता है कि उनके माता-पिता ने उन्हें छोड़ दिया क्योंकि उनका जन्म मूल नक्षत्र में हुआ था। इस वजह से उनका बचपन बड़े क्लेशों में बीता।

तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला था। क्योकि जन्म के बाद सर्वप्रथम राम शब्द ही बोला था।

तुलसीदास के गुरु का नाम बाबा नरहरिदास था। सौभाग्य से, वह बाबा नरहरिदास से मिले। जिसने उनकी देखभाल की और उनकी शिक्षा शुरू की, इसलिए तुलसीदास ने उन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया।

तुलसीदास बड़ा हुआ और काशी चला गये । वहां उन्होंने शेष सनातन  विद्वान से वेद, शास्त्र, कविता और दर्शन सीखा। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, वह अपने गृहनगर राजापुर गांव लौट आये ।

तुलसीदास की पत्नी का नाम रत्नावलि था। अपने ग्राम में रहते हुए दीनबन्धु पाठक की सुन्दर कन्या रत्नावलि के साथ तुलसीदास जी विवाह हो गया।
एक दिन जब रत्नावलि कहीं बाहर जाती है तो रत्नावलि अपने भाई के साथ अपनी मां के घर चली जाती है। घर लौटने के बाद तुलसी को पता चला कि अपने ससुराल गई है। जब अपनी पत्नी को नहीं पाया तो वह उसके अलगाव को सहन नहीं कर सके और आधी रात को सीधे अपनी पत्नी के पास गये ।तुलसी को देखकर ससुराल वाले सन्न रह गए। उसकी पत्नी ने सोचा कि तुलसीदास व्यवहार अनुचित है । उन्होंने तुलसी को डांटा और कहा: —
“लाज न आयी आपको दौरे आयेहु साथ। 
धिक धिक ऐसे प्रेम को कहा कहौ मै नाथ।। 
अस्थि चर्म मय देह तामे जैसी प्रीत। 
तैसो जाइओ श्रीराम माह होति न तो भवभूति।। 
उनकी पत्नी की बात तुलसी के दिल में इतनी गहरी थी कि उनका दिल दुनिया से टूट गया और वे राम के समर्पण पर ध्यान केंद्रित करते हुए संन्यासी बन गए। उन्होंने सन्यास स्वीकार किए और चित्रकूट और अयोध्या जैसे तीर्थ स्थलों का दौरा किया।अब इनका जीवन तीर्थयात्रा , भजन , कीर्तन , सत्संग और राम कथा विवेचन में ही व्यतीत होता था।
 तुलसी 1631 में  “रामचिरत मानस” बनाना शुरू किया। उनकी यह रचना 1633 में पूरी हुई  और इसमें दो साल, सात महीने और छब्बीस दिन लगे। राम भक्ति और काव्य रचना में रत रहते हुए सन् 1623 ई . ( सम्वत् 1680 ) में काशी के असी घाट पर तुलसीदास जी का स्वर्गवास हो गया।

तुलसीदास का जीवन परिचय मुख्य तथ्य(Tulsidas Ka Jivan Parichay)

 नाम  Name तुलसीदास (Tulsidas)

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बचपन का नाम रामबोला

जन्म तारीख Date of Birth 1497 ई. (सम्वत् 1554 वि .)

जन्म स्थान Place of Birth राजापुर (बाँदा)

मृत्यु Death सन् 1623 ई .काशी

पारिवारिक जानकारी Family Information

पिता का नाम Father’s Name आत्माराम दुबे

माता का नाम Mother’s Name हुलसी

पत्नी का नाम रत्नावली

गुरु का नाम नरहरि दास जी

अन्य जानकारी Other Information

सम्मान  Awards गोस्वामी, अभिनववाल्मीकि

भगवान श्री राम जी से भेंट

चित्रकूट पहुंचने के बाद उन्होंने रामघाट में  आसन तय कीया । एक दिन वे इधर-उधर गए और रास्ते में अचानक श्रीराम को देखा। तुलसीदास ने दो सुंदर राजकुमारों को घोड़ों पर सवार और धनुष-बाण लिए हुए देखा।  उसकी ओर आकर्षित तो थे लेकिन उसे पहचान नहीं पाए। फिर जब पीछे से हनुमानजी ने आकर उन्हें सारे रहस्य बताए, तो उन्हें इसका पछतावा होने लगा।
इस संबंध में हनुमानजी ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा कि कल सुबह फिर दर्शन होंगे । बुधवार को संवत 1607 में मौनी अमावस्या के दिन भगवान श्री राम फिर उनके सामने प्रकट हुए। वह एक बालक के रूप में प्रकट हुए और तुलसीदास से कहा- “बाबा ! हमें चंदन चाहिए, क्या आप हमें चंदन दे सकते हैं?” हनुमानजी ने सोचा, कहीं ऐसा न हो कि वह इस बार धोखा खा जाए, वह तोता बन गये ।,और  दोहे में  कहा:

चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास की रचनाएँ (Tulsidas ki Rachnaye)

रामचरित मानस
विनय पत्रिका ,
कवितावली
गीतावली ,
दोहावली
बरवै रामायण
पार्वती मंगल
जानकी मंगल
वैराग्य संदीपनी
रामलला नहछू

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महाकवि तुलसीदास जी (Tulsidas) ने बारह ग्रन्थों की रचना की। इनके द्वारा रचित महाकाव्य ‘श्रीरामचरितमानस’ सम्पूर्ण विश्व के अद्भुत ग्रन्थों में से एक है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

1. रामलला नहछू गोस्वामी तुलसीदास ने लोकगीत की ‘सोहर’ शैली में इस ग्रन्थ की रचना की थी। यह इनकी प्रारम्भिक रचना है।

2. वैराग्य-सन्दीपनी इसके तीन भाग हैं, पहले भाग में छ: छन्दों में ‘मंगलाचरण’ है तथा दूसरे भाग में ‘सन्त-महिमा वर्णन’ एवं तीसरे भाग में ‘शान्ति-भाव वर्णन’है।

 रामाज्ञा प्रश्न यह ग्रन्थ सात सर्गों में विभाजित है, जिसमें शुभ-अशुभ शकुनों का वर्णन है। इसमें रामकथा का वर्णन किया गया है।

जानकी-मंगल इसमें कवि ने श्रीराम और जानकी के मंगलमय विवाह उत्सव का मधुर वर्णन किया है।

श्रीरामचरितमानस इस विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन के चरित्र का वर्णन किया गया हैै ।अवश्य पढ़ें रामायण की सर्वश्रेष्ठ चौपाई

श्रीकृष्णगीतावली इसमें 61 पदों में कवि ने ब्रजभाषा में श्री कृष्णा के मनोहर रूप का वर्णन किया है।

कवितावली इस कृति में कवित और सवैया शैली में रामकथा का विवरण किया गया है। यह ब्रजभाषा में रचित श्रेष्ठ मुक्तक काव्य है।

तुलसीदास की मृत्यु(Tulsidas Death)

तुलसीदास की मृत्यु की तारीख से संबंधित कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है।

संवत सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ल सप्तमी, तुलसी तज्यो  शरीर।।

इस दोहे के आधार पर यह कहा जा सकता है तुलसीदास जी की मृत्यु संवत 1680 अर्थात 31 जुलाई 1623, अस्सी घाट, वाराणसी मैं हुई थी।

उनकी मृत्यु के बाद उनके जीवन और काव्य का महत्व बढ़ा और उन्हें हिंदी साहित्य का एक महान कवि माना जाता है। तुलसीदास ने रामचरितमानस का रचनाकाल 16वीं शताब्दी के मध्य है। उन्होंने इसमें भगवान राम की जीवनी को सुंदरता से व्यंग्यपूर्ण भाषा में बयान किया है। तुलसीदास ने अपने काव्य से हिंदी भाषा को एक नया आयाम दिया और भारतीय साहित्य को एक महत्वपूर्ण पहचान दिलाई।

भाषा शैली

तुलसीदास ने अवधी और ब्रज भाषाओं में अपनी काव्य रचनाएँ कीं। श्री रामचरितमानस अवधी भाषा में है, जबकि कवितावली, गीतावली, विनय अन्य कार्यों में ब्रजभाषा का प्रयोग किया जाता था। श्री रामचरितमानस में प्रकाश विनय पत्रिका में शैली, मुक्तक शैली और दोहावली में सखी शैली थे। तुलसीदास की कृति दोनों ही कलात्मक दृष्टि से है। यह अद्वितीय है।

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तुलसीदास जी ने अपने काव्य में उस समय की सभी काव्य शैलियों का प्रयोग किया है। कवि ने काव्य शैलियों जैसे दोहा, चौपाई, काव्य, सवाय, पद आदि में कविता की रचना की।

तुलसीदास का साहित्य में स्थान

गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी के श्रेष्ठ कवि, समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते हैं। एक लेखक के रूप में, तुलसीदास एक अमूल्य रत्न  है। तुलसीदास के प्रमुख महाकाव्य रामचरित मानस न केवल हिंदी का सबसे अच्छा महाकाव्य है, बल्कि दुनिया का सबसे अच्छा महाकाव्य भी है। रामचिरत मानस के माध्यम से तुलसीदास ने जीवन की कई समस्याओं का समाधान किया।

इसी कारण रामचरित मानस धार्मिक ग्रंथ ही नहीं पािरवािरक,सामािजक एवं नीितसबधी यवथाओं का पोषक ग्रथ भी है। इसलिए तुलसीदास को हिन्दी साहित्य का अमर कवि माना जाता है। भक्ति काल के श्रेष्ठ कवि सूरदास रहीमदास कबीर दास के समान आधुनिक हिंदी भाषा  के विकास के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है

तुलसीदास का साहित्यिक परिचय(Tulsidas ka Sahityik Parichay)

तुलसीदास (Tulsidas) भारतीय साहित्य के प्रसिद्ध कवि और लोकनायक, प्रभु राम के परम भक्त थे। इनकी कृति रामचरितमानस विश्व की महान कृतियों में से एक है जो हिंदी साहित्य का एक प्रमुख ग्रंथ है।

तुलसीदास ने रामचरितमानस जिसमें भाषा, उद्देश्य, कहानी, संवाद और चरित्र का प्रतिनिधित्व बहुत अच्छी तरह से किया हैं। इस पुस्तक के माध्यम से जिन आदर्शों का उन्होंने मार्मिक चित्र बनाया है वे अनंत काल तक चलते रहेंगे।
यह मानव समाज के लिए मार्ग प्रशस्त करता रहेगा।

F.A.Q Tulsidas से संबंधित प्रश्न और उत्तर

तुलसीदास की मृत्यु कब कैसे और कहाँ हुई ?

माना जाता है तुलसीदास की मृत्यु सन् 1623 ई . ( सम्वत् 1680 ) में काशी के असी घाट पर तुलसीदास जी का स्वर्गवास हो गया।

तुलसीदास का जन्म कब हुआ था ?

तुलसीदास का जन्म 1554 या 1497 ई. में चित्रकूट में हुआ था।

तुलसीदास के गुरु कौन थे ?

तुलसीदास के गुरु का नाम बाबा नरहरिदास था।

तुलसीदास की पत्नी का नाम क्या था

तुलसीदास की पत्नी का नाम  रत्नावलि था।

तुलसीदास का जन्म कहाँ हुआ था ?

तुलसीदास का जन्म चित्रकूट में हुआ था।

तुलसीदास की भक्ति किस भाव की है

तुलसीदास जी ने सगुण-निर्गुण, ज्ञान-भक्ति, शैव-वैष्णव और विभिन्न संप्रदायों की शिक्षा दी।

Tulsidas Ka Jivan Parichay तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के एक महान संत थे हमने उनका जीवन परिचय बहुत ही आम बोलचाल की भाषा में समझाने का प्रयास किया है यह परीक्षाओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

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